स्वर्णिम रहा है रूपनगर का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
काली किंकर मिश्रा, रूपनगर : स्वतंत्रता संग्राम में रूपनगर जिले का योगदान स्वर्णिम रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में भी जिस भी मौके पर स्वतंत्रता की चिंगारी भड़की थी, यहां के सेनानी देश के साथ उठ खड़े हुए थे। चाहे वह 1857 का मंगल पांडे का विद्रोह रहा हो या 1942 का भारत छोड़े आंदोलन। यहां सेनानियों ने हर मौके पर शहादत दी।
हालांकि, उस वक्त रूपनगर (तब रोपड़) जिला नहीं था। मौजूदा रूपनगर का आधा से अधिक हिस्सा अंबाला जिले में व शेष होशियारपुर जिले में पड़ता था। आजादी के बाद जब रोपड़ जिला बना उसमें भी अब दोफाड़ हो चुका है। जिले के बड़े हिस्से को काटकर मोहाली नया जिला बनाया गया है। उन दिनों प्रशासनिक केंद्र नहीं होने के बावजूद यहां के सेनानियों ने ब्रिटिश प्रशासन की चूलें हिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। बिखरा जिला होने की वजह से स्वतंत्रता संग्राम के दिनों का यहां का इतिहास भी बिखरा हुआ है।
जिले के गजेटियर से प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां आजादी की अलख 1857 से ही जलना शुरू हो गया था। लेकिन जिले गजट में जिन स्वतंत्रता सेनानी का नाम सबसे पहले है वह हैं पंडित कांसीराम। जिनका गदर मूवमेंट में उल्लेखनीय योगदान रहा है। गदर पार्टी के यह पहले खजांची थी। पंडित कांसीराम का जन्म 1882 में गांव मड़ौली कलां के ब्राह्मण में परिवार में हुआ था। गदरी पार्टी के सरगर्म सदस्य रहे हैं। जिन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में 27 मार्च 1915 को फांसी दे दी गई थी। बताया गया है कि उस वक्त इनके घर की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि इनके पिता केस की पैरवी के लिए वकील भी नियुक्त नहीं कर सके थे।
रौलेट एक्ट के विरोध व असहयोग आंदोलन के वक्त भी जिले में खूब गदर मची थी। महात्मा गांधी के आह्वान पर यहां जलसा हुआ था। वकीलों ने काम का वहिष्कार किया था। स्कूल-कालेज के विद्यार्थियों ने स्कूल कालेज छोड़ दिया था। विदेशी कपड़ों की जमकर होली खेली गई थी। स्थानीय गांधी चौक पर बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे और भारी मात्रा में विदेशी कपड़े जलाए गए थे। मौजूदा खरड़ तहसील (जिला मोहाली) के गांव सियालवा माजरी भी खूब चर्चा रहा था। यहां स्वतंत्रता सेनानियों की विशेष बैठक हुई थी।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के काल में भी यहां के आंदोलनकारियों ने भी कहर बरपाया था। इस समय के जिले के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में मथुरादास गांधी, डा. वेद प्रकाश, गुरदास राम, जयकृष्ण दास, डा. रामनाथ पंडित आदि प्रमुख थे। 1940 के काल में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान सियालवा माजरी, खरड़ व सोहाणा (तीनों अब मोहाली जिला में) बड़ी संख्या में स्वतंत्रता सेनानियों ने सक्रियता दिखाई थी। सियालवा माजरी उन दिनों सेनानियों का केंद्र बनकर उभरा था। कहा जाता है कि सियालवा माजरी को बिहार का बारदौली कहा जाने लगा था।
इस दौरान जिले में पंडित गोविंद बल्लभ पंत, पंडित मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, पंडित जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाषचंद्र बोस आदि समय-समय पर आते रहते थे। उल्लेखनीय लाला लाजपत राय का बचपन रूपनगर में ही बीता था। इनके पिता राधा कृष्ण स्थानीय सरकारी प्राइमरी स्कूल में शिक्षक थे। इसी तरह भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर 1947 तक भी यहां के सेनानी सक्रिय रहे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान खरड़ का आंदोलन पंजाब में मील का पत्थर साबित हुआ था।
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