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आंसुओं से मिटाती हैं दिल का जख्म

By Edited By: Published: Sat, 12 May 2012 07:39 PM (IST)Updated: Sat, 12 May 2012 07:41 PM (IST)
आंसुओं से मिटाती हैं दिल का जख्म

प्रमोद टैगोर , संझौली (रोहतास)

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कवि मैथलीशरण गुप्त की उक्ति है, 'मां' की ममता का कोई मोल नहीं। मां न होती तो शायद हम न होते, फिर ये खूबसूरत जहां न होता। मसलन ये सृष्टि ही 'मां' से बनी है। पर बदलते परिवेश में 'मां' दर्द से कराह रही है। नौ महीने तक अपनी कोंख में रख जिस बेटे को जन्म देती है, हर दर्द को ममता में समाहित कर बेटे की खुशी के लिए न्यौछावर करती है। आज वही ममता उसे बेटे द्वारा दी गई पीड़ा को झेल रही है।

कौशल्या व यशोदा जैसी मां की कमी तो आज भी नहीं है पर श्रवण जैसे बेटे की कमी तो जरूर खल रही है। नतीजा आज अधिकांश मां अपने दिल के जख्म को अपने ही आंसुओं से मिटाने को विवश हैं।

रो रही 'मां' व उसकी ममता

* बिक्रमगंज के चौक चौराहे पर एक वृद्धा अनायास दिख जाती है। लोग उसे विक्षिप्त कहते हैं। सवाल उठता है कि उसे पागल किसने बनाया? लोग बताते हैं कि उसका घर नासरीगंज है। दो बेटे हैं। पर कोई उस मां को नहीं देखता। घर से निकाल दी गई है। दर-दर की ठोकरें खा गुजारा कर रही है।

* संझौली की कौशल्या का बेटा दिल्ली में नौकरी करता है। भीख मांग कर इकलौते बेटे को पढ़ाया था। शादी के बाद वह 'मां' का ख्याल ही भूल गया। कौशल्या आज दूसरों के घर बर्तन धोकर जी रही है।

* नोखा की कुसुम कुंअर की कहानी तो 'ममता' को भी झकझोर देती है। 1986 में कूड़े के ढेर से उठा लाकर एक नवजात को ममता की छांव दे बड़े अरमान से उसे पाल पोस कर बड़ा किया। मगर सारे आरमां आंसुओं में बह गए। शादी के बाद बेटे ने घर से ही उसे निकाल दिया। आज एक राइस मिल में काम कर गुजारा कर रही है।

90 फीसद मां झेल रही पीड़ा

खूबसूरत जहां को सजाने-संवारने में जिस मां ने अपनी जिंदगी के जहर को भी बेटे की खातिर अमृत समझ ग्रहण किया। उसमें आज 90 फीसद मां बेटे की बेवफाई व बेगानेपन की पीड़ा झेल रही है।

हाल ही में 'वायस आफ अमेरिका' द्वारा सूबे में कराए गए एक सर्वे में बताया गया कि शहर से ग्रामीण क्षेत्रों तक की मां अपनों के जुल्म का शिकार हैं। शहर में 86 तो गांवों में 90 फीसद माताएं बेटों व बहुओं के रवैयों से दुखी हैं।

बहू को भी एक दिन मां बनना है

उच्च न्यायालय की अधिवक्ता व शिक्षाविद् डा. रंजना मुध मिश्रा बताती हैं कि आज अधिकांश मां बेटों से ज्यादा अपने बहुओं से तंग हैं। पर दोषी तो बेटा ही होगा। अगर हर बहु की मानसिकता में यह बातें घर कर जाए कि उसे भी एक दिन मां बनना है तो सारी समस्याएं दूर हो जाएगी। इसके लिए सामाजिक स्तर पर जागरूकता जरूरी है।

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