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कुष्ठ पीड़ितों को बताई जीने की राह

रांची : कुष्ठ ने तब नौ वर्षीय राजाराम को समाज के लिए अछूत बना डाला था। आज वही समाज उन्हें आदर भरी नि

By Edited By: Published: Sun, 21 Dec 2014 02:09 PM (IST)Updated: Sun, 21 Dec 2014 02:09 PM (IST)
कुष्ठ पीड़ितों को बताई जीने की राह

रांची : कुष्ठ ने तब नौ वर्षीय राजाराम को समाज के लिए अछूत बना डाला था। आज वही समाज उन्हें आदर भरी निगाहों से देख रहा है। राजा दर्जनों कुष्ठ रोगियों के लिए आज मसीहा बन गए हैं। पीड़ितों को नारकीय जीवन न जीना पड़े, 75 के होने के बावजूद राम आज भी उनके लिए संघर्षरत हैं। यह उनके संघर्ष का ही नतीजा है कि उनकेजैसे कई कुष्ठ रोगी आज भीख मांगने का धंधा छोड़ चुके हैं।

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रांची के धुर्वा स्थित इंदिरा कुष्ठ कालोनी में रह रहे कुष्ठ पीड़ितों के पास पहले अपने और अपने परिवार के जीविकोपार्जन के लिए भीख मांगना एकमात्र सहारा था। आज परिस्थितियां बदली हैं। कालोनी के अधिकांश पीड़ित जलालत का यह धंधा छोड़कर मेहनत की राह पर निकल पड़े हैं। उनके बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। कालोनी का ही एक लड़का स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहा है। पीड़ितों के कुछ बाल-बच्चे आज बड़े होकर आटो चला रहे हैं। राजेश और दिवाकर स्कूल बस चला रहे हैं। चंचला की बेटी धनबाद के गोविंदपुर में आवासीय विद्यालय में पढ़ रही है। यह सब कालोनी के 75 वर्षीय राजाराम के प्रयास से हुआ है।

एक दर्जन से अधिक बकरियां और तीन दर्जन मुर्गे-मुर्गियों का मालिक राजाराम की मेहनत से प्रेरित होकर कॉलोनी के पच्चीस से अधिक कुष्ठ रोगी भी पशुपालन में लग गए हैं। भले ही उनके दोनों हाथों की उंगलियां नदारद हों, लेकिन पशुओं की देखभाल में कोई कमी नहीं। कालोनी में सेल्फ हेल्प ग्रुप भी बन गया है। कालोनीवासी अपने में ही एक मुखिया चुनते हैं। भले ही राजाराम कालोनी के मुखिया नहीं लेकिन यहां के लोगों के लिए वे आज भी सबसे आगे खड़े होते हैं। कालोनी की सरपतिया, नजला और गणपति का आज भी कहना है, राजाराम के प्रयास से ही उनकी जिंदगी बदली है। यह सच भी है। उसके प्रयास से ही यहां सामुदायिक भवन, तालाब तथा खेल के मैदान के लिए पैसे मिले। कुष्ठ रोगियों को रेल में पास का लाभ (निश्शक्तों के लिए) नहीं मिलने का मामला रहा हो या स्वामी विवेकानंद योजना की बात। राजाराम शिकायती पत्र लिए डीसी कार्यालय में अक्सर मिल जाते हैं। राजाराम का बेटा फौज में है। पोता और पोतियां भी हैं। बेटे ने कई बार उसे अपने साथ ले जाने की कोशिश की, परंतु राजा ने सिरे से मना कर दिया। उसका मन कुष्ठ कालोनी में ही बसता है। कालोनी के बच्चों के साथ खेलते राजाराम आपको अक्सर दिख जाएंगे।

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