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स्वदेशी व टिकाऊ को दें तरजीह

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : इस दीपावली पर सस्ते सामान की लालच छोड़ स्वदेशी व टिकाऊ को तरजीह दें। धनतेर

By Edited By: Published: Thu, 23 Oct 2014 02:12 AM (IST)Updated: Thu, 23 Oct 2014 02:12 AM (IST)
स्वदेशी व टिकाऊ को दें तरजीह

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : इस दीपावली पर सस्ते सामान की लालच छोड़ स्वदेशी व टिकाऊ को तरजीह दें। धनतेरस से शुरू होने वाले प्रकाश पर्व दीपावली को लेकर तैयारियां शुरु हो चुकी हैं। हालांकि बाजार चाइनीज झालरों से पट गया है। यह भारतीय झालरों के मुकाबले सस्ते तो हैं पर टिकाऊ नहीं हैं। एक साल की झालर का प्रयोग दूसरे साल नहीं किया जा सकता। स्वदेशी अपनाने से जहां बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन होगा वहीं पर्व पर देशीपन का अहसास गर्व की अनुभूति कराएगा।

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धनतेरस में सप्ताह भर बचे हैं। शहर में चारो ओर दीपावली के सामानों की दुकाने सज चुकी हैं। स्वदेशी सामान इस्तेमाल करने पर एक ओर जहां भारतीय सामान को बाजार उपलब्ध होगा वहीं मिट्टी के दीपक के प्रयोग से कुम्हारों की दीपावली भी शानदार हो जाएगी।

इंसर्ट ....

टिकाऊ नहीं है चाइनीज झालर

व्यवसायी ऋषभ रस्तोगी कहते हैं दस वर्ष पहले भारतीय बाजार में आए चाइनीज झालरों ने भारतीय झालरों के धंधे को चौपट कर दिया है। भारतीय झालरों की कीमत जहां एक सौ पचास रुपये से दो सौ रुपये तक है, वहीं चाइनीज झालरों के दाम बीस रुपये से शुरू होते हैं लेकिन इनके टिकाऊ होने की गारंटी नहीं है।

सोचें भारतीय सामानों का दाम कम कैसे हो

गोरखपुर विश्वविद्यालय अर्थशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. करुणाकर राम त्रिपाठी का कहना है कि चाइनीज सामानों का इस्तेमाल न करने की अपील से काम नहीं चलेगा। हमें यह भी सोचना होगा कि उसके मुकाबले हमारे सामान कैसे सस्ते हों? प्रधानमंत्री साझा बाजार की बात करते हैं वहीं दूसरी ओर चाइनीज सामान का इस्तेमाल न करने की बात कही जा रही है। जब हम खुद जागरूक होंगे तभीयह संभव होगा।

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आयातक व निर्यातक देश है चीन

गोरखपुर विश्वविद्यालय अर्थ शास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. आलोक कुमार गोयल ने कहा कि सरकार के स्तर से इस तरह की पहल कराना अनुचित है। क्योंकि एक जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के साथ व्यापार समझौता लागू हुआ। इसके अनुसार कोई सदस्य देश इस संगठन के सदस्य देशों के बीच भेद भाव नहीं करेगा। भारत इसका संस्थापक सदस्य है और चीन ने 2001 में सदस्यता ग्रहण की। इसलिए ऐसा माहौल बनाना व्यापारिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है। हालांकि स्वदेशी का अलग ही मजा है।

इंसर्ट

सस्ता रोए बार-बार

अलवापुर कालीमंदिर निवासी देवेंद्र भारती कहते हैं सस्ता रोए बार-बार महंगा रोए एक बार यह कहावत चाइनीज झालरों पर बिल्कुल सटीक है। चाइनीज झालर सस्ते तो हैं मगर एक साल भी नही चल पाते। बढ़ती महंगाई की वजह से ही भारतीय झालर बाजार से बाहर हुए।

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मेडिकल कालेज निवासी विजय कुमार गुप्ता चाइनीज झालर, साज सज्जा के सामान केवल चमक दमक वाले होते हैं टिकाऊ नहीं। अगर सामान टिकाऊ नहीं तो वह किसी काम के नहीं। क्या कम कीमत का सामान अच्छा नहीं होना चाहिए। परंतु आज बाजार चाइना झालरों व सामानों से अटा पड़ा है।


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