शहर के कई इलाकों में पक्के नाले-नालियों का अभाव
जागरण संवाददाता,आरा : शहर में आबादी की तुलना में पर्याप्त नाले-नालियां नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो शहर के नये बसे इलाकों में तो नाले बनें ही नहीं हैं। वहीं पुराने इलाकों में साठ साल पुराने बने मुख्य सभी आउट फाल नालों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया है।
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अतिक्रमण की भेंट चढ़ी शहर की नालियां: शहर की नाले-नालियां अतिक्रमण की चपेट में है। जिस कारण नये इलाके तो बारिश में डूब जाते है, पुराने इलाकों का पानी भी नहीं निकल पाता है। समस्या जस की तस बनीं रहती है। सड़कों के दोनों किनारे नालों पर लोग कब्जा कर सीढ़ी व दुकान बना लिये है। वहीं नगर निगम प्रशासन अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाने की योजना बनाकर फाइलों तक हीं रखा है।
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लाखों खर्च फिर भी नाले जाम:
जानकारों की माने तो नगर निगम में मुख्य आउट फाल नाला सफाई के नाम पर महज एक साल में पचास लाख रुपये खर्च कर दिए गए। मगर समस्या जस की तस बनी हुई है। पिछले पांच साल में दो करोड़ रूपये से ज्यादा की राशि नाले-नालियों के निर्माण पर खर्च हो चुका है। जबकि डूडा समेत अन्य एजेंसियों ने भी करोड़ों रुपये नालों पर खर्च कर चुकी है। इसके बावजूद नालियां जाम होने के कारण शहर के अधिकांश इलाके जलमग्न हो जाते है।
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सफाई कर्मचारियों की कमी से होती है दिक्कतें: नगर निगम के पास सफाई कर्मचारियों की कमी है। लिहाजा सफाई कर्मचारियों की कमी का असर सफाई व्यवस्था पर पड़ता है। योजनाएं बनती हैं पर उस पर अमल नहीं होता है। जबकि आरा शहर में सीवरेज सिस्टम नहीं है। साठ साल पुराने नालों पर शहर की जलनिकासी व्यवस्था टिकी है। नाला उड़ाही के अभाव में मुख्य नालों में कई फीट तक मोटी सिल्ट जमा है।
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प्रस्तावित ड्रेनेज सिस्टम तोड़ रही दम:
वर्ष 2010 में शहर की जलनिकासी के लिये एनबीसीसी द्वारा तैयार डीपीआर कागजों में दम तोड़ रही है। ड्रेनेज सिस्टम के लिये 109.33 किलो मीटर के विभिन्न साइज के नाले का निर्माण प्रस्तावित है। पूरे शहर को 11 जोन में बांटकर जल निकासी की व्यवस्था की योजना प्रस्तावित है। इसके लिये 311.92 करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान है। यह परियोजना राज्य सरकार से अनुशंसित होकर भारत सरकार को भेज दी गयी है।