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ऐशो हे बइशाख ऐशो..

By Edited By: Published: Mon, 14 Apr 2014 01:01 AM (IST)Updated: Mon, 14 Apr 2014 01:01 AM (IST)
ऐशो हे बइशाख ऐशो..

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : विश्व भर में फैले बंगाली समाज की ओर से मंगलवार को बाग्ला नववर्ष पोइला वैशाख के रूप में मनाया जाएगा। सोमवार को खत्म हो रही चैत संक्रांति के दिन चड़क पूजा का आयोजन होगा। दूसरे दिन बांग्ला पंचांग के अनुसार मंगलवार से बंगाब्ध 1421 की शुरुआत होगी। समाज के लोग नया वस्त्र धारण कर मंदिरों में पूजा-अर्चना और बड़ों का आशीर्वाद लेकर पोइला वैशाख की शुरुआत करेंगे। बंगाली परिवारों में तरह-तरह के व्यंजन व मिष्ठान्न बनाए जाएंगे। दोपहर को परोसे जाने वाले भोजन में मछली की प्रधानता होगी। कई परिवारों में खासतौर पर इलिश व चिंगड़ी मछली बनेगी। समाज के लोग मा काली और गणेश की पूजा-अर्चना कर उज्जवल भविष्य की कामना करेंगे। एक-दूसरे से मिलकर नववर्ष की बधाई दी जाएगी। व्यवसायी वर्ग नए खाते खोलने की शुरुआत करेगा। परंपरागत पूजा-अर्चना के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर शुरू होगा। कविगुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर की पंक्ति 'ऐशो हे बइशाख ऐशो..' बंगाली समाज के बीच इस दिन का महत्व साबित करता है। तमाम परिवारों में पोइला वैशाख के लिए खास तैयारियां की जा रही हैं। झारखंड में करीब 42 फीसदी आबादी बांग्ला भाषा-भाषी है। ऐसी मान्यता है कि 15 वीं शताब्दी से बंगाली समाज अपना नववर्ष मनाता आ रहा है।

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समाज के लोगों की नजर में पोइला वैशाख

बांग्ला में नए पंचांग की शुरुआत पोइला वैशाख से ही होती है। घर के सभी लोग नया वस्त्र धारण करते हैं। विशेष व्यंजन बनते हैं।

पारूल राय

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परिवार में लोग अपने बड़ों व आराध्य देवी-देवताओं से आशीर्वाद लेते हैं। इसमें किसी तरह का धार्मिक बंधन नहीं होता।

अरुणा दासगुप्ता

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यह सही है कि पूरी दुनिया में रह रहे लगभग सभी धर्मो के मानने वाले बंगाली परिवार इसे मनाते हैं। ढाका में विशेष उत्सव होता है।

सुपर्णा सेन शर्मा

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ऐसे बंगाली परिवार जो व्यवसायिक कामकाज में लगे हुए हैं। वह पोइला वैशाख से ही अपनी नई पंजिका की शुरुआत करते हैं।

तपन सेन शर्मा

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अगर बेहद सरल शब्दों में कहें तो दीप जलाने के अलावा वह सबकुछ होता है, जो दीपावली में किया जाता है।

प्रदीप दासगुप्ता

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रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अपनी रचना में पोइला वैशाख के महत्व को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है। यह परंपरा अब भी चल रही है।

देव प्रसाद घोष

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पोइला वैशाख के दिन शहर के तमाम मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है। होटलों में खास व्यंजन बनते हैं।

भवेश चंद्र देव

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बंगाली समाज की महिलाएं खासतौर पर इस दिन का इंतजार करती हैं। नये वस्त्र व व्यंजन को विशेष महत्व दिया जाता है।

रुमा बनर्जी

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झारखंड में रहनेवाली 42 फीसद बांग्ला भाषी आबादी पोइला वैशाख से ही अपने नववर्ष की शुरुआत मानती है।

प्रशांत बनर्जी


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