'दल' में मिले पर 'दिल' न जुड़े
जागरण संवाददाता, सासाराम : नमो की लहर में नेताओं के दल बदल व जुड़ने के बाद भी पुराने कार्यकर्ताओं का दिल अबतक नहीं जुड़ पाया है। चुनाव प्रचार में जिला स्तरीय कुछ अधिकारियों को छोड़ पार्टी के ग्रास रूट वर्कर माने जाने वाले कई कार्यकर्ता अब तक अपने को एडजस्ट नहीं कर पाए हैं। जिससे प्रचार वाहनों में प्रत्याशियों के साथ अधिकांश पुराने चेहरे ही दिखाई पड़ रहे हैं।
सासाराम सुरक्षित संसदीय क्षेत्र से जदयू छोड़ भाजपा में शामिल प्रत्याशी हों या नए गठबंधन में एनडीए के घटक बने रालोसपा उम्मीदवार। इनके चुनावी दौरों में भी प्रत्याशी के साथ पूर्व से रहने वाले लोगों की तादाद ज्यादा है। पंचायतों व गांवों में नमो के नाम पर मर मिटने वाले कार्यकर्ता दिल की दूरी को कम नहीं कर पाए हैं। हालांकि आरएसएस व उसकी आनुषांगिक संगठनों द्वारा जगह जगह समन्वय की बैठक कर दूरी को पाटने का प्रयास किया जा रहा है। कार्यकर्ताओं की मानें तो दल बदल के समय दर्जनों की तादाद में नेताओं के साथ उनके समर्थक भी शामिल हुए है। चुनाव में इन्हीं कार्यकर्ताओं की प्रधानता है। जिससे पार्टी के पुराने व कट्टर कार्यकर्ता समझे जाने वाले लोग उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। नगर व पंचायत स्तर पर हो रही बैठकों में भी इनकी संख्या काफी कम है। कुछ तो अपने प्रिय नेताओं के टिकट कटने के गम को अबतक नहीं भुला पाए हैं। भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं के नाम से पहचान बनाने वाले कार्यकर्ताओं की स्थिति और ही विषम है। काराकाट से टिकट पाने की आस लगाए रामेश्वर चौरसिया हों या सासाराम सीट के लिए उम्मीद पाले पूर्व सांसद मुनिलाल। दोनों सीटों से राजग प्रत्याशी के नामांकन व उसके बाद भी चुनाव प्रचार कार्य में इनकी अनुपस्थिति कार्यकर्ताओं की जुबां पर आ जा रही है। हालांकि नमो के लिए हर तरह की त्याग की दुहाई भी देने में वे नहीं हिचकते हैं।