न सब पढ़ रहे और ना ही सब बढ़ रहे
थानीदास (मऊ) : सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी सर्व शिक्षा अभियान का नारा 'सब पढ़ें और सब बढे़ं' अपने मुकाम को नहीं पा सका। विद्यालय को चमकाने सजाने व मुफ्त ड्रेस, किताब, भोजन, छात्रवृत्ति बटवाने में ही सरकार से लेकर शिक्षा विभाग तक अपनी सक्रियता दिखाता है। नौनिहालों के अरमानों को पर लगे इसके लिए सरकार या विभाग कोई के अंदर जज्बा दिखाई नहीं देता है। सरकारी स्कूलों का स्टेटस अभी भी 18वीं व 19वीं शताब्दी का बना हुआ है। इस कारण अभिभावक बच्चों को सरकारी स्कूलों की जगह कांवेंट स्कूलों में दाखिला करा रहे हैं।
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अभिभावक बोले, लचर व्यवस्था के चलते तोड़ रहे नाता
कुल्हड़ी निवासी परमहंस यादव का कहना है कि गर यहां ही नसीब जगमगाते तो कुछ और बात होती। सरकार की उदासीनता व विभाग की लचर व्यवस्था के कारण ही अभिभावक अपने बच्चों का नाता सरकारी स्कूलों से तोड़ने लगे हैं। एक तो हिंदी माध्यम दूसरे 5 तक की कक्षाओं के लिए किसी विद्यालय पर दो या तीन अध्यापक। ऊपर से सरकारी कार्य जैसे जनगणना, मकान-परिवार गणना, चुनाव ड्यूटी आदि। आखिर कैसे होगी समुचित शिक्षा की व्यवस्था।
अमिला निवासी आद्याशंकर मिश्रा का कहना है कि ऐसा नहीं है कि प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक छात्रों को पढ़ाने का कार्य नहीं करते हैं। अगर सरकार व विभाग इन विद्यालयों का वजूद बचाना चाहती है तो सरकारी स्कूलों को भी कांवेंट की तर्ज पर चलाए।
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अभिभावक दें ध्यान तो बने बात
बड़रांव शिक्षा क्षेत्र के अध्यापक अखिलेश्वर शुक्ला व घोसी शिक्षा क्षेत्र के अध्यापक ज्ञान प्रकाश का कहना है कि हम अध्यापकगण विद्यालय पर रोज बच्चों को पढ़ाने के लिए ही आते हैं। यह हमारा कर्म है। हम बच्चों को लगन के साथ पढ़ाते हैं लेकिन इसमें ऐसे ही बच्चे स्कूल आते हैं जिनके अभिभावक घर पर बच्चों का ध्यान नहीं देते हैं। विद्यालय में पठन-पाठन का कार्य विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई पाठ्य पुस्तक के अनुसार ही होता है।
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दावा : कर्तव्यनिष्ठ हैं अध्यापक
खंड शिक्षा अधिकारी चंद्रभूषण पांडेय का कहना है कि हमारे शिक्षक ईमानदारी से अपने कर्त्तव्य का पालन करते हैं। शासन द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार पठन पाठन का कार्य होता है।
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