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स्टेडियम के नाम पर मिली तो बस सियासत

सरकारें आई और गई। नेता, विधायक भी बने और मंत्री भी। जब भी चुनाव आए तो नेताजी खिलाड़ियों से यह वादे करते नहीं थके कि इस बार चुनाव जीता तो मसूरी में स्टेडियम पक्का। खिलाड़ियों ने भी आश्वासनों पर भरोसा किया, लेकिन अब सब्र जवाब देने को है। अब जबकि फिर चुनावी बेला आई है तो खिलाड़ी उद्वेलित हैं। वो पूछ रहे हैं कि नेताजी स्टेडियम बनेगा तो आखिर कब।

By Edited By: Published: Fri, 27 Jan 2012 07:10 PM (IST)Updated: Mon, 30 Jan 2012 06:43 PM (IST)
स्टेडियम के नाम पर मिली तो बस सियासत

देहरादून/मसूरी [अमित ठाकुर/एसएस रावत]। सरकारें आई और गई। नेता, विधायक भी बने और मंत्री भी। जब भी चुनाव आए तो नेताजी खिलाड़ियों से यह वादे करते नहीं थके कि इस बार चुनाव जीता तो मसूरी में स्टेडियम पक्का। खिलाड़ियों ने भी आश्वासनों पर भरोसा किया, लेकिन अब सब्र जवाब देने को है। अब जबकि फिर चुनावी बेला आई है तो खिलाड़ी उद्वेलित हैं। वो पूछ रहे हैं कि नेताजी स्टेडियम बनेगा तो आखिर कब।

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टूरिस्ट हब मसूरी ने देश को कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी प्रदान किए। इनमें आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे हॉकी खिलाड़ी शामिल हैं जिन्होंने ओलंपिक तक में देश का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि खिलाड़ियों की तीन पीढि़या एक स्टेडियम की माग करते-करते दुनिया छोड़ गई, लेकिन नेता आज भी खिलाड़ियों से झूठे वादे करने से बाज नहीं आ रहे। यह हालात तब हैं जबकि मसूरी ने देश को आधा दर्जन से अधिक ओलंपियन दिए हैं, रोलर हॉकी और रोलर स्केटिंग के ख्याति प्राप्त खिलाड़ी दिए। सत्तर के दशक में स्टेडियम की माग ने जोर पकड़ी, लेकिन राज्य बनने के बाद खेल मंत्री नारायण सिंह राणा ने स्टेडियम बनवाने का वादा तो किया, लेकिन हकीकत में हुआ कुछ नहीं। काग्रेसी शासन में भी खिलाड़ियों के हाथ खाली रहे और अब जबकि एक दशक से काग्रेस के ही विधायक मसूरी में आसीन हैं तो भी मसूरी के खिलाड़ी उपेक्षित ही रहे।

असल में खिलाड़ियों की बात कभी भी मजबूती से उठाई ही नहीं गई। अंतिम बार रमेश पोखरियाल निशक के मुख्यमंत्री काल में स्टेडियम के लिए फिर कवायद शुरू हुई। नगरपालिका को सीएम ने भूमि उपलब्ध कराने के निर्देश दिए, लेकिन असल में हुआ कुछ नहीं। यह सब प्रयास महज फाइलों और नेताओं की जुबान की शोभा बनने तक अटके हैं। इन हालातों में मसूरी के खिलाड़ी खुद को ठगा और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। मन में सवाल यह कि नेताओं ने स्टेडियम के नाम पर उन्हें कुछ दिया तो वह थी सियासत। ऐसे में खिलाड़ी मायूस हैं कि आखिर कब तक उनकी भावनाओं के साथ छल किया जाता रहेगा। क्या कभी वो दिन भी आएगा जबकि मसूरी के खिलाड़ियों के पास अपना स्टेडियम होगा।

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