Move to Jagran APP

सियासी गुफ्तगू पर लोग खामोश

विधानसभा चुनाव में भट्टा-पारसौल कांड को लेकर ज्यादातर प्रत्याशी मुद्दा बनाकर भुनाने में लगे हैं। किसानों में चुनाव को लेकर उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है। चुनावी चर्चा होते ही किसानों का दर्द छलकने लगता है। इनकी नाराजगी व सहानुभूति किस प्रत्याशी व पार्टी को रहेगी? इस सवाल पर किसान खामोश हैं। विभिन्न दलों के प्रत्याशियों ने गांव की दीवारों पर अपने पोस्टर लगा रखे हैं।

By Edited By: Published: Mon, 30 Jan 2012 10:40 PM (IST)Updated: Mon, 30 Jan 2012 10:50 PM (IST)
सियासी गुफ्तगू पर लोग खामोश

ग्रेटर नोएडा [जागरण संवाददाता]। विधानसभा चुनाव में भट्टा-पारसौल कांड को लेकर ज्यादातर प्रत्याशी मुद्दा बनाकर भुनाने में लगे हैं। किसानों में चुनाव को लेकर उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है। चुनावी चर्चा होते ही किसानों का दर्द छलकने लगता है। इनकी नाराजगी व सहानुभूति किस प्रत्याशी व पार्टी को रहेगी? इस सवाल पर किसान खामोश हैं। विभिन्न दलों के प्रत्याशियों ने गांव की दीवारों पर अपने पोस्टर लगा रखे हैं।

loksabha election banner

नौ माह पूर्व जमीन अधिग्रहण को लेकर भट्टा-पारसौल कांड पूरे देश में छाया रहा। बसपा को छोड़कर सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने गांव में पहुंच कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का प्रयास किया। किसानों में किसी भी पार्टी को लेकर कोई रुचि नहीं है। वहीं, आंदोलन के बदले किसानों को बहुत कुछ गंवाना पड़ा, लेकिन मिला कुछ नहीं। ऐसे में किसान किस पर भरोसा करें? इसका सवाल वे खुद ढूंढ रहे हैं। भट्टा गांव के विनोद शर्मा ने बताया कि आंदोलन से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था। उनकी जमीन का भी अधिग्रहण नहीं हुआ। इसके बाद भी आंदोलन का खामियाजा उन्हें उठाना पड़ा। एक छोटी-सी किरयाना की दुकान से उनके परिवार की रोजी-रोटी चलती थी। वह दुकान भी आंदोलन की भेंट चढ़ गई। कई महीनों तक घर छोड़ कर दूसरे गांव में छिपना पड़ा। नेताओं ने गांव में आकर सिर्फ राजनीतिक रोटी सेंकी, उन्हें क्या मिला। चुनाव में नेताओं पर कैसे भरोसा किया जा सकता है।

भट्टा गांव के कुलदीप को आंदोलन में अपने पिता राजपाल को गंवाना पड़ा। कुलदीप का कहना है कि पिता की मौत के बदले उन्हें नौकरी का भरोसा दिलाया गया था, लेकिन नौ माह बीत जाने के बाद भी नौकरी नहीं मिल पाई। पारसौल गांव के यशपाल का भी यही दर्द है। आंदोलन में यशपाल के पिता राजवीर की जान गई थी। यशपाल आज भी नौकरी का भरोसा लिए बैठा है। यशपाल का कहना है कि इस बार चुनाव में सोच-समझकर किसी प्रत्याशी पर भरोसा करेंगे। सिर्फ भट्टा व पारसौल गांव ही नहीं बल्कि आछेपुर, सक्का, मिर्जापुर आदि गांव भी इसकी चपेट में आए थे। इन सभी गांवों के किसानों में किसी भी प्रत्याशी व पार्टी को लेकर उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है।

किसानों का कहना है कि सोच-समझकर अंतिम समय ही कोई फैसला लेंगे। हालांकि इन गांवों में एक पार्टी को छोड़कर बाकी सभी दलों के प्रत्याशियों ने गांव में जाकर लुभाने का प्रयास किया। किसान आंदोलन के अगुवा मनवीर तेवतिया ने भी चुनाव मैदान में ताल ठोंकी है। उन्होंने भट्टा गांव में जहां पर दो महीने लगातार आंदोलन किया था, उसी स्थान पर अपना चुनाव कार्यालय बनाया है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.