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ग्लास्गो: स्वर्ण पदक जीत सतीश ने किया पिता का सपना पूरा

ग्लास्गो। हर पिता अपने बेटे को लेकर कोई न कोई सपना जरूर पालता है। सतीश शिवलिंगम के पिता भी कोई अलग नहीं थे। सेना में रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में कई पदक जीते, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने का उनका सपना अधूरा रहा और वह चाहते थे कि उनका बेटा उनके अधूरे सपने को पूरा करे। सोमवार को सतीश ने कॉमनवेल्थ गेम्स मे

By Edited By: Published: Tue, 29 Jul 2014 02:45 AM (IST)Updated: Tue, 29 Jul 2014 02:50 AM (IST)
ग्लास्गो: स्वर्ण पदक जीत सतीश ने किया पिता का सपना पूरा

ग्लास्गो। हर पिता अपने बेटे को लेकर कोई न कोई सपना जरूर पालता है। सतीश शिवलिंगम के पिता भी कोई अलग नहीं थे। सेना में रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में कई पदक जीते, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने का उनका सपना अधूरा रहा और वह चाहते थे कि उनका बेटा उनके अधूरे सपने को पूरा करे। सोमवार को सतीश ने कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण जीतकर अपने पिता के उस सपने को पूरा कर दिया।

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तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने सतीश को स्वर्ण पदक जीतने पर बधाई देते हुए राज्य की तरफ से नकद 50 लाख रुपये इनाम के तौर पर देने की घोषणा की। उन्होंने कहा, 'आपने देश और राज्य का मान बढ़ाया है। आप इस इनाम के हकदार हैं।'

दक्षिण रेलवे के कर्मचारी 22 वर्षीय शिवलिंगम ने कहा कि अगर वह चार साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद भी स्वर्ण नहीं जीत पाते तो उनके माता-पिता निराश हो जाते। सतीश ने कहा, 'मैं गरीब परिवार से हूं और मेरे पिता सेना में छोटे पद पर थे। वह राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेले थे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक नहीं जीत पाए थे। वह चाहते थे कि मैं बड़े अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में पदक जीतूं। मेरे माता-पिता वेल्लूर में अपने गांव में लोगों को कह रहे थे कि मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतूंगा। मैंने उनका सपना सच कर दिया।'

सतीश के पिता फिलहाल वीआइटी यूनिवर्सिटी (वेल्लूर) में सुरक्षाकर्मी के तौर पर तैनात हैं। वीआइटी ने भी अपने सुरक्षाकर्मी के इस लायक बेटे को एक भव्य कार्यक्रम में सम्मानित करने व इनाम देने की घोषणा की। यूनिवर्सिटी ने आगे भी सतीश को आर्थिक व अन्य सहायता देने का वादा किया।

सतीश ने भारोत्तोलन खेल अपनाने के बारे में कहा कि मेरे पिता ने मुझे भारोत्तोलन की ओर बढ़ाया और मैंने गांव के जिम में शुरुआत की, तब मैं महज 15 साल का था। पिछले चार साल से मैं ट्रेनिंग कर रहा हूं, पहले घर पर और फिर एनआइएस पटियाला में राष्ट्रीय शिविर में। मेरा ध्यान सिर्फ राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने पर लगा था।

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