शर्मनाकः भारतीय खेल प्राधिकरण ने गुमाई इस दिग्गज की नायाब धरोहर
महान हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर का दावा है कि भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) ने उनकी नायाब धरोहर गुमा दी है, जो उन्होंने 1985 में
चंडीगढ़। महान हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर का दावा है कि भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) ने उनकी नायाब धरोहर गुमा दी है, जो उन्होंने 1985 में दान में दी थीï। तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक (1948 लंदन, 1952 हेलसिंकी और 1956 मेलबर्न) विजेता बलबीर ने 27 साल पहले अपने 24 पदक, मेलबर्न ओलंपिक खेलों का कप्तान का ब्लेजर और कुछ दुर्लभ तस्वीरें साइ के तत्कालीन सचिव एएस तलवार को सौंपी थीं। उस समय उन्हें जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में साइ के खेल संग्रहालय में रखने का वादा किया गया था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब किसी को नहीं पता कि उनकी ये नायाब धरोहरें कहां हैं?
बलबीर ने बताया, 'मैंने ओलंपिक स्वर्ण को छोड़कर अपने सारे पदक साइ को सौंप दिए थे जिसमें टोक्यो एशियन गेम्स 1958 का रजत पदक भी शामिल था। इसके अलावा मेलबर्न ओलंपिक का ब्लेजर और भारत के पहले गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी,पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ कुछ नायाब तस्वीरें भी थीं। उन्होंने कहा कि दो साल पहले अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा चुने गए 100 साल के महानतम 16 ओलंपियनों में वह अकेले भारतीय थे और उनकी धरोहरें नुमाइश के लिए मांगी गईं, लेकिन जब उन्होंने साइ से इस बारे में संपर्क किया तो उसने पल्ला झाड़ लिया।
बलबीर ने कहा कि जब पूछा गया तो साइ ने कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है। मैंने सिर्फ ओलंपिक पदक भेज दिए जिनकी लंदन ओलंपिक के दौरान वहां नुमाइश की गई। बलबीर की बेटी सुशबीर भूमिया ने कहा कि हमने तत्कालीन खेलमंत्री अजय माकन को पत्र लिखा जिन्होंने मामला साइ को सौंपा। साइ को बार-बार ई-मेल करने पर हमें 18 जुलाई 2012 को साइ केतत्कालीन सचिव गोपाल कृष्ण का पत्र मिला कि उन्होंने एनआइएस पटियाला और दिल्ली स्थित मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में तलाश कराया है, लेकिन ब्लेजर दोनों जगहों पर नहीं है।
सुशबीर ने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल की मांग की है। उन्होंने कहा कि हमने पिछले दो साल में इस मामले में किसी से संपर्क नहीं किया और न ही मीडिया को बताया, क्योंकि हमें लगा कि अब यह दीवार के आगे सिर फोडऩे जैसा है। वह (बलबीर) हमेशा चुपचाप सब कुछ सहन करते रहे, लेकिन हमें पता है कि वे ब्लेजर और पदक उनके लिए कितने अहम हैं। सुशबीर ने कहा कि यदि आप उन्हें उनकी उपलब्धियों के लिए कुछ दे नहीं सकते तो कम से कम उनकी ऐतिहासिक धरोहरें संभालकर तो रखें। देश की खेल विरासत की कद्र करना तो सीखें ताकि अगली पीढिय़ां प्रेरित हो सकें।