कभी नहीं होते थे पैरों में जूते, आज जीत रही है दुनिया
खुशबीर कौर....आज 21 वर्षीय अमृतसर की इस लड़की को दुनिया जान चुकी है और जो नहीं जानते वो जल्द ही उन्हें जान जाएंगे। एशियन गेम्स
नई दिल्ली। खुशबीर कौर....आज 21 वर्षीय अमृतसर की इस लड़की को दुनिया जान चुकी है और जो नहीं जानते वो जल्द ही उन्हें जान जाएंगे। एशियन गेम्स 2014 में रविवार को 20 किलोमीटर रेस वॉक में सिल्वर मेडल जीतकर नया इतिहास रचने वाली खुशबीर ने उन सभी आलोचकों को करारा जवाब दिया जो ये कहते थे कि ऑफबीट खेलों में भारत को सफलता मिलना मुश्किल है। वैसे, खुशबीर की जिंदगी आसान नहीं रही, उनकी कहानी किसी मिसाल से कम नहीं है, आप भी जानिए भारतीय खेल जगत की इस नायिका की अद्भुत कहानी को....
- शुरू से ही खास थी खुशबीरः
एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक अमृतसर के रसूलपुर कलान गांव में आज तीन कमरों के घर में रहने वाली खुशबीर की मां जसवीर कौर ने अपनी बेटी की संघर्ष भरी दास्तां बयां की है। जसवीर के मुताबिक खुशबीर शुरू से ही खास थी। जहां उनके बाकी बच्चों ने एक साल की उम्र के बाद चलना शुरू किया था वहीं खुशबीर साढ़े नौ महीने की उम्र में ही चलने लगी थी। खुशबीर के पिता का साल 2000 में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। तभी से जसवीर खुशबीर को अपने साथ गांव की सड़कों व कभी-कभी घर की दीवार के ऊपर भी चलवाया करती थी। खुशबीर का रुझान तब तक एथलेटिक्स में नहीं था जब तक उसकी बहन हरजीत कौर ने अपने स्कूल में 3000 मीटर रेस करने का फैसला नहीं लिया। अपनी बहन को देखकर खुशबीर ने एथलेटिक्स में कदम आगे बढ़ाए और देखते-देखते 2007 में वो 3000 मीटर रेस में राज्य की चैंपियन बन गई।
- जूते तो नहीं थे, हौसला थाः
खुशबीर की बहन के मुताबिक खुशबीर हमेशा से ही चलना पसंद करती थी। 2007 में राज्य चैंपियन बनने के बाद उनके पास कोई जमीन-जायदाद तो दूर, जूते खरीदने के पैसे तक नहीं थे लेकिन फिर भी गांव की कठोर सड़कों पर खुशबीर नंगे पांव ट्रेनिंग किया करती थी। हैरत की बात तो ये थी कि 2008 में खुशबीर ने बिना जूतों के जूनियर नेश्नल चैंपियनशिप अपने नाम की। इस सफलता के बाद खुशबीर ने अमृतसर के एक कॉलेज में दाखिला लिया और वहां एक पूर्व एशियन चैंपियनशिप पदक विजेता से ट्रेनिंग लेनी शुरू की। उनके कोच के मुताबिक शुरुआत में खुशबीर के पास जूते और जरूरी साधन मौजूद नहीं थे लेकिन हमने जगह-जगह से पैसे चंदा करके ये जरूरतें पूरी कीं। धीरे-धीरे मेहनत रंग लाई और 2010 में सिंगापुर में रेस वॉक प्रतियोगिता में खुशबीर ने पहली सफलता हासिल की।
- आज कर रही हैं उस कमी को पूराः
बचपन में जूते न होने का दर्द खुशबीर के साथ हमेशा रहा और पहले 10 किलोमीटर रेस वॉक में राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाने व फिर यूथ एशियन गेम्स 2010 में सिल्वर मेडल जीतने के बाद खुशबीर ने अपनी उस कमी को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी बहन के मुताबिक आज जब भी खुशबीर विदेश जाती हैं तो कुछ भी हो जाए, वो अपने परिवार के लोगों के लिए जूते लाना नहीं भूलतीं। खासतौर पर अपने छोटे भाई के लिए जो कि एथलेटिक्स में उन्हीं की राह पर चल पड़ा है।