कोच व 5 भारतीय पहलवानों पर बैन का खतरा, अयोग्य जांचकर्ताओं का ये कैसा रवैया?
कुछ अयोग्य जांचकर्ताओं की वजह से भारतीय पहलवानों के इस प्रयास में सुराग होता नजर आ रहा है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। कुश्ती उन खेलों में है जिसने पिछले कुछ ओलंपिक खेलों में भारतीय तिरंगे को बार-बार सम्मान दिलाने का काम किया है। मिट्टी से मैट तक पहुंचे इस खेल में आज जहां भारत नए खिलाड़ी सामने लाने व नए कीर्तिमान रचने के प्रयास में जुटा है। वहीं, कुछ अयोग्य जांचकर्ताओं की वजह से भारतीय पहलवानों के इस प्रयास में सुराग होता नजर आ रहा है।
- भारतीय पहलवानों पर बैन का खतरा
दरअसल, एशियाई चैम्पियनशिप में जिन 49 पहलवानों का डोप टेस्ट किया गया था, सभी का टेस्ट नेगेटिव आया है लेकिन चिंता वाली बात ये है कि ऑस्ट्रेलियन स्पोर्ट्स एंटी डोपिंग एजेंसी (ASADA) के एक गैर-पेशेवर रुख से पांच भारतीय पहलवानों और कोच पर प्रतिबंध का खतरा मंडराने लगा है।
- चैंपियनशिप से एक दिन पहले भारतीय पहलवानों पर धावा बोला
एक चैंपियनशिप शुरू होने से पहले खिलाड़ी की सोच और उसका फोकस पूरी तरह से अपने खेल पर रहता है और ऐसी स्थिति में वो कुछ भी ऐसा नहीं चाहता जिससे उसका ध्यान भटक जाए। एशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप शुरू होने से एक दिन पहले कुछ ऐसा ही हुआ जब इसके आयोजन स्थल पर ASADA ने धावा बोल दिया और जिन पांच पहलवानों के मुक़ाबले पहले दिन होने थे, उनके डोप टेस्ट का फैसला लिया गया। ये पांच पहलवान थे – रवींद्र (66 किलो), गुरप्रीत सिंह, हरप्रीत सिंह (80 किलो), हरदीप (98 किलो) और नवीन (130 किलो)। इनके वजन शाम छह बजे थे लेकिन अधिकारियों की यह टीम पांच बजे से पहले ही इन पहलवानों के यूरिन सैम्पल लेने के लिए पहुंच गई। कोच कुलदीप ने उन्हें समझाया कि आम तौर पर पहलवान का वजन प्रतियोगिता शुरू होने से पहले निर्धारित वजन से अधिक होता है, वह वजन घटाने के लिए करीब-करीब खाना-पीना तक छोड़ देता है और वजन के बाद ही भोजन लेता है। मगर उनकी सुनने के लिए कोई तैयार नहीं था। ऐसे में पहलवान वजन कम करने पर ध्यान केंद्रित करें या ज़्यादा पानी पीकर डोप टेस्ट दें। ऐसी स्थिति में वजन न आने का खतरा भी पैदा हो सकता है, जिसकी तरफ कोच के समझाने के बावजूद अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया।
- खेल साफ करो, खिलाड़ियों के करियर नहीं
बेशक डोपिंग खेल जगत में कलंक की तरह है और इसके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने जरूरी हो गए हैं। अगले साल होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स को ध्यान में रखते हुए ही ASADA ने अभी से कमर कस ली है और वह दुनिया भर में होने वाली प्रतियोगिताओं में खिलाड़ियों के डोपिंग सैम्पल ले रही है। लेकिन यहां यह भी ज़रूरी है कि उसका रवैया व्यावहारिक होना चाहिए। उसे बेवजह का आतंक फैलाने से बचना चाहिए। कुश्ती से एक दिन पहले का जो समय पहलवान या कोच के लिए अति संवेदनशील होता है, उसी में ये अधिकारी बेवजह खिलाड़ियों पर दबाव बनाते हैं। अब अगर इनके कहने पर कोच इन्हें खूब पानी पीने की अनुमति दे देते तो क्या पहलवान का वजन अधिक होने का खतरा पैदा नहीं हो जाता। उस स्थिति में कौन जवाबदेह होता। आरोप कोच पर ही लगते। अतीत में पप्पू यादव से लेकर विनेश फोगट तक कितने ही ऐसे खिलाड़ी हुए हैं, जिनका अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में वजन नहीं आया। खेल विशेषज्ञ और लंबे समय से कुश्ती से जुड़े रहने वाले कमेंटेटर मनोज जोशी कहते हैं, 'कामनवेल्थ गेम्स को साफ सुथरा बनाने के लिए ऑस्ट्रेलियन डोपिंग एजेंसी का गठन हुआ है उसका सबने स्वागत भी किया है। लेकिन अधिकारियों को शिक्षित करने की जरूरत है। टेबल टेनिस जैसे खेल के खिलाड़ियों और पहलवानों में फर्क पहचानने की जरूरत है। पहलवान को आखिरी समय पर यूरीन टेस्ट देने के लिए मजबूर करना गलत है क्योंकि उनको अंतिम समय पर पानी पीने पर मजबूर करा जाता है। उनकी मंशा तो ठीक है लेकिन योग्यता की कमी की वजह से वे अभद्र रवैया अपना रहे हैं।'
- पहले अव्यवहार और अब प्रतिबंध का दबाव भी
ASADA का दल यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग से अनुमति लेकर यहां आया था। उसने पूरे घटनाक्रम की शिकायत वाडा से की है और ये दोनों मिलकर नाडा पर दबाव बना रहे हैं कि इन पांच खिलाड़ियों और कोच पर कार्रवाई की जाए। वाडा कोड के अनुसार डोप टेस्ट में सहयोग न करने पर खिलाड़ी को दो साल के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता है और यदि इस काम में कोच बाधा डालता है तो उसे राष्ट्रीय टीम की कमान से उतने समय के लिए हटाया जा सकता है जितने समय खिलाड़ी पर प्रतिबंध लगता है। खेल विशेषज्ञ मनोज जोशी कहते हैं कि, 'वेटलिफ्टिंग, कुश्ती, जूडो जैसे खेलों को कुश्ती जैसे खेल से जोड़कर नहीं देख सकते।' यहां शर्मनाक यह है कि जिस कोच ने पहलवानों का सही बात के लिए साथ दिया, उसे सफाई देने के लिए कठघरे में खड़ा किया जा रहा है।
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