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कहीं खो गया वो चमकता सितारा

राजीव शर्मा, नई दिल्ली। जिमनास्ट आशीष कुमार अंतरराष्ट्रीय फलक पर सितारों की तरह चमकना चाहते थे। उनकी एक यही हसरत थी। इलाहाबादी छोरे ने ऐसा किया भी। लेकिन दो साल बाद ही यह चमकता सितारा न जाने कहां खो गया। भारतीय जिमनास्टिक महासंघ पर कब्जे को लेकर दो गुटों के बीच खींचतान के चलते असीमित प्रतिभा का धनी यह खिल

By Edited By: Published: Sat, 10 Aug 2013 08:02 PM (IST)Updated: Sat, 10 Aug 2013 08:04 PM (IST)
कहीं खो गया वो चमकता सितारा

राजीव शर्मा, नई दिल्ली। जिमनास्ट आशीष कुमार अंतरराष्ट्रीय फलक पर सितारों की तरह चमकना चाहते थे। उनकी एक यही हसरत थी। इलाहाबादी छोरे ने ऐसा किया भी। लेकिन दो साल बाद ही यह चमकता सितारा न जाने कहां खो गया। भारतीय जिमनास्टिक महासंघ पर कब्जे को लेकर दो गुटों के बीच खींचतान के चलते असीमित प्रतिभा का धनी यह खिलाड़ी कहीं गुम हो गया। पिछले दो साल से अंतरराष्ट्रीय तो क्या किसी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी हिस्सा नहीं ले पाए। अब तो आशीष को यह भी पता नहीं कि वह फिर से चमक पाएगा भी यह नहीं।

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राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में जुटे रेलवे के इस जिमनास्ट ने कहा, 'मेरा क्या कसूर है। मुझे किस बात की सजा मिल रही है। दो साल से अभ्यास कर रहा हूं पर प्रतियोगिता में भाग नहीं ले पा रहा हूं। मुझे यह भी पता नहीं मैं कहां खड़ा हूं। बिना टूर्नामेंट खेले खुद का आकलन करना भी मुश्किल है। दो साल में कितनी ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हुई। अगर इनमें भाग लेता तो पदक तो जीतता ही रैंकिंग में भी सुधार होता। 2010 में विश्व में 22वीं रैंकिंग पर था। अब तो रैंकिंग का पता ही नहीं। अगर लगातार खेलता तो शीर्ष पांच में जरूर होता। मेरे इन दो सालों की भरपाई कौन करेगा।'

अर्जुन अवार्डी आशीष कहते हैं, खैर जो बीत गया उसे याद करने से क्या फायदा। अब भविष्य की चिंता है। फिलहाल मेरा लक्ष्य अगले साल ग्लासगो (स्कॉटलैंड) राष्ट्रमंडल खेल हैं। उसी के लिए जी जान से तैयारी कर रहा हूं। ताकि, मैं फिर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी चमक बिखेर सकूं।

आशीष की उपलब्धियां

1- 2010 के दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों की जिमनास्टिक प्रतियोगिता में पुरुषों की व्यक्तिगत फ्लोर स्पर्धा में कांस्य और वोल्ट स्पर्धा में रजत पदक जीतकर रचा इतिहास

2- इसी वर्ष ग्वांग्झू में हुए एशियाई खेलों में फ्लोर स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने।

3- 2011 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित। इनके गुरु देवेंद्र कुमार राठौर को भी द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित किया गया। पहली बार किसी खेल में गुरु-शिष्य को एक साथ पुरस्कृत किया गया।

कुर्सी की लड़ाई भारतीय जिमनास्टिक महासंघ पर कब्जे को लेकर जसपाल सिंह कंधारी और पीवी राठी गुट में पिछले दो साल से विवाद चल रहा है। मामला कोर्ट में है। सरकार ने दोनों संघों की आर्थिक सहायता तक बंद कर दी है। हालांकि, इंडियन ओलंपिक संघ (आइओए) और अंतरराष्ट्रीय जिमनास्टिक महासंघ ने कंधारी गुट को मान्यता दे रखी है।

'आइओए और अंतरराष्ट्रीय जिमनास्ट महासंघ से हमें मान्यता मिली हुई है। दिल्ली में राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों के लिए चल रहे शिविर में भी हमारे द्वारा चयनित खिलाड़ी ही भाग ले रहे हैं। शुक्रवार को ही हमने अपने खर्च पर खिलाड़ियों के लिए अमेरिका से नए कोच जिम होल्ट की नियुक्ति की है। जो बीत चुका उसकी भरपाई तो हम नहीं कर सकते, लेकिन भविष्य में खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं देने की हरसंभव कोशिश करेंगे।'

जसपाल सिंह कंधारी (अध्यक्ष जिमनास्टिक संघ)

'मैं कुर्सी के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहा हूं। यह भी सच है कि अंतरराष्ट्रीय महासंघ और आइओए से कंधारी गुट को ही मान्यता मिली हुई है। मैं आज भी कंधारी गुट से समझौते के लिए तैयार हूं। लेकिन वह बातचीत के लिए तैयार नहीं हैं।'

पीवी राठी (बागी गुट के अध्यक्ष)

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