इस पहेली को कब सुलझाएंगे PM, ये है भारतीय खेल इतिहास की सबसे बड़ी नाइंसाफी
एक नाइंसाफी की कहानी ऐसी भी है जो भारतीय खेल इतिहास की सबसे बड़ी पहेली बन चुकी है।
(शिवम् अवस्थी), नई दिल्ली। भारतीय खेल जगत में खिलाड़ियों के साथ नाइंसाफी होने की कहानी नई नहीं है। आए दिन एक नई खबर युवा खिलाड़ियों के विश्वास को झकझोरती है। एक नाइंसाफी की कहानी ऐसी भी है जो भारतीय खेल इतिहास की सबसे बड़ी पहेली बन चुकी है, 'पहेली' इसलिए क्योंकि आज तक इसके पीछे की वजह का खुलासा नहीं हुआ है। सरकारें इस पहेली से मुंह चुराती आई हैं जबकि ज्यादातर लोगों को इससे मतलब ही नहीं रहा।
- सबसे बड़ी नाइंसाफी
हम बात कर रहे हैं पूर्व महान भारतीय हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जिनका आज जन्मदिन है।
उनके जन्मदिन को देश में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है, दिल्ली स्थित राष्ट्रीय स्टेडियम उनके नाम पर है, विदेश तक में तमाम प्रतिष्ठानों के नाम उन पर रखे गए हैं, उनको विश्व हॉकी इतिहास का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी माना जाता है और सबसे बड़ी बात की हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है......इसके बावजूद अब तक ध्यानचंद को भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया गया।
- जब हार गए ध्यानचंद....
दो साल पहले जब पहली बार किसी खिलाड़ी को भारत रत्न देने के बारे में सोचा गया तो खूब बहस हुई कि आखिर सचिन तेंदुलकर को सबसे पहले ये सम्मान दिया जाए या फिर स्वर्गीय ध्यानचंद को। ध्यानचंद ने भारत के लिए ओलंपिक के तो कई पदक जीते लेकिन वो इस जंग में हार गए।
दद्दा के नाम से मशहूर ध्यानचंद के पुत्र अशोक ध्यानचंद ने तमाम पूर्व दिग्गजों के समर्थन के साथ अपने स्वर्गीय पिता के नाम को लेकर आवाज तो उठाई लेकिन किसी को परवाह नहीं हुई और सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दे दिया गया। हम ये तो तय नहीं कर सकते कि सचिन और दद्दा में कौन ज्यादा महान है क्योंकि दोनों की सफलताएं शानदार हैं लेकिन ये जरूर कह सकते हैं कि अपने राष्ट्रीय खेल के सबसे महान खिलाड़ी के साथ अब तक इंसाफ नहीं हुआ। अब उम्मीद की जा रही है कि 70 सालों से चली आ रही ये उपेक्षा मोदी सरकार के कार्यकाल में खत्म हो जाएगी।
ध्यानचंद का अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय सफर
जन्म- 29 अगस्त, 1905 (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश)
मृत्यु- 3 दिसंबर, 1979
सीनियर करियर- 1921-1956 (भारतीय सेना)
राष्ट्रीय टीम करियर- 1926-1948
ओलंपिक करियर- तीन टीम गोल्ड मेडल (1928, 1932 और 1936)
गोल- 400 से ज्यादा
आर्मी से रिटायरमेंट- 51 की उम्र में
कुछ दिलचस्प बातें
- एक बार हॉकी मैच के दौरान वो लगातार गोल करने से चूक रहे थे। उनकी मैच रेफरी से इस बात पर बहस हुई कि गोल पोस्ट का साइज सही नहीं है। जब नाप की गई तो पता चला कि ध्यानचंद सही कह रहे थे।
- 1936 ओलंपिक का पहला मैच खेलने के बाद जर्मन मीडिया उनकी इतनी बड़ी फैन हो गई देखते-देखते पूरे बर्लिन में पोस्टर लग गए कि 'भारतीय जादूगर को देखने हॉकी स्टेडियम पहुंचे'।
- माना जाता है कि जर्मनी का तानाशाह हिटलर उस दौरान ध्यानचंद से इतना प्रभावित हो गया था कि उन्हें अपनी सेना में कर्नल का पद ऑफर कर दिया था। हालांकि देशभक्त ध्यानचंद ने ये ऑफर ठुकरा दिया।
- क्रिकेट के महान खिलाड़ी डॉन ब्रैडमेन ने जब पहली बार ऑस्ट्रेलिया में ध्यानचंद को हॉकी खेलते देखा तो कहा कि, 'ये ऐसे गोल मारता है जैसे क्रिकेट में रन हों'।
- विएना (ऑस्ट्रिया) में स्थानीय लोग ध्यानचंद की ड्रिबलिंग से इतना प्रभावित हुए कि उनकी एक मूर्ती स्थापित कर दी गई जिसमें ध्यानचंद के चार हाथ और चार हॉकी दिखाई गईं।
- लंदन के ट्यूब यानी मेट्रो स्टेशन में एक का नाम ध्यानचंद पर रखा गया था। कई एथलीटों के नाम पर इन स्टेशन के नाम रखे गए थे लेकिन दुनिया के सिर्फ छह हॉकी खिलाड़ी ये सम्मान हासिल कर सके।