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नंदा पथ पर बेबसी को मात दे रहीं बेनूर आंखें

तन की आंखें भले ही प्रकृति के सौंदर्य को न निहार पा रही हों, लेकिन मन की आंखों में नंदा पथ गहरे तक समाया हुआ है। तभी तो मार्ग की दुश्वारियों जानते-बूझते यह दृष्टिहीन युवक बढ़े चला जा रहा है उन ऊंचाइयों की ओर, जहां प्रकृति एवं पुरुष एकाकार हो उठते हैं। ग्राम सिमली (कण

By Edited By: Published: Sun, 31 Aug 2014 01:09 PM (IST)Updated: Sun, 31 Aug 2014 03:18 PM (IST)
नंदा पथ पर बेबसी को मात दे रहीं बेनूर आंखें

चेपड़्यूं [चमोली], [राजू पुशोला]। तन की आंखें भले ही प्रकृति के सौंदर्य को न निहार पा रही हों, लेकिन मन की आंखों में नंदा पथ गहरे तक समाया हुआ है। तभी तो मार्ग की दुश्वारियों जानते-बूझते यह दृष्टिहीन युवक बढ़े चला जा रहा है उन ऊंचाइयों की ओर, जहां प्रकृति एवं पुरुष एकाकार हो उठते हैं। ग्राम सिमली (कर्णप्रयाग) निवासी इस युवक का नाम है देवेंद्र सिंह झिंकवाण और उम्र 34 साल। मेरी पहली मुलाकात देवेंद्र से भगोती जाते हुए कोटि के पास हुई।

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पहले तो मैंने देवेंद्र पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक जगह रास्ता पूछने के बहाने परिचय होते ही वह मेरी जिज्ञासाओं का केंद्र बन गया। मेरे लिए वह इस यात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण है। इसकी वजह है दृष्टिहीन होने के बावजूद उसका इस चुनौतियों भरी यात्रा का हिस्सा बनना। छह साल की उम्र में ही देवेंद्र के सिर से पिता का साया उठ गया था। इसके बाद बुआ ने उसे पाला। एक बहिन थी, कुछ साल पहले उसकी भी मृत्यु हो गई। बड़ा भाई है दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता है।

बकौल देवेंद्र, 'पहले मेरी आंखें ऐसी नहीं थी। जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था तो एक दिन मैं बुआ से नाराज होकर जंगल चला गया। जंगल में एक पेड़ पर झूला झूलने लगा, अचानक झूला टूट गया और मेरी कमर पर गंभीर चोट आई।' वह बताया है 'इससे मुझे पैरालिसिस का अटैक पड़ गया। तकरीबन एक साल श्रीनगर बेस अस्पताल में इलाज चला। खैर! मैं अच्छा हो गया, लेकिन दुर्भाग्य मेरे साथ-साथ चल रहा था। 10वीं की परीक्षा के दौरान मेरी आंखें कमजोर होने लगी और धीरे-धीरे..।' यह कहते-कहते देवेंद्र बंद आंखों से आसमान की ओर निहारने लगा।

उसे विश्वास है कि एक न एक दिन उसकी आंखों की ज्योति जरूर लौट आएगी। इसी मन्नत के साथ वह राजजात में शामिल हुआ है। बकौल देवेंद्र, 'मैंने सुना है कि भगोती नंदा किसी को निराश नहीं करती। मुझे पूरा विश्वास है कि मैं होमकुंड तक पहुंच गया तो फिर खुली आंखों से इस दुनिया को देख सकूंगा। मुझे यात्रा में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं हो रही है। भगोती की कृपा है और उम्मीद है कि आगे भी बनी रहेगी।'

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