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गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट खुले, शुरू हुई जन्म से मोक्ष तक की यात्रा

चारधाम की पवित्र यात्रा आज 21 अप्रैल से शुरू हो रही है। 21 अप्रैल मंगलवार गंगोत्री और यमुनोत्री धामों के कपाट खुलेंगे, जबकि केदारनाथ के कपाट 24 अप्रैल और बदरीनाथ के कपाट 24 अप्रैल को खुलने हैं। चारधाम यात्रा की तैयारियों के बीच गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 21 Apr 2015 11:00 AM (IST)Updated: Tue, 21 Apr 2015 01:16 PM (IST)
गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट खुले, शुरू हुई जन्म से मोक्ष तक की यात्रा

देहरादून। अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच विश्व प्रसिद्ध धाम गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट श्रद्धाुलओं के लिए खोल दिए गए है। इसी के साथ आगामी छह माह के लिए चार धाम यात्रा का भी शुभारंभ हो गया। गंगोत्री धाम के कपाट तय समय पर खोले गए, लेकिन यमुनोत्री के लिए समय में अंतिम वक्त फेरबदल किया गया। कपाट खुलने के दौरान दोनों धामों में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। गंगोत्री में कपाट खुलने के अवसर पर मुख्यमंत्री हरीश रावत भी मौजूद थे। इसके साथ ही चारधाम यात्रा का श्रीगणेश भी हो गया है।

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मंत्रोच्चार के बाद यमुनोत्री के कपाट खुले-

मंत्रोच्चार के बाद विधि विधान से यमुनोत्री के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले गए। यमुना की भोगमूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया। इस दौरान श्रद्धालुओं ने तप्तकुंड में स्नान कर मां यमुना का आशीर्वाद लिया। इसके साथ ही चारधाम यात्रा का श्रीगणेश भी हो गया है।

चारधाम की पवित्र यात्रा आज 21 अप्रैल से शुरू हो गई है। आज अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू हुई। 21 अप्रैल मंगलवार गंगोत्री और यमुनोत्री धामों के कपाट खुल गए। जबकि केदारनाथ के कपाट 24 अप्रैल और बदरीनाथ के कपाट 24 अप्रैल को खुलने हैं।

चारधाम यात्रा की तैयारियों के बीच गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुल गए।गंगोत्री के कपाट खुलने से पहले ही धामों में देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने डेरा जमा लिया।

गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू -

आज अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने की प्रक्रिया सुबह ही शुरू हो गई थी। गंगा की डोली मंत्रोच्चारण के साथ तीर्थपुरोहितों के साथ सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में भैरोंघाटी से गंगोत्री धाम के लिए रवाना हो गई। गंगोत्री धाम के कपाट दोपहर 12.30 बजे खुल गए।

वहीं यमुना की डोली आराध्य शनिदेव की अगुवाई में खरसाली गांव से सुबह आठ बजे यमुनोत्री धाम के लिए रवाना हो गई। यमुनोत्री धाम के कपाट पूर्वाहृन 11.30 श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये गए। इसके लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थी।

चारधाम यात्रा शुरू होने के साथ ही धामों में रौनक लौट आएगी। जिला प्रशासन स्तर पर धाम में बुनियादी सुविधाओं की बहाली के लिए युद्धस्तर पर तैयारी पूरी कर ली गई है। अक्षय तृतीया के मौके पर गंगा पूजन और सहस्त्रनाम पाठ के साथ गंगोत्री व यमुनोत्री धाम के कपाट खोले गए। गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा शुरू हो गई । विद्वानों ने चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :

यमुनोत्री

चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।

गंगोत्री

कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।

केदारनाथ

रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।

बदरीनाथ

नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।


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