Move to Jagran APP

बुद्ध पूर्णिमा: इस स्नान से मिलता है पूरे बैसाख का फल, राशियों पर असर

पुण्य माह बैसाख का अंतिम स्नान आज चार मई पूर्णिमा के दिन है। इस बार इसका महत्व पूरे बैसाख माह के स्नान के बराबर है। पूर्णिमा तिथि तीन मई को सुबह 7 बजकर 59 मिनट से आरंभ होकर चार मई को सुबह नौ बजकर 12 मिनट तक था इसलिए पूर्णिमा

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 04 May 2015 11:07 AM (IST)Updated: Mon, 04 May 2015 01:25 PM (IST)
बुद्ध पूर्णिमा: इस स्नान से मिलता है पूरे बैसाख का फल, राशियों पर असर

पुण्य माह बैसाख का अंतिम स्नान आज चार मई पूर्णिमा के दिन है। इस बार इसका महत्व पूरे बैसाख माह के स्नान के बराबर है। पूर्णिमा तिथि तीन मई को सुबह 7 बजकर 59 मिनट से आरंभ होकर चार मई को सुबह नौ बजकर 12 मिनट तक था इसलिए पूर्णिमा का पुण्य स्नान तीन व चार मई को किया गया।

loksabha election banner

प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि श्रीहरि विष्णु भगवान को समर्पित होती है। शास्त्रों में पूर्णिमा को तीर्थ स्थलों में गंगा स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। बैसाख पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इस पूर्णिमा को सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में होते हैं और चंद्रमा भी उच्च राशि तुला में। संयोगवश इस बार पूर्णिमा को स्वाती नक्षत्र का योग भी है, जिससे पूर्णिमा का महत्व और अधिक बढ़ गया है।

शास्त्रों में पूरे बैशाख माह में गंगा स्नान का महत्व बताया गया है। पूर्णिमा का स्नान यदि स्वाती नक्षत्र में हो तो पूरे बैसाख के स्नान के बराबर पुण्य मिलता है, इस वर्ष ऐसा संयोग बना है। स्वाती नक्षत्र तीन मई को सुबह आठ बजकर 43 मिनट से आरंभ होकर चार मई को 10 बजकर 32 मिनट तक रहा यानी संपूर्ण पूर्णिमा तिथि में स्वाति नक्षत्र रहेगा। इस कारण इस वर्ष के स्नान का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है। बैसाख माह की पूर्णिमा को ही भगवान बुद्ध का जन्म भी हुआ था। इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं।

राशियों के लिए फल-

शुक्र का मिथुन में प्रवेश- शुक्र ग्रह दो से 30 मई तक अपने मित्र बुध की राशि में प्रवेश करेगा। बुध भौतिक सुख साधनों का प्रतिनिधित्व करता है। इस कारण लोगों में भौतिकतावादी विचार अधिक प्रबल हो सकते हैं, क्योंकि मिथुन वायु स्वभाव की राशि है, लोगों में एक साथ बहुत सारे काम कर लेने की इच्छा भी हो सकती है। शुक्र-मंगल, राहु और गुरु के नक्षत्रों में भ्रमण करेगा। ऐसे में जिन जातकों को शुक्र की दशा या अंतरदशा है उन्हें ग्रहों की यह स्थिति अधिक प्रभावित करेगी।

पंडितों के अनुसार जब शुक्र मिथुन राशि में जाता है तो साहित्य में रुचि, संगीत आदि क्षेत्रों में बढ़ावा मिलता है। तिलहन और दालें महंगी होगी। कवि, चित्रकार, संगीत प्रेमियों के लिए अति शुभ फल देने वाला यह योग माना जाता है।

आस्था नहीं, अनुभव जरूरी -

बुद्ध सबसे बड़े वैज्ञानिक विश्लेषक थे। उन्होंने कहा कि जो मैं कहता हूं, उसे भी मत मानो, जब तक वह तुम्हारे अनुभव की कसौटी पर सही न हो।

हिमाच्छादित पर्वत तो कई हैं, पर हिमालय अतुलनीय है। हिमालय बस हिमालय जैसा है। इसी तरह गौतम बुद्ध बस गौतम बुद्ध जैसे हैं। गौतम बुद्ध ने जितने हृदयों की वीणा को बजाया है, उतना किसी और ने नहीं। गौतम बुद्ध के माध्यम से जितने लोग जागे, उतने किसी और के माध्यम से नहीं। गौतम बुद्ध की वाणी अनूठी है। विशेषकर उनके लिए, जो सोच-विचार, चिंतन-मनन, विमर्श के आदी हैं। हृदय से भरे हुए लोग सुगमता से परमात्मा की तरफ चले जाते हैं, लेकिन हृदय से भरे हुए लोग कहां हैं? बुद्ध ने उनको चेताया, जिनको चेताना सर्वाधिक कठिन है। वे लोग थे, विचार से भरे बुद्धिवादी।

बुद्ध का धर्म बुद्धि का धर्म कहा गया है। बुद्धि पर उसका आदि तो है, पर अंत नहीं। प्रारंभ बुद्धि से है, लेकिन अंत परम अतिक्रमण में है, जहां सब विचार खो जाते हैं, बुद्धिमत्ता विसर्जित हो जाती है। बुद्ध का प्रभाव उन लोगों में तत्क्षण अनुभव होता है, जो सोच-विचार में कुशल हैं।

पच्चीस सौ वर्ष पहले बुद्ध ने वह कहा जो आज भी सार्थक है और जो सदियों तक सार्थक रहेगा। बुद्ध ने विश्लेषण दिया। उन्होंने जीवन की समस्या के उत्तर शास्त्र से नहीं दिए, विश्लेषण की प्रक्रिया से दिए।

बुद्ध धर्म के पहले वैज्ञानिक हैं। उनके साथ श्रद्धा और आस्था की जरूरत नहीं। उनके साथ तो समझ पर्याप्त है। अगर तुम समझने को राजी हो, तो बुद्ध की नौका में सवार हो जाओगे। बुद्ध यह नहीं कहते कि जो मैं कहता हूं, भरोसा कर लो। बुद्ध कहते हैं, सोचो, विचारो, विश्लेषण करो अपने अनुभव से, तब भरोसा करो।

दुनिया के सारे धर्मों ने श्रद्धा को पहले रखा है, लेकिन बुद्ध ने कहा, अनुभव प्राथमिक है, श्रद्धा आनुषंगिक है। बुद्ध कहते हैं, आस्था की कोई जरूरत नहीं, अनुभव के साथ अपने आप आ जाएगी। लाई हुई आस्था का मूल्य कुछ नहीं। उस आस्था के पीछे संदेह छिपे होंगे। विश्वास के पीछे अविश्वास खड़ा होगा। तुम्हारी दृढ़ता कांपती रहेगी। जो तुम्हारे अनुभव में नहीं उतरा है, उसे तुम कैसे मान सकते हो? इसीलिए बुद्ध ने कहा है कि सोचना, विचारना, उसे जीना। तुम्हारे अनुभव की कसौटी पर सही हो जाए, तभी वह सही है।

बुद्ध के अंतिम वचन हैं, 'अप्प दीपो भव। अपना दीया खुद बनना। तुम्हारी रोशनी में जो दिखायी पड़ेगा, उस पर तुम्हें आस्था होगी। वह आस्था सहज होगी।

बुद्ध पर भरोसा करना सुगम होता है। उनके शब्द-शब्द में वजन होता है। लेकिन बुद्ध ने कहा, 'मेरी रोशनी लेकर मत चलना। मेरी रोशनी में थोड़ी देर रोशन हो लोगे, पर जब हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे तो मेरी रोशनी मेरे साथ होगी, तुम्हारा अंधेरा तुम्हारे साथ होगा। अपनी रोशनी खुद पैदा करो। अप्प दीपो भव! बुद्ध का धम्मपद इसका ही विश्लेषण है। बुद्ध ने नहीं कहा कि परमात्मा पर श्रद्धा करो।

बुद्ध एक ऐसे उत्तुंग शिखर हैं, जिसका आखिरी शिखर हमें दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन जैसे-जैसे तुम उठने लगोगे, तुम्हें उनका शिखर दिखने लगेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.