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JNU Violence Case: देश का प्रतिष्ठित संस्थान जेएनयू वामपंथी वर्चस्व का हो रहा शिकार

JNU Violence Case देश का प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पांच जनवरी की हिंसक घटना के बाद से एक बार फिर सुर्खियों में है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 09:14 AM (IST)Updated: Tue, 21 Jan 2020 10:15 AM (IST)
JNU Violence Case: देश का प्रतिष्ठित संस्थान जेएनयू वामपंथी वर्चस्व का हो रहा शिकार
JNU Violence Case: देश का प्रतिष्ठित संस्थान जेएनयू वामपंथी वर्चस्व का हो रहा शिकार

[सुजीत शर्मा]। JNU Violence Case: वैसे तो जेएनयू यानी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की राजनीतिक और वैचारिक विरोध की राजनीति का एक लंबा इतिहास रहा है और कई बार वह हिंसक भी हुआ, परंतु वर्तमान घटना सचमुच अप्रत्याशित और चिंतनीय है। दरअसल पांच जनवरी को हुई हिंसा जेएनयू में चल रहे प्रदर्शन की ही एक परिणति है। इस पूरे घटनाक्रम को समझने से इसके पीछे छिपी मंशा और दोषी तक पहुंचना आसान हो जाता है। लगभग करीब ढाई माह से हॉस्टल मैनुअल को लेकर कैंपस में जो प्रदर्शन जारी है उसमें कई ऐसे अवसर आए जब प्रदर्शनकारी संगठनों और सामान्य छात्रों के बीच हितों के टकराव की वजह से हाथापाई और गाली-गलौज तक की नौबत भी आई, लेकिन बात यहीं तक दब गई। परंतु कुछ दिनों बाद प्रदर्शनकारियों ने एक ऐसा रूप बदला जो जेएनयू इतिहास में शायद पहली बार था।

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प्रदर्शनकारियों ने चेहरे पर नकाब लगाकर प्रदर्शन शुरू किया, जो स्पष्ट करता है कि प्रदर्शनकारियों को खुद भी इस बात का एहसास था कि वे जो भी कर रहे हैं वह अनैतिक और गैर-कानूनी है, जिस वजह से उन्हें अपनी पहचान छिपानी पड़ रही है। रजिस्ट्रेशन करने वाले छात्रों की बढ़ती संख्या को देख, और उन्हें समझा न सकने की असमर्थता से आहत ‘वाम गैंग’ ने नकाब पहनकर सर्वर रूम में घुसकर, वाइ-फाइ सिस्टम को ध्वस्त कर, अकादमिक भवन, लाइब्रेरी और आवासीय क्षेत्रों सहित पूरे कैंपस की इंटरनेट सुविधा को ठप कर दिया। इसी दौरान ‘नकाबधारी प्रदर्शनकारियों’ ने सेमेस्टर रजिस्ट्रेशन के लिए जा रहे एबीवीपी कार्यकर्ताओं और अन्य सामान्य छात्रों के साथ मारपीट भी की, उनके फॉर्म और मोबाइल भी छीन लिए। अपने आंदोलन से सामान्य छात्रों केघटते विश्वास और इतने लंबे आंदोलन को अपने हाथ से निकलता समझकर यूनियन पर काबिज एसएफआइ और आइसा ने उन स्टूडेंट्स को टारगेट करना शुरू किया जो रजिस्ट्रेशन कराने की कोशिश कर रहे थे।

जाहिर सी बात है कि इसमें अधिकांश सामान्य छात्र और परिषद के कार्यकर्ता थे। उन सभी छात्रों को सबक सिखाने के लिए 250 से 300 प्रदर्शनकारियों का एक मॉब सबसे पहले पेरियार हॉस्टल पर धावा बोलता है। इस मॉब का नेतृत्व कर रहीं यूनियन प्रेसीडेंट के इशारे पर कई एबीवीपी कार्यकर्ताओं को पीटा गया। यह घटना है पांच जनवरी की दोपहर ढाई-तीन बजे की। पहली पुलिस कॉल तभी की गई थी। इस मॉब का अगला निशाना बना साबरमती हॉस्टल, जहां नकाबपोश प्रदर्शनकारियों ने एबीवीपी कार्यकर्ताओं के कमरों-खिड़कियों को तोड़ा और ये छात्र किसी तरह भाग कर जान बचा सके।

सनद रहे कि कैंपस में लेफ्ट की इस हरकत को हर कोई ना सिर्फ देख रहा था, बल्कि कई सामान्य छात्र इसकी चपेट में भी आ चुके थे। अपनी बौखलाहट में ‘लेफ्ट गैंग’ बुरा फंस रहा था। तो इस तरह से शुरू हुआ असली खेल जिसमें अचानक आइशी घोष के घायल होने की खबर आती है और साबरमती हॉस्टल में एक बार और हमला होता है जिसके बारे में कहा गया कि ये हमलावर बाहर से आए थे। यानी साबरमती में दूसरी बार हमले का मकसद था दोपहर से हो रही हिंसा पर पर्दा डालना, यह दिखाना कि हमलावर बाहरी थे और गेम को ‘भीतरी छात्रों और बाहरी गुंडों’ में बदल देना। मीडिया के कैमरे सिर्फ छात्र संघ अध्यक्ष के जख्म को ही कवर कर पाए और घायल अन्य दर्जनों छात्रों के बहते खून को अंधेरे में दबा दिया गया। इसके बाद की तमाम बहस में वही विमर्श चलाया गया जो वामपंथी चलाना चाहते थे।

विपक्षी साजिश की बू

यह सबको पता है कि पिछले कई वर्षों से जेएनयू छात्रसंघ पर वाम संगठनों का कब्जा है। वर्ष 2014 में देश में मोदी लहर और 2016 में कैंपस में हुई देश-विरोधी घटना ने कैंपस के वामपंथियों के चेहरे पर लगा नकाब हटा दिया था। देश इनको मोदी व भारत विरोधी मानसिकता के रूप में पहचानता है जो समय-समय पर देश की सत्ता को बदलने की भरपूर कोशिश करते हैं और इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। जएनयू कैंपस भी 2016 के बाद लगातार किसी ना किसी तरीके से ऐसे लोगों के राजनीतिक षड़्यंत्रों का शिकार होता रहा है। वर्ष 2019 के चुनावों में मिली शानदार जीत के बाद, सामान्य जनता के बीच मुंह की खा चुके विरोधी दल अब देश के शिक्षण संस्थानों व छात्रों को दिग्भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं। देश के शिक्षण संस्थानों को अपनी राजनीति का अखाड़ा बनाकर विपक्ष, युवा वर्ग को बरगलाने का प्रयास कर रहा है।

विभिन्न राजनीतिक दल जब मोदी के विकास कार्यों से उनको टक्कर देने में नाकामयाब दिख रहे हैं तो अब छात्रों के कंधों पर बंदूक रखकर अपने राजनीतिक निशाने लगाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में पहले जामिया, फिर एएमयू और अब जेएनयू कैंपस में खड़ा किया गया विवाद विपक्ष की बहुत बड़ी रणनीति का हिस्सा है। इसे किसी फीस बढ़ोतरी जैसे मुद्दे तक सीमित समझ लेना बहुत बड़ी भूल हो सकती है। जेएनयू की यह घटना तब होती है जब जामिया आंदोलन शांत पड़ चुका है, देश की जनता सीएए और एनआरसी की भ्रांतियों से बाहर निकल चुकी है। इस घटना के कुछ मिनट के भीतर जेएनयू गेट पर राजनीतिक दलों का जमावड़ा होना, प्रियंका गांधी का तत्काल एम्स पहुंचना, राहुल गांधी और पाकिस्तान के आसिफ गफूर का ट्वीट, डी राजा, सीताराम येचुरी, कन्हैया कुमार का जेएनयू में सभाएं करना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि यह साजिश पूरे देश को चोट पहुंचाने के लिए रची गई थी। इस घटना को लेकर मीडिया और सिनेमा के क्षेत्र से पूरे देश की मोदी विरोधी टीम का सक्रिय हो जाना और सीधे छात्रों की लड़ाई के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार बताना, यह स्पष्ट करता है कि यह मोदी सरकार और देश के खिलाफ विपक्ष की एक सोची समझी साजिश है जिसे सभी को समझने की जरूरत है।

[शोध अध्येता, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय]

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