यहां अदृश्य साया करता है पीछा, कुर्सी पर बैठने से भी डरते हैं पीसीएस अफसर
मृतक अफसर का काम सम्भालने के बाद आज तक उनकी कुर्सी पर नहीं बैठे हैं। हालात ऐसे हैं कि भय से पड़ोस के अधिकारियों के दफ्तर में बैठकर अपना कामकाज निपटा रहे हैं।
आपने किस्से-कहानियों में यूं तो जरूर पढ़ा होगा कि कोई भूत केवल किसी शख्स का पीछा ही नहीं करता, बल्कि हर कदम पर उसको नुकसान पहुंचाता है। वैसे मौजूदा वक्त में यह शायद संभव नहीं दिखता, लेकिन यूपी के शाहजहांपुर में एक पीसीएस अफसर ही मृत अफसर के साये से खौफजदा हैं।
उनके साये डर के चलते इन महाशय ने दफ्तर ही जाना छोड़ दिया है। मृतक अफसर का काम सम्भालने के बाद आज तक उनकी कुर्सी पर नहीं बैठे हैं। हालात ऐसे हैं कि भय से पड़ोस के अधिकारियों के दफ्तर में बैठकर अपना कामकाज निपटा रहे हैं।
कहीं से नहीं मिली मदद
शाहजहांपुर के जिला पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारी वीरपाल आजकल किसी अदृश्य साये से बेहद ही डरे हैं। वीरपाल अब तक कई झाड़-फूंक और टोना-टोटका करने वाले लोगों के चक्कर काटने के बावजूद परेशान हैं।
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दरअसल, शाहजहांपुर में रंजीत सोनकर और अर्चना सोनकर नामक दो पीसीएस अधिकारी पिछले कई साल से कार्यरत थे। इसमें रंजीत सोनकर शाहजहांपुर के जिला विकलांग कल्याण अधिकारी और अर्चना सोनकर शाहजहांपुर की जिला समाज कल्याण अधिकारी थी।
जहर देकर हत्या का आरोप
रंजीत और अर्चना सोनकर ने फरवरी 2016 में शादी कर ली, लेकिन शादी के दो महीने बाद ही रंजीत की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। इसमें रंजीत के परिजनों ने उनकी पत्नी अर्चना सोनकर के खिलाफ जहर देकर हत्या का आरोप लगाया और अर्चना सोनकर के खिलाफ शाहजहांपुर के सदर बाजर थाने में केस दर्ज करा दी।
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प्रशासन ने अर्चना को शाहजहांपुर से हटा दिया और मृतक जिला विकलांग कल्याण अधिकारी और जिला समाज कल्याण अधिकारी दायित्व शाहजहांपुर के दूसरे पीसीएस अधिकारी वीरपाल को दे दिया। वीरपाल को जब से इन दोनों अधिकारियों के काम का जिम्मा मिला तब से उन्हें कोई न कोई परेशानी बनी हुई है।
कुर्सी पर बैठने से किया मना
बेचारे कई बार टोना-टोटका करने वाले ओझा-ज्योतिषी के पास गए। इन टोना टोटका करने वालों ने पीसीएस अधिकारी वीरपाल को जिला विकलांग कल्याण अधिकारी के दफ्तर में जाने और जिला विकलांग कल्याण अधिकारी की कुर्सी पर बैठने को ही मना कर दिया।
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यही नहीं जिला समाज कल्याण अधिकारी की कुर्सी का रूख फ़ौरन ही बदलने की बात कही। डरे-सहमे बेचारे वीरपाल ने फ़ौरन ही जिला समाज कल्याण अधिकारी की कुर्सी का रूख बदल लिया।
लेकिन आज तक जिला विकलांग कल्याण अधिकारी की कुर्सी पर बैठना दूर उस दफ्तर की और आंख उठाकर भी देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है। ऐसे में अब ये अफसर दूसरे अधिकारियों के दफ्तर में बैठकर काम को निबटाते हैं।
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