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नकली वस्तुओं का अजूबा संग्रहालय

ठगी सैकड़ों की नहीं, हजारों की नहीं, करोड़ो रुपयों की। वह भी छुप-छुपाकर नहीं, खुलेआम, सैकड़ों की भीड़ के सामने, सरकार की नाक के नीचे, सरकारी लाइसेंस के साथ। शायद ऐसी ठगी आपने अपनी जिंदगी में कभी देखी, सुनी न हो। यह एक खास प्रकार की ठगी है जिसमें आप ठगे जाने की बात सपने में भी सोच नहीं सकते।

By Edited By: Published: Fri, 19 Jul 2013 01:01 PM (IST)Updated: Fri, 19 Jul 2013 01:01 PM (IST)
नकली वस्तुओं का अजूबा संग्रहालय

ठगी सैकड़ों की नहीं, हजारों की नहीं, करोड़ो रुपयों की। वह भी छुप-छुपाकर नहीं, खुलेआम, सैकड़ों की भीड़ के सामने, सरकार की नाक के नीचे, सरकारी लाइसेंस के साथ। शायद ऐसी ठगी आपने अपनी जिंदगी में कभी देखी, सुनी न हो। यह एक खास प्रकार की ठगी है जिसमें आप ठगे जाने की बात सपने में भी सोच नहीं सकते। आम जनता तो आम जनता, अगर सरकार भी खुद ठगी जाए तो आप क्या कहेंगे? ऐसी ही करोड़ो की एक ठगी सामने आई है जिसने हर किसी को हैरान कर दिया है।

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चीन में जिबाओझाई संग्रहालय आज अपने संग्रह के लिए चर्चा का बड़ा विषय बन गया है। जी नहीं, यह संग्रहालय अपने नायाब संग्रहों के लिए नहीं बल्कि नकली संग्रह के लिए सुर्खियों में है। 2010 में करोड़ो रुपए की लागत से बना यह संग्रहालय इसकी असलियत सामने आने के बाद बंद कर दिया गया है। संग्रहालय के मालिक वांग जोंग्क्वांग इसे पूरी तरह गलत खबर बताते हुए अपने संग्रह को पूरी तरह असली बताते हैं जबकि अधिकारी इसके 80 प्रतिशत संग्रह को नकली मान रहे हैं। चार मंजिल की इमारत में 12 हॉल के साथ इसमें 40 हजार वस्तुएं पुराना संग्रह बताकर रखी गई हैं। मजेदार बात यह है कि संग्रहालय स्थानीय सरकार चलाने वाली कम्यूनिस्ट पार्टी के द्वारा खोला गया है। इतनी बड़ी ठगी सामने नहीं आती अगर बीजिंग के लेखक मा बोयोंग ने संग्रहालय की यात्रा न की होती। संग्रहालय में घूमने के दौरान मा बोयोंग ने आधी से अधिक एंटीक कही जाने वाली वस्तुओं को नकली पाया। इसकी असलियत भंडाफोड़ करने में सबसे प्रमुख भूमिका यहां रखे पोर्सिलीन के फूलदान ने निभाई। चीनी संस्कृति और इतिहास से जुड़ा पोर्सिलीन चीनी जीवन का एक हिस्सा है। इस संग्रहालय में रखा पांच रंगों में रंगा पोर्सिलीन का फूलदान तांग वंश का बताया गया था जबकि फूलदान रंगने की तकनीक वास्तव में मिंग वंश में विकसित की गई थी। इसके अलावे भी यहां रखी एक लिखावट 4 हजार साल पुरानी बताई गई थी जबकि लिखावट में प्रयुक्त कई अक्षर 20वीं सदी में प्रचलित हुए पाए गए। रिपोर्ट करने पर जब इसकी जांच की गई तो इसमें अधिकांश वस्तुएं नकली पाई गईं। संग्रहालय अधिकारियों को उम्मीद है कि 40 हजार में कम से कम 80 वस्तुएं तो असली अवश्य होंगी।

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