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14 साल बाद जिंदा लौटा मृत युवक

हो सकता है यह कहानी आपने किसी बॉलीवुड फिल्म में देखा होगा पर यह एक सत्य घटना है. किसी बॉलीवुडिया मसाला फिल्म सी दिलचस्प यह घटना बरेली के देबरनिया थाना क्षेत्र के भुड़वा नगला गांव की है. अपने मृत्यु के 14 साल बाद जब इस गांव का एक लड़का वापस लौटा तो एकबारगी गांववाले अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पाए. 14 साल पहले इन्हीं गांव वालों

By Edited By: Published: Wed, 10 Sep 2014 04:45 PM (IST)Updated: Wed, 10 Sep 2014 04:53 PM (IST)
14 साल बाद जिंदा लौटा मृत युवक

हो सकता है यह कहानी आपने किसी बॉलीवुड फिल्म में देखा होगा पर यह एक सत्य घटना है। किसी बॉलीवुडिया मसाला फिल्म सी दिलचस्प यह घटना बरेली के देबरनिया थाना क्षेत्र के भुड़वा नगला गांव की है। अपनी मृत्यु के 14 साल बाद जब इस गांव का एक लड़का वापस लौटा तो एकबारगी गांववाले अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पाए। 14 साल पहले इन्हीं गांव वालों ने इस लड़के की लाश को गंगा नदी में प्रवाहित किया था। छत्रपाल नाम के इस लड़के की मृत्यु एक जहरीले सांप द्वारा डसे जाने के कारण हुई थी।

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छत्रपाल के पिता का नाम नन्थु लाल है। नन्थु लाल और उनके परिवार के अन्य सदस्य छत्रपाल को पहचान चुके हैं। छत्रपाल के घर के आगे आजकल मजमा लगा रहता है। क्षेत्रभर से लोग उसे देखने उसके घर पहुंच रहें हैं। छत्रपाल के साथ चर्चा हरी सिंह नामक सपेरे की भी है जिसका दावा है कि उसने ही छत्रपाल को पुनर्जीवन दिया है। हरी सिंह भी छत्रपाल के साथ उसके गांव आया हुआ है।

14 साल पहले अपने पिता के साथ खेतों में काम करते हुए छत्रपाल को एक जहरीले सांप ने डस लिया। जहर छत्रपाल के शरीर मे तेजी से फैलने लगा और अस्पताल जाते-जाते उसकी मृत्यु हो गई। छत्रपाल का दाह संस्कार नहीं किया गया क्योंकि हिंदु धर्म में ऐसी मान्यता है कि सांप काटने से मृत व्यक्ति की लाश नदी में प्रवाहित की जाती है। अत: छत्रपाल की लाश को उसके परिजनों ने गंगा में बहा दिया।

इसके आगे की कहानी सपेरे हरी सिंह बताते हैं। हरी सिंह के अनुसार बहता हुआ छत्रपाल उन्हें मिला और उन्होंने उसका जहर उतारकर उसे फिर से जिन्दा कर दिया। हरी सिंह बताते हैं कि उन्होंने यह विद्या अपने गुरु से सीखी थी, क्योंकि वह भी मर कर ही जिन्दा हुए थे। उनके भी शव का अंतिम संस्कार कर गंगा में बहा दिया गया था। बहते हुए वह बंगाल पहुंच गए, जहां पर एक गुरु ने उनको जिन्दा किया।

हरी सिंह कहते हैं कि उनके कबीले की यह परंपरा है कि यदि हम किसी को जिन्दा करते हैं तो उसे चौदह साल तक हमारे पास शिष्य बन कर रहना पड़ता है। उसके बाद वह अपनी या परिजनों की मर्जी से अपने घर जा सकता है नहीं तो वह जीवन भर हमारे साथ रहता है। वह हमारी तरह बीन बजाता है और गुरु शिक्षा ग्रहण करके साधू रूपी जीवन जीता है।

हरी सिंह के अनुसार छत्रपाल के अलावा भी ऐसे कई शिष्य हैं जो मरकर जिन्दा हुए हैं और उनके साथ घूम रहे हैं। वे बताते हैं कि सर्पदंश से मृत व्यक्ति को कुछ विशेष परिस्थितियों में एक महीना दस दिन बाद भी जिंदा किया जा सकता है। इस इलाज में वे साईकल में हवा डालने वाला पंप और कुछ जड़ी-बूटियों का प्रयोग करते हैं।

बहरहाल हरी सिंह के दावे में चाहे जितनी सच्चाई हो, फिल्मी सी लगने वाली इस सुखांत कहानी ने छत्रपाल के परिवार की खुशियां तो जरूर लौटा दी।


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