देश के बंटवारे में बिछुड़ों को फेसबुक ने मिलाया
सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक ने करीब 68 साल पहले बिछुड़े लोगों को फिर से मिला दिया है।
मनोज राणा, करनाल । सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक ने करीब 68 साल पहले बिछुड़े लोगों को फिर से मिला दिया है। भारत-पाक के बंटवारे का दंश झेल रहे युनुस की बूढ़ी आंखें अब पुश्तैनी गांव को देखने के लिए तरस रही हैं। एक ही ख्वाहिश है कि जीते जी एक बार फिर उन गलियों को देख लें जहां बचपन बीता था।
सन् 1947 में भारत से पाकिस्तान गए परिवार के मिलने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। करनाल के कतलाहेड़ी का सुमित आस्ट्रेलिया में रहता है। वह पाकिस्तान के हसन राव का मित्र है। सुमित ने अपनी शादी का वीडियो फेसबुक पर अपलोड किया तो उसमें गांव के बारे में भी जानकारी दी। इसे हसन राव ने अपने दादा युनुस को दिखाया तो वह खुशी से उछल पड़े। बोले की यह तो हमारे गांव का है। इससे मेरी बात कराओ। युनुस ने सुमित से बात की और उससे अपने परिजनों का नंबर लेकर फिर उनसे बात की।
कतलाहेड़ी के 80 वर्षीय ईशम सिंह बताते हैं कि विभाजन के समय उनके दादा माडूराम की पत्नी रिश्तेदारों व तीन बेटों के साथ पाकिस्तान चली गई थी। फोन पर पता चला माडूराम के बेटों में से अब 90 साल के यूनुस ही जीवित हैं। उस दौरान मांडूराम के साथ एक और अहम घटना घटी थी। गांव वाले बताते हैं कि मांडूराम ने किसी मुस्लिम परिवार के घर खाना खाया और रूढि़वादी विचार धारा होने के कारण उन्होंने स्वयं ही मान लिया वह अपने धर्म से भटक गए हैं। इसके चलते उन्होंने मुस्लिम धर्म अपना लिया। यूनूस कहते हैं कि वैसे तो पूरा परिवार है, लेकिन अपनों की याद हमेशा सताती रही।
पाकिस्तान से युनुस ने फोन पर बताया कि वह अपने तीन भाइयों, एक बहन व मां के साथ पाकिस्तान सुरक्षित पहुंच गया था। यहां कारोबार भी अच्छा चल गया था। लेकिन तीनों भाइयों को आतंकवाद ने उससे छीन लिया। हालांकि उनके बच्चे हैं और भरा पूरा परिवार भी है। कहते हैं भारत में होते तो शायद आज उसके भाई उसके साथ होते। अब तो अंतिम बार अपने पुश्तैनी गांव को देखने की लालसा है।