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सुहाग को देना पड़ रहा ‘वफादारी’ का सुबूत

त्रेतायुग में सीता को पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी, लेकिन कलियुग में ‘राम’ को वफादारी का सुबूत देना पड़ रहा है। जी हां, परदेस में कमाने वाले पतियों को घर वापसी पर पवित्रता साबित करने के लिए एचआइवी टेस्ट के रूप में परीक्षा देनी पड़

By Lalit RaiEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2015 08:38 AM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2015 09:17 AM (IST)
सुहाग को देना पड़ रहा ‘वफादारी’ का सुबूत

मैनपुरी (विनीत मिश्र)। त्रेतायुग में सीता को पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी, लेकिन कलियुग में ‘राम’ को वफादारी का सुबूत देना पड़ रहा है। जी हां, परदेस में कमाने वाले पतियों को घर वापसी पर पवित्रता साबित करने के लिए एचआइवी टेस्ट के रूप में परीक्षा देनी पड़ रही है। जिले में हर दिन एचआइवी की औसतन दस जांचें हो रही हैं।

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किशनी क्षेत्र निवासी 35 वर्षीय रामबक्श (बदला नाम) चार साल से ट्रक चलाते हैं। शादी को आठ साल हो गए। ट्रक लेकर अक्सर प्रदेश से बाहर रहते हैं। इस बार चार माह बाद गांव लौटे। कई दिन तक बुखार रहा, तो पत्नी को शक हुआ। उसने एड्स होने की आशंका जताई और रामबक्श को जबरन अस्पताल ले गई। उनका एचआइवी टेस्ट कराया। पत्नी को सुकून तब मिला, जब रिपोर्ट नेगेटिव आई। बेवर क्षेत्र में रहने वाले शिवकिशोर (बदले नाम) सूरत में एक कपड़ा मिल में नौकरी करते हैं। छह से सात माह में घर आते हैं। दो माह पहले वह घर आए, तो पत्नी अगले ही दिन उन्हें जिला अस्पताल लेकर पहुंची। काउंसलर से साफ कह दिया कि पति बाहर रहकर मुझसे फोन पर भी बहुत कम बात करते हैं। मुङो शक है कि वह मेरे प्रति वफादार नहीं। पति को अपनी वफादारी साबित करने के लिए एचआइवी जांच करानी पड़ी।

जिला अस्पताल में एचआइवी केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ. गौरांग गुप्ता बताते हैं कि काउंसिलिंग में पुरुष स्वीकार कर रहे हैं कि उन्हें पत्नी की संतुष्टि के लिए जांच करानी पड़ रही है। जांच के दौरान कई पुरुषों में एचआइवी पॉजिटिव भी पाया गया। यादातर परदेस में कमाने वाले पुरुषों से ही उनकी पत्नी के एड्स हुआ। पति-पत्नी के बीच शक के कारण ही एक साल में 3118 एचआइवी की जांचें हुई हैं।

एड्स से जारी जंग
एक दौर में जन स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक माने जाने वाले ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (एचआइवी) /एड्स के मामलों में यूनीसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर गिरावट देखने को मिली है। 29 साल की जंग के बाद भारत में भी एचआईवी/एड्स मामलों में कमी दर्ज की गई है। देश में इस तरह का पहला मामला 1986 में दर्ज किया गया था। इसके खिलाफ सफलता से उत्साहित संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक रूप से इस वायरस और एड्स बीमारी से पूरी तरह से निजात पाने के संकल्प के साथ इस साल की थीम ‘एचआइवी पीड़ितों की संख्या शून्य तक ले जाना’ निर्धारित की है।

विश्व एड्स दिवस
लोगों को एचआइवी/एड्स के प्रति जागरूक करने के मकसद से 1988 से हर वर्ष एक दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है।

किशोर अधिक पीड़ित
विश्व में एचआइवी/एड्स से सबसे अधिक किशोर 10-19 वर्ष पीड़ित हैं। यह संख्या 20 लाख से अधिक है। वर्ष 2000 से अब तक किशारों के एड्स से पीड़ित होने के मामलों में तीन गुना इजाफा हुआ है। यह दावा यूनीसेफ की ताजा रिपोर्ट में किया गया है जोकि चिंता का विषय है।

एड्स से पीड़ित दस लाख से अधिक किशोर सिर्फ छह देशों में ही रह रहे हैं। इनमें दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, भारत, मोजांबिक और तंजानिया हैं।
मां से नवजात को होने वाले एचआइवी संक्रमण से मुक्त पहला देश क्यूबा बन गया है।

भारत की स्थिति

विश्व में एचआइवी पीड़ितों की आबादी के मामले में भारत का तीसरा स्थान

15-20 लाख लोग एचआइवी/एड्स से पीड़ित

2011-2014 के बीच देश में इसकी वजह से मरने वालों की संख्या करीब 1.5 लाख।

देश में कुल पीड़ितों में महिलाओं की संख्या 40 फीसद


देश में एचआइवी संक्रमण में 19 की आई कमी


एड्स से जुड़े मामलों में हुई मौतों में 38 फीसद की कमी आई


2014 में जारी आंकड़ों के मुताबिक 3.99 करोड़ लोग विश्व में एड्स से पीड़ित

पिछले 15 वर्षों में एड्स मामलों में 35 फीसद की आई कमी।


पिछले एक दशक में एड्स से हुई मौतों में 42 फीसद गिरावट।


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