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कुरान के साथ दारुल उलूम में वेद, रामायण और गीता भी

देवबंद में इस्लामी मजहबी शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों को हिन्दू धर्म ग्रंथों से रुबरू होने की पूरी छूट है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sat, 18 Feb 2017 09:39 PM (IST)Updated: Sun, 19 Feb 2017 02:57 AM (IST)
कुरान के साथ दारुल उलूम में वेद, रामायण और गीता भी
कुरान के साथ दारुल उलूम में वेद, रामायण और गीता भी

संजय मिश्र, देवबंद से लौटकर। इस्लामी शिक्षा के बड़े संस्थान में उर्दू-अरबी और फारसी की पुरानी रचनाओं का अंबार होना कोई बडी बात नहीं। मगर इस्लाम से संबंधित पुस्तकों के इस जखीरे में संस्कृत में रचित ऋगवेद से लेकर रामायण व भगवत गीता को करीने से संजोकर रखा जाए तो उत्सुकता होना लाजिमी है। देवबंद के मशहूर इस्लामी शिक्षा केन्द्र दारूल उलूम में ये प्राचीन हिन्दू धार्मिक ग्रंथ कुरान समेत मजहबी इस्लामी शिक्षा से जुड़ी पुस्तकों के साथ प्रमुखता से उसके पुस्तक खजाने का हिस्सा हैं।

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दारूल उलूम के बडे कैंपस में लाइब्रेरी की नई भव्य इमारत बन चुकी है मगर अभी पुराने भवन में ही बड़ा पुस्तकालय है। जहां जाहिर तौर पर उर्दू-फारसी और अरबी में लिखी पुस्तकों का भंडार है। लाइब्रेरी में ही एक विशेष खंड में धार्मिक पुस्तकों को करीने से रखा गया है। इसमें कुरान समेत कुछ विशिष्ट धार्मिक ग्रंथों को शीशे के आवरण में करीने से सहेज कर रखा गया है। इसी विशेष खंड में ऋगवेद की संस्कृत के साथ हिन्दी अनुवाद की प्रति दिखाई देती है।

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उर्दू, अरबी व फारसी की पुस्तकों के बीच हिन्दू धर्मग्रंथों की मौजूदगी की सहज उत्सुकता में निगाहें जब चौड़ी होती है तो फिर ऐसी पुस्तकों की संख्या भी बढ़ती दिखती है। जहां ऋगवेद के साथ यर्जुवेद, बाल्मिकी रामायण, तुलसीदास रचित रामायण और श्रीमदभगवत गीता की पुरानी प्रतियों को सजा कर रखा गया है। इन कालजयी हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के साथ मनुस्मृति की प्रति भी लाइब्रेरी के खंड में मौजूद है। वहीं कुरान के कई लिखित पारूपों के बीच चर्चित मुगल शासक औरंगजेब आलमीगर की लिखी कुरान की प्रति भी यहां है। वहीं बाइबिल का उर्दू अनुवाद भी इसी खंड में मौजूद है।

इस्लामी शिक्षा और वैचारिक धारा के गढ दारूल उलूम की लाइब्रेरी में हिन्दू धार्मिक ग्रंथों की प्रमुखता से मौजूदगी के सहज सवाल पर यहां के आनलाइन इंटनरेट विभाग के कोर्डिनेटर मुफ्ती मोहम्मदुल्ला कासमी मुस्कुराते हुए कहते हैं 'यह हमारी हिन्दुस्तान की भावना का आईना है। देवबंद दारूल उलूम के संस्थापकों ने जो राष्ट्रवादी सोच के लोग थे उनका मानना था कि हिन्दुस्तानी तहजीब को वैचारिक मजबूती देने के लिए इस्लामी मजहबी शिक्षा का अध्ययन करने वाले छात्रों को इन हिन्दू ग्रंथों को पढना चाहिए। यह हमारी तालीम का हिस्सा है और जो छात्र पढना चाहता है उसके लिए ये ग्रंथ हमारे यहां मौजूद हैं।

उनका कहना था कि कई बार दारूल उलूम को लेकर गलत धारणाएं फैलाई जाती है मगर वास्ताविकता यही है कि यहां इस्लाम की प्रगतिशील धारा की शिक्षा को आगे बढाया जाता है। जैसाकि दारूल उलूम के अंग्रेजी में प्रकाशित संक्षिप्त परिचय और उददेश्यों में साफ कहा गया है कि वह कुरान की ऐसी शिक्षा देता है जो मानवता और भाईचारे को बढावा देती है। साथ ही यहां के छात्र से एक सभ्य व बेहतर नागरिक बनने की अपेक्षा की जाती है जो समाज की बेहतरी के लिए काम कर सके।

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दारूल उलूम आतंकवाद के खिलाफ भी काफी मुखर है और उसने 2008 की अपनी आल इंडिया कांफ्रेंस के दौरान आतंकवाद को खारिज करते हुए इसके खिलाफ फतवा जारी किया था। इंटरनेट विभाग के कोर्डिनेटर कासमी दारूल उलूम के आनलाइन फतवा को भी देखते हैं और उनके मुताबिक आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हुए इसके खिलाफ समय-समय पर उलूम ने फतवे जारी किए हैं।

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