पृथ्वी दिवस...सिर्फ एक दिन क्यों, देश और दुनिया में जागरुकता का भारी अभाव
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पृथ्वी दिवस को लेकर देश और दुनिया में जागरूकता का भारी अभाव है।
नई दिल्ली, जेएनएन। पृथ्वी दिवस पर जब रस्मी तौर पर चर्चा की जाती है, तभी यह अहसास होने लगता है कि जनता की नज़र में हमारी पृथ्वी कितनी दोयम हो जा रही है। बहुत से लोगों को पता भी नहीं होगा कि पृथ्वी दिवस भी मनाया जाता है।
हमारी पृथ्वी ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां जीवन आज भी संभव है। लेकिन जब बात पृथ्वी को बचाने और संरक्षित करने की आती है, तो विद्वान भी बगलें झांकते नजर आते हैं। दरअसल, आज मानवजन की अज्ञानता ने इस मुहाने पर ला खड़ा किया है कि अब यह समझ में नहीं आ रहा कि इसमें सुधार की शुरुआत किस तरीके से हो?
21 मार्च को मनाए जाने वाले 'इंटरनेशनल अर्थ डे' को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन है, पर इसका महत्व वैज्ञानिक तथा पर्यावरणीय ज्यादा है। इसे उत्तरी गोलार्ध के वसंत तथा दक्षिणी गोलार्ध के पतझड़ के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। 22 अप्रैल को ही विश्व पृथ्वी दिवस मनाए जाने के पीछे अमेरिकी सीनेटर गेलार्ड नेल्सन रहे हैं। वे पर्यावरण को लेकर चिंतित रहते थे और लोगों में जागरूकता जगाने के लिए कोई राह बनाने के प्रयास करते रहते थे।
ऐसा अनुमान लगाया गया है कि वनोन्मूलन के कारण पृथ्वी पर से प्रतिदिन 137 पौधे, जंतु व कीड़ों की प्रजातियों को खो रहे हैं। यह आंकड़ा 5000 प्रजाति प्रतिवर्ष के बराबर है। इस तरह आहार श्रंखृला के विच्छेद होने और जैव-विविधता में कमी लाने का एक बड़ा कारक जंगलों का सफाया करना है। इसके साथ ही यह सूखे की समस्या और प्राकृतिक असंतुलन के लिए भी जिम्मेवार है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पृथ्वी दिवस को लेकर देश और दुनिया में जागरूकता का भारी अभाव है। सामाजिक या राजनीतिक दोनों ही स्तर पर इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जाते। कुछ पर्यावरण प्रेमी अपने स्तर पर कोशिश करते रहे हैं, किंतु यह किसी एक व्यक्ति, संस्था या समाज की चिंता तक सीमित विषय नहीं होना चाहिए। सभी को इसमें कुछ न कुछ आहुति देनी पड़ेगी तभी बात बनेगी।
पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, लेकिन कम से कम इतना तो करें कि पॉलिथीन के उपयोग को नकारें, कागज का इस्तेमाल कम करें और रिसाइकल प्रक्रिया को बढ़ावा दें। क्योंकि जितनी ज्यादा खराब सामग्री रिसाइकल होगी, उतना ही पृथ्वी का कचरा कम होगा।