NSG में भारत की दावेदारी पर रूस-चीन का क्यों है ऐसा रुख, कारण ये तो नहीं
एनएसजी का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। बर्न में अगले महीने होने वाली एनएसजी बैठक पर अब देश और दुनिया की निगाह टिकी हुई है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । खास लोग हों या आम हर किसी के दिल और दिमाग में हमेशा एक सवाल कौंधता है कि क्या चीन कभी भारत का दोस्त बनेगा। क्या भारत के खिलाफ चीन अपनी नापाक चाल पर ब्रेक लगाएगा। इन दोनों या इनसे जुड़े कई सवाल हमेशा पीछा करते रहते हैं। दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों को देखें तो वास्तविकता ये है कि चीन ने 1962 में भारत की पीठ में खंजर भोंका था। चीन एक तरफ भारत से बेहतरीन रिश्ते बनाने की बात कहता है, तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का खुलकर खिलाफत भी करता है। पिछले साल सियोल में एनएसजी की प्लेनरी बैठक में चीन ने भारत का विरोध किया। ठीक एक साल बाद जून में बर्न में एक बार फिर एनएसजी के मुद्दे पर बैठक होने जा रही है। लेकिन इस दफा चीन के साथ साथ रूस का रवैया दोस्ताना नजर नहीं आ रहा है।
आखिर रूस को क्यों है परेशानी ?
सेंट पीटर्सबर्ग में इकॉनोमिक फोरम की बैठक में हिस्सा लेने के लिए 31 मई को रूस में होंगे। राष्ट्रपति पुतिन के साथ पीएम मोदी की व्यापार, रक्षा और वैश्विक कूटनीति पर द्विपक्षीय वार्ता प्रस्तावित है। इसके एक दिन बाद दोनों नेताओं की फोरम की बैठक में मुलाकात होगी। दोनों पक्ष पिछले 6 महीनों से इस फोरम की तैयारी कर रहे हैं। इस संबंध में दोनों देशों की आखिरी बैठक इसी महीने 10 मई को हुई थी। जिसमें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रूस के उप पीएम दिमित्री रोगोजीन की अगुवाई में हुई थी।
मोदी और पुतिन के बीच पहली शिखर द्विपक्षीय वार्ता दिसंबर 2014 में हुई थी और तब दोनों ने एक दशक की रणनीतिक साझेदारी द्रुजबा-दोस्ती का रोडमैप बनाया था। हालांकि पिछले करीब 29 महीनों में रोडमैप को लेकर प्रगति की रफ्तार धीमी है। उसके बाद भारत और रूस के बीच शिखर स्तर की दो वार्ता हुई थी। लेकिन जमीनी तौर पर परियोजनाओं को जमीन पर उतारने को लेकर प्रगति नहीं दिखाई दी।
यह भी पढ़ें: नॉर्थ कोरिया का वो साइबर सेल जिससे US समेत कई देशों में हलचल
जानकार की राय
जागरण. कॉम से खास बातचीत में ब्रह्मा चेलानी ने कहा कि रूस को लगता है कि भारत जानबूझकर कुडनकुलन परियोजना में देरी कर रहा है। कुडनकुलन प्रोजेक्ट में देरी होने की वजह से रूस की अंतरराष्ट्रीय साख को नुकसान पहुंच रहा है इसके अलावा रूस की वित्तीय हालात पर भी प्रभाव पड़ रहा है।
रूस के साथ भारत की दिक्कतें
- अफगान शांति वार्ता में तालिबान को शामिल करने पर पुतिन अड़े हुए हैं।
- आपत्तियों के बावजूद पाकिस्तान के साथ सैन्य प्रशिक्षण में रूस अहम भूमिका निभा रहा है।
- वन बेल्ट-वन रोड जैसे मुद्दे पर भारतीय हितों की अनदेखी।
- अत्याधुनिक सैन्य साजो समान की तकनीक देने में रूस की तरफ से आनाकानी जारी है।
- रूस मौजूदा समय में एनएसजी में भारत का खुलकर सहयोग नहीं कर रहा है।
रूस के साथ वार्ता के मुद्दे
- एस-400 ट्रंफ एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीद की रूपरेखा तय होगी।
- भारत में बनने वाले 200 कामोव हेलीकॉप्टर योजना को अंतिम रूप देना शामिल है।
- जहाज निर्माण के लिए भारत में स्थापित होने वाला विशेष संस्थान।
- द्विपक्षीय कारोबार बढ़ाने के लिए बने फंड के इस्तेमाल की रणनीति।
- भारत ने न्यूक्लियर ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम के तहत 25 रूसी न्यूक्लियर रिएक्टरों के लिए दरवाजे खोलने का एलान किया।
- एनएसजी के मुद्दे पर रूस की तरह से पूरा समर्थन नहीं मिलने से प्रगति सुस्त है।
चीन की चाल
- चीन को लगता है कि एनएसजी में भारत को सदस्यता मिलने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख बढ़ेगी। एनएसजी का सदस्य बनने के बाद भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए भारत अपनी बात रखेगा।
- सीपीइसी और वन बेल्ट-वन रोड में भारत को सहभागी बनाने के लिए चीन एनएसजी के मुद्दे पर अड़चने पैदा कर रहा है।
- एनएसजी में भारत की सदस्यता पर चीन का कहना है कि वो ये नहीं चाहता है कि भारत को सदस्यता न मिले। लेकिन एनपीटी पर दस्तखत तो होना चाहिए।
- इसके अलावा चीनी रणनीतिकार ये मानकर चलते हैं कि भारत के साथ साथ पाकिस्तान को भी एनएसजी की सदस्यता मिलनी चाहिए।
- भारत ने दोबारा कहा कि चीन अकेला देश है जो उसके मेंबरशिप के दावे का विरोध कर रहा है।
- भारत और चीन के बीच पिछले साल 13 और 31 अक्टूबर को एनएसजी मुद्दे पर बात हो चुकी है।
भारत की मुश्किलें
बीते एक साल से भारत एनएसजी की मेंबरशिप को लेकर अपना पक्ष मजबूत करने को लेकर जुटा है। तुर्की ने भारत को समर्थन देने की बात कही है। साथ ही ये भी कहा है कि वह पाकिस्तान को भी सपोर्ट करेगा। न्यूजीलैंड ने भारत के दावे को लेकर कोई ठोस भरोसा नहीं दिलाया है।पिछले साल भारत दौरे पर आए न्यूजीलैंड के पीएम जॉन फिलिप ने कहा था कि वे भारत के दावे पर पॉजिटिव रवैया रखेंगे। हम चाहते हैं कि भारत की मेंबरशिप जल्द से जल्द फैसला हो जाए।
भारत के लिए मेंबरशिप क्यों है जरूरी?
न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी और यूरेनियम बिना किसी खास समझौते के हासिल होगी। न्यूक्लियर प्लान्ट्स से निकलने वाले कचरे को खत्म करने में भी एनएसजी मेंबर्स से मदद मिलेगी। दक्षिण एशिया में हम चीन की बराबरी पर आ जाएंगे।
क्या है NSG?
एनएसजी यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप मई 1974 में भारत के न्यूक्लियर टेस्ट के बाद बना था। इसमें 48 देश हैं। इनका मकसद परमाणु हथियारों और उनके उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली तकनीक, उपकरण और मटेरियल के एक्सपोर्ट को रोकना या कम करना है। 1994 में जारी एनएसजी गाइडलाइन्स के मुताबिक, कोई भी सिर्फ तभी ऐसे उपकरणों के ट्रांसफर की परमिशन दे सकता है, जब उसे भरोसा हो कि इससे परमाणु हथियारों को बढ़ावा नहीं मिलेगा। एनएसजी के फैसलों के लिए सभी सदस्यों का समर्थन जरूरी है।
यह भी पढ़ें: जानें आखिर कैसे एक गलती की बदौलत चली गई सात करोड़ लोगों की जान