कौन होगा दूसरे चरण का गेम चेंजर
उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण की जिन सीटों पर आज वोट डाले जाएंगे, वहां पश्चिमी उप्र के सांप्रदायिक तनाव की आंच से धुव्रीकरण का असर है तो जातीय स्तर की लामबंदी भी। यहां मुस्लिम मतों की एकजुटता की परख होगी तो अतिपिछड़ा वर्ग की बिरादरियों का रुख भी काफी कुछ परिणाम तय करेगा। चुनाव के मुकाबले में गेमचेंज
लखनऊ, [अवनीश त्यागी]। उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण की जिन सीटों पर आज वोट डाले जाएंगे, वहां पश्चिमी उप्र के सांप्रदायिक तनाव की आंच से धुव्रीकरण का असर है तो जातीय स्तर की लामबंदी भी। यहां मुस्लिम मतों की एकजुटता की परख होगी तो अतिपिछड़ा वर्ग की बिरादरियों का रुख भी काफी कुछ परिणाम तय करेगा। चुनाव के मुकाबले में गेमचेंजर कौन साबित होगा, इसका आंकलन तो मुश्किल है, पर कयास लगाया जा सकता है।
पौने दो करोड़ से अधिक मतदाताओं वाले इस इलाके में पिछड़े वर्ग की जातियों का बोलबाला रहा है। रामपुर, मुरादाबाद, संभल व अमरोहा जैसी कई ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिमों की काफी बड़ी तादाद हैं लेकिन यहां वोटों का बंटवारा भी घना दिखता है। पिछड़ों में यादवों के अलावा लोधी, कुर्मी, किसान, कश्यप, शाक्य, मौर्य, सैनी, जाट, प्रजापति, मल्लाह, निषाद व गुर्जर बिरादरियों की संख्या अच्छी खासी है। सामाजिक न्याय मोर्चा के संयोजक बहोरन लाल मौर्य का दावा है पिश्चिमी उत्तर प्रदेश व रुहेलखंड के इस मिले जुले इलाके में पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 65 प्रतिशत से अधिक है। मंदिर आंदोलन से लेकर बसपा सपा के उतार-चढ़ाव तक में पिछड़ा व अति पिछड़ा वर्ग की भूमिका अहम रही है। गत लोकसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो यहां पिछड़े और अतिपिछड़ों का दबदबा स्पष्ट होता है। अतिपिछड़ों में उमड़े सपा प्रेम ने गत लोकसभा चुनाव में पांच सीटों पर साइकिल दौड़ा दी थी और बसपा को नुकसान भुगतान पड़ा था। तब पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का समर्थन सपा के साथ होने से लोधी व किसान जैसी बिरादरियों को साइकिल की सवारी भा रही थी। भाजपा केवल दो सीटों आंवला व पीलीभीत सीट पर मेनका गांधी व वरुण गांधी जैसे बड़े नामों के कारण ही टिकी रह सकी थी। आजम खां के कड़े विरोध के बावजूद रामपुर से जयाप्रदा ने जीत हासिल की और बसपा का दलित मुस्लिम फैक्टर केवल संभल को छोड़ कर अन्य क्षेत्रों में अति पिछड़ों की रुसवाई के चलते नहीं कारगर नहीं हो सका था। पिछड़ा वर्ग की राजनीति के जानकार डा. केपी सिंह का कहना है कि अति पिछड़े वर्ग में बदलाव की लहर कोई गुल खिला सकती है।
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वाई-एम फार्मूला में अतिपिछड़ों का मेल
सपा का यादव मुस्लिम फार्मूला यहां साइकिल की ताकत बनता रहा है। इस बार भी सपा ने 11 में से पांच मुस्लिम व एक टिकट थमा कर गढ़ बचाने का प्रयास किया है। इसके अलावा कुर्मी व धोबी को जोड कर जीत का गणित साधने की कोशिश है। यादव परिवार के बाद सपा में सबसे ताकतवर मंत्री आजम खां के दमखम की परख भी होगी। रामपुर के चुनाव पर सबकी निगाह है। इतना ही नहीं गढ़ बचाए रखने को आयशा इस्लाम और बसपा के शफीकुर्रहमान वर्क को साथ लेने में कोई गुरेज नहीं किया।
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मोदी मैजिक और कल्याण का साथ
बीते पांच वर्ष में सियासी हालातों में जबरदस्त बदलाव आया है। नरेंद्र मोदी का अति पिछड़े वर्ग से होना और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की वापसी को भाजपा अपना वरदान मानती है। निषाद समाज के वरिष्ठ नेता लौटनराम कहते हैं-च्इस बार अति पिछड़ों में नरेंद्र मोदी का जादू का सर चढ़ कर बोल रहा है। जितनी पिछड़ी जातियां मंदिर आंदोलन के बाद भाजपा से अलग हो गई थीं उनमें से अधिकतर मोदी नाम जप रही है। इसी माहौल का लाभ लेने के लिए भाजपा ने 11 में से पांच टिकट पिछड़े वर्ग कोटे से दिए। जिसमें कुर्मी, सैनी, कश्यप, गुर्जर एवं लोधी समाज से एक -एकउम्मीदवार शामिल है।
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महानदल, रालोद व कांग्रेस गठजोड़
बीते चुनाव में 11 में से तीन सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस ने भी अपना रुतबा बनाए रखने के लिए अति पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली रालोद व महान दल जैसी पार्टियों से गठजोड़ किया। सैनी, शाक्य मौर्य व जाटों में प्रभाव रखने वाली रालोद व महान दल कांग्रेस का कितना भला कर सकेंगे यह तो चुनाव नतीजे आने पर भी पता चलेगा फिलहाल जीत के दावों में दम भरने के लिए कांग्रेस ने चार मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे है।
गत लोकसभा चुनाव के परिणाम
1-नगीना- सपा
2-मुरादाबाद- कांग्रेस
3-रामपुर- सपा
4-संभल- बसपा
5-अमरोहा- रालोद-भाजपा
6-बदायूं- सपा
7-आंवला- भाजपा
8-बरेली- कांग्रेस
9-शाहजहांपुर- सपा
10-पीलीभीत- भाजपा
11-खीरी- कांग्रेस।