नरेंद्र मोदी के बाद कौन संभालेगा गुजरात की गद्दी?
गुजरात का चुनावी माहौल पूरे शबाब पर है। भाजपा के पीएम पद प्रत्याशी नरेंद्र मोदी निश्चित तौर पर सूबे के चुनाव नतीजे पर असर डालने वाला सबसे अहम मुद्दा है। कई ऐसे मुद्दे भी हैं जो अंदर ही अंदर तेजी से काम कर रहे हैं। इनमें एक है अगर मुख्यमंत्री मोदी केंद्र में चले जाते हैं तो फिर राज्य की गद्दी कौन संभालेगा
वडोदरा, [जयप्रकाश रंजन]। गुजरात का चुनावी माहौल पूरे शबाब पर है। भाजपा के पीएम पद प्रत्याशी नरेंद्र मोदी निश्चित तौर पर सूबे के चुनाव नतीजे पर असर डालने वाला सबसे अहम मुद्दा है। कई ऐसे मुद्दे भी हैं जो अंदर ही अंदर तेजी से काम कर रहे हैं। इनमें एक है अगर मुख्यमंत्री मोदी केंद्र में चले जाते हैं तो फिर राज्य की गद्दी कौन संभालेगा? मोदी के बाद खाली होने वाले मुख्यमंत्री पद को भरने के लिए राज्य के सबसे मजबूत पटेल और क्षत्रिय लॉबी अभी से सक्रिय हो चुकी है। इसका असर केंद्रीय गुजरात से सौराष्ट्र क्षेत्र तक के संसदीय क्षेत्रों पर पड़ना तय है।
भाजपा ने अभी से सार्वजनिक तौर पर इस बात के कोई संकेत नहीं दिए हैं कि गुजरात में मोदी के बाद मुख्यमंत्री कौन बनेगा, लेकिन जिनके नाम प्रमुख रूप से चर्चा में हैं उनमें वित्त मंत्री नितिन पटेल, राजस्व मंत्री आनंदीबेन पटेल और ऊर्जा मंत्री सौरभ पटेल शामिल हैं। सायाजीराव विश्वविद्यालय (बड़ौदा) के राजनीतिक शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष पी एम पटेल कहते हैं कि यह सिर्फ संयोग नहीं है कि मोदी के बाद जिन तीन लोगों को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाता है वे पटेल समुदाय के हैं। आणंद से लेकर पूरे सौराष्ट्र के लगभग दस संसदीय सीटों पर भाजपा के प्रदर्शन पर इसका असर पड़ने वाला है।
एक बार मुख्यमंत्री के पद पर पटेल के स्थापित होने की संभावना भाजपा को मजबूत कर रही है। जिन संसदीय क्षेत्रों में पटेलों के बीच नहीं बनती है वहां भी भाजपा अंदरखाने में पटेल मुख्यमंत्री का कार्ड खेल रही है। हालांकि पार्टी इस कार्ड को खुल कर नहीं खेल सकती क्योंकि इसका असर दूसरी जातियों के वोटरों पर पड़ेगा। वैसे भी मोदी की वजह से पार्टी को ओबीसी के बीच पैठ बनाने में पहली बार मौका मिला है। कोई फैसला करने से पहले इस मुद्दे को भी ध्यान में रखना होगा।
जिस तरह से सौराष्ट्र क्षेत्र में एक पटेल को संभावित तौर पर अगले मुख्यमंत्री के तौर पर देखा जा रहा है वही मध्य व उत्तरी गुजरात के क्षत्रिय जाति के प्रभाव वाले संसदीय क्षेत्रों में कहानी दूसरी है। आनंद, खेड़ा, छोटा उदयपुर, पंचमहल, पाटन और बनसकंठा में क्षत्रिय वोटरों का दबदबा है। क्षत्रिय वर्ग में यह भावना काम कर रही है कि उनके प्रतिनिधि को मोदी का उत्तराधिकारी नियुक्त किया जाना चाहिए। लीलाधर वाघेला, प्रभातिसंह चौहान, देबूसिंह चौहान, दिलीप सिंह राठौड़ भाजपा के ऐसे क्षत्रिय नेता है जिनका कद हाल के दिनों में तेजी से बढ़ा है। गुजरात का पिछला क्षत्रिय मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला थे जो वर्ष 1996 में बने थे। माना जाता है कि पिछले आम चुनाव में आणंद, खेडा के साथ ही पाटन, बनसकंठा में कांग्रेस को जीत दिलाने में भी क्षत्रिय वोटरों ने अहम भूमिका निभाई थी। स्थानीय भाजपा नेता चिराग दवे का दावा है कि इस बार आणंद के क्षत्रिय वोटर नरेंद्र मोदी के लिए वोट देंगे।
एक स्थानीय भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नरेंद्र मोदी को तीन बार मुख्यमंत्री बनाने में अन्य पिछड़ी जातियों और आदिवासियों का बहुत बड़ा हाथ है। मोदी के समय भाजपा ने निचले तबके में जो जगह बनाई है वह पहले कभी नहीं बनी। अब पार्टी हाईकमान पर है कि वह इस समुदाय को अपने साथ रख कर चलना चाहती है या किसी पटेल या क्षत्रिय को सीएम पद देकर इन्हें फिर से कांग्रेस की तरफ जाने का रास्ता खोल देती है।
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