क्या पता, जीते जी न्याय मिले या नहीं : संतोष आनंद
जिंदगी की ना टूटे लड़ी जैसे गीतों के रचनाकार संतोष आनंद को न्याय मिलने की आस अब मायूसी में बदल रही है। रविवार को बेटे-बहू की मौत पर न्याय मिलने के सवाल पर उनका गला रुंध गया।
आगरा [जागरण संवाददाता] ।जिंदगी की ना टूटे लड़ी जैसे गीतों के रचनाकार संतोष आनंद को न्याय मिलने की आस अब मायूसी में बदल रही है। रविवार को बेटे-बहू की मौत पर न्याय मिलने के सवाल पर उनका गला रुंध गया। आंखों से पोंछते हुए इतना ही बोले कि जिस गति से जांच चल रही है, न्याय मिलने तक तो मेरी उम्र गुजर चुकी होगी। पता नहीं, जीते जी न्याय मिल पाएगा या नहीं।
बोदला-सिकंदरा रोड के सुलभपुरम स्थित आराधना भवन में शनिवार को पत्रकारों से बात में उन्होंने कहा कि न जाने कितने लोग मेरे पास आए, किसी ने सीबीआइ की जांच की मांग करने को कहा तो किसी ने कुछ, सभी ने फोटो खिंचाए और चले गए। मैं अकेला रह गया हूं। पैरवी के लिए अकेला कहां लखनऊ, दिल्ली आदि के चक्कर लगाता रहूंगा। कहां तक खर्चा उठाऊंगा। फिर बोले, अब मेरे घर में कोई पुरुष नहीं, लेकिन मेरा पौरुष अभी जिंदा है। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं तो दोषियों को जानता तक नहीं हूं। आप लोग ही न्याय के लिए आवाज उठाएं।
संतोष आनंद ने अपनी पौत्री रिदिमा के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अब उनके घर का वही एक चिराग है। वह मात्र साढ़े तीन साल की है और मेरी उम्र साढ़े 75 साल हो गई। मैं उसके लिए ऐसी आधारशिला रखूंगा कि वह बहुत बड़ी देशभक्त बने। अब मुझे रिदिमा के लिए ही जीना है।