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बेनजीर ने ठुकरा दी थी कारगिल जैसी साजिश, शरीफ को थी जानकारी

पाकिस्तानी सेना ने बेनजीर भुट्टो के प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री काल में भी कारगिल में सैन्य अभियान की साजिश रची थी, लेकिन बेनजीर ने इसे ठुकरा दिया था। इसके बाद 1999 की गर्मियों में नवाज शरीफ के कार्यकाल में जनरल परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ हुई थी।

By Manoj YadavEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2015 06:27 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2015 06:49 PM (IST)
बेनजीर ने ठुकरा दी थी कारगिल जैसी साजिश, शरीफ को थी जानकारी

नई दिल्ली। पाकिस्तानी सेना ने बेनजीर भुट्टो के प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री काल में भी कारगिल में सैन्य अभियान की साजिश रची थी, लेकिन बेनजीर ने इसे ठुकरा दिया था। इसके बाद 1999 की गर्मियों में नवाज शरीफ के कार्यकाल में जनरल परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ हुई थी।

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यह खुलासा कराची में 1992 से 1994 तक भारत के महावाणिज्यिक दूत रहे राजीव डोगरा ने अपनी किताब "व्हेयर बॉर्डर्स ब्लीड: एन इनसाइडर अकाउंट ऑफ इंडो-पाक रिलेशन' में किया है। किताब में दोनों देशों के बीच कई विवादित मसलों का जिक्र है। पड़ोसी देशों के बीच 70 वर्ष के संघर्ष के ऐतिहासिक, राजनयिक व सैन्य नजरिये से विश्लेषण किया गया है। उन घटनाओं का सिलेसिलेवार वर्णन है, जो बंटवारे और उसके बाद हुए संघर्ष की दास्तां कह रही हैं। इसमें पाकिस्तान की स्थापना को जमीनी रूप देने वाले लॉर्ड माउंटबेटन और मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर रिश्तों में सुधार सुधार की पहल करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी व डॉ. मनमोहनसिंह की कोशिशों को भी जगह दी गई है।

आइएफसए हैं डोगरा
पुस्तक के लेखक राजीव डोगरा 1974 की बैच के भारतीय विदेश सेवा (आइएफएस) के अफसर हैं। वे इटली, रोमानिया, माल्दोवा, अल्बानिया व सेन मैरिनो के राजदूत रह चुके हैं।

स्वभाव से उदार थीं बेनजीर
डोगरा ने किताब में लिखा है कि बेनजीर भुट्टो स्वभाव से उदार थीं। पश्चिमी देशों में हुई उनकी शिक्षा ने उन्हें बाहरी दुनिया के प्रति और ग्रहणशील बना दिया था। यह सच है कि वह छोटे स्तर की खुफिया गपशप आधारित सूचनाओं से प्रभावित हो जाती थीं, लेकिन यह भी हकीकत है कि मौका आने पर वह सेना के खिलाफ भी उठ खड़ी होती थीं। इसी कारण उनके प्रधानमंत्री काल में कारगिल जैसी घुसपैठ की साजिश को उन्होंने ठुकरा दिया था। बेनजीर के एक इंटरव्यू का उल्लेख करते हुए डोगरा ने लिखा कि कैसे उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य अभियान महानिदेशक जनरल परवेज मुशर्रफ के कारगिल जैसे अभियान के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।

"तो हमें भी आजाद कश्मीर छोड़ना पड़ेगा"
मुशर्रफ ने अपने प्रस्ताव में पाकिस्तान की जीत और श्रीनगर पर कब्जे की खूबसूरत तस्वीर पेश की थी, लेकिन बेनजीर ने उनसे कहा था-"नहीं, जनरल, यदि उन्हें (भारत को) श्रीनगर छोड़ने को कहा गया तो श्रीनगर से ही नहीं बल्कि आजाद कश्मीर से हमें भी हटना पड़ेगा क्योंकि संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के अनुसार पहले जनमत संग्रह होगा जो कि आजाद कश्मीर में भी होगा।" डोगरा ने लिखा है कि किसी पाकिस्तानी नेता द्वारा सेना प्रमुख को किसी दुस्साहस के खिलाफ चेताने का यह बिरला उदाहरण है।

शरीफ को थी कारगिल की जानकारी
डोगरा का दावा है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को कारगिल में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ की जानकारी थी, जबकि वह भारतीय प्रधानमंत्री अटलजी की ऐतिहासिक लाहौर-दिल्ली बस यात्रा का स्वागत कर रहे थे। उस वक्त बस के पास खड़े होकर जब नवाज शरीफ अटलजी से गले मिले थे तब बहुत अधिक असहज दिखाई दे रहे थे। शरीफ के शर्मिंदा होने की वजह यह थी कि उन्हें पता था कि पाकिस्तानी सैनिक कारगिल की चोटियों पर कब्जा जमा चुके हैं।

मुंबई धमाकों की मंजूरी शरीफ ने ही दी थी
पुस्तक के लेखक डोगरा ने यह भी दावा किया है कि 1993 के मुंबई बम धमाकों की भी तत्कालीन प्रधानमंत्री शरीफ को पूर्व सूचना थी तथा उन्होंने उसकी मंजूरी दी थी। डोगरा ने यह दावा पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के एक जज से 1994 में कराची में हुई मुलाकात के आधार पर किया है।

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