Move to Jagran APP

जब बेटी को पढ़ना सिखाने के लिए पिता ने बांधी आंखों पर पट्टी

बच्ची को पढ़ना सिखाने के लिए पिता ने पहले खुद आंखों में पट्टी बांधककर उस अंधेरी दुनिया को महसूस किया।

By vivek pandeyEdited By: Published: Tue, 26 May 2015 11:38 AM (IST)Updated: Tue, 26 May 2015 03:06 PM (IST)
जब बेटी को पढ़ना सिखाने के लिए पिता ने बांधी आंखों पर पट्टी

रायपुर(छत्तीसगढ़)। फाफाडीह इलाके की नेत्रहीन छात्रा अपर्णा सचदेव ने सीबीएसई की बारहवीं परीक्षा में 96.8 फीसदी अंक पाकर अपने पैरेंट्स सहित पूरे शहर का नाम रौशन किया है। बच्चे के आगे अगर कोई नैसर्गिक चुनौती हो और उसे मां- बाप का पूरा साथ मिले तो निश्चित ही चुनौती छोटी पड़ जाती है।

loksabha election banner

अपर्णा की इस शानदार सफलता के पीछे उनके पापा का भी बड़ा समर्पण रहा। बच्ची को पढ़ना सिखाने के लिए उन्होंने पहले खुद आंखों में पट्टी बांधककर उस अंधेरी दुनिया को महसूस किया जिसमें उनकी बेटी शिक्षा के लिए संघर्ष कर रही थी और फिर एक बाप होने के नाते बेटी के लिए ऐसा रास्ता तैयार किया जिससे उनकी लाडली की मंजिल आसान हो गई। एनएच गोयल स्कूल की छात्रा अपर्णा लैपटॉप के जरिए परीक्षा में बेहतर अंक पाकर लाखों नेत्रहीन विद्यार्थियों के लिए मिसाल बन गई है।

पहले ब्रेललिपी में की पढ़ाई

आठवीं तक किसी तरह अपर्णा ने ब्रेललिपि में पढ़ाई की, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल में ब्रेललिपि के लिए एक्सपर्ट हीं नहीं मिले। ऐसे में भी उसके पिता दिनेश ने हार नहीं मानी। बिटिया को पढ़ाने और बढ़ाने के जज्बे को हौसला तब मिला, जब सीबीएसई ने सर्कुलर जारी कर नेत्रहीन बच्चों को वॉइस कम्प्यूटर में भी पढ़ने और परीक्षा देने की छूट दी। अब क्या था।

दिनेश वॉइस कम्प्यूटर घर लाए और पहले खुद अपनी आंखों में पट्टी बांधकर लिखना शुरू किया। जब वे लिखने में सफल हुए, तब अपर्णा को भी सिखाया। दिनेश कहते हैं कि परिस्थितियां विषम नहीं होती हैं, हमारी सोच विषम होती है। इच्छाशक्ति हो तो सबकुद संभव है। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात का तनिक भी दुख नहीं है कि मेरी बेटी देख नहीं सकती है। मां संगीता कहती हैं कि पूरे देश में घूमी तो देखी कि लाखों बच्चों की आंखों में रोशनी नहीं है, फिर साहस जुटाई और सब कुछ नार्मल हो गया है।

जब स्कूलों ने एडमिशन देने से किया था इंकार

अपर्णा के पिता दिनेश सचिदेव की खुद की छोटी ऑयल इंडस्ट्री है। मां संगीता सचिदेव हाउस वाइफ हैं। परिजनों को जब अपर्णा को लेकर पुरानी बातें याद आती हैं तो वे थोड़े से मायूस हो जाते हैं। बात उस समय की है, जब अपर्णा पांच साल की थी। पालकों ने नॉर्मल स्कूल में ही दाखिला दिलाने की कोशिश की थी, लेकिन स्कूलों ने मना कर दिया था।

स्कूलों को आपत्ति थी कि आपकी बेटी को दिखता नहीं है, कहीं गिर गई तो क्यों करेंगे? पालकों ने कहा कि हमारी जिम्मेदारी है बच्ची को संभालने की। आखिरकार बच्ची को राजधानी के प्रेरणा संस्थान का सहारा मिला। इसके जरिए उसने ब्रेल लिपि में भी पढ़ाई करना सीख लिया। बाद में वॉइस लैपटॉप में टाइप करना सीखा और पढ़ाई की। अब खुद इंटरनेट से स्टडी मटेरियल डाउनलोड कर पढ़ाई करती है।

साक्षात सरस्वती का रूप, आईएएस बनने की तमन्ना

अपर्णा साक्षात सरस्वती के रूप में है। पढ़ाई के साथ-साथ वह गीत-संगीत में भी निपुण है। शहर के कमला देवी संगीत महाविद्यालय से उसने संगीत की पढ़ाई की है। वह गिटार बहुत अच्छा बजाती है। अपर्णा ने नईदुनिया को बताया कि उसे अपने परिवार में नेत्रहीन होने का कभी भी अहसास नहीं हुआ।

उसका लक्ष्य आईएएस बनना है। वह अपनी सफलता का श्रेय नियमित दो घंटे पढ़ाई के साथ मां-बाप, शिक्षक और अपने परीक्षा के समय रीडर बनी सौंदर्या राठौर को देती है। इसके अलावा उसकी सहेलियों में प्राची, कोमल और रबीना का भी सहयोग मिला है।

(साभार : नई दुनिया)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.