बैंकों के फंसे साढ़े सात लाख करोड़
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नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट के 1993 के बाद आवंटित कोयला ब्लाकों को गैरकानूनी ठहराए जाने के बाद बैंकों की लगभग साढ़े सात लाख करोड़ रुपये की राशि फंसने की आशंका बढ़ गई है। अगर सुप्रीम कोर्ट इन कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद कर देता है तो बैंकिंग क्षेत्र के लिए यह बड़ा झटका होगा।
बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े सूत्रों का मानना है कि सबसे ज्यादा नुकसान बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों को भारी भरकम कर्ज देने वाले बैंकों को उठाना पड़ सकता है। सरकारी क्षेत्र के ज्यादातर बैंकों ने ऐसी निजी व सरकारी बिजली उत्पादन कंपनियों को कर्ज दिया हुआ है। इनमें से अधिकतर कंपनियों को 1993 के बाद कोल ब्लॉक आवंटन किए गए हैं। अगर इन ब्लॉकों का आवंटन सुप्रीम कोर्ट रद कर देता है तो कंपनियों के बिजली उत्पादन पर असर पड़ेगा। इससे इन कंपनियों को मिला बैंक लोन फंसे कर्ज (एनपीए) में तब्दील हो सकता है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) से लेकर यूनियन बैंक समेत कई का एक्सपोजर ऊर्जा क्षेत्र में है। इनमें पावर जनरेशन कंपनियों के साथ- साथ राज्य बिजली बोर्डो को दिया गया कर्ज भी शामिल हैं। चूंकि कोयला ब्लॉक रद होने का असर सबसे ज्यादा बिजली क्षेत्र पर ही होगा, इसलिए बैंकों के कर्ज डूबने का भी उतना ही खतरा मंडरा रहा है।
स्टील कंपनियों को भी दिया कर्ज
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्टील कंपनियों पर भी पड़ेगा, जिन्हें कोयला ब्लॉक आवंटित हुए हैं। बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक बैंकों ने आयरन व स्टील उद्योग को भी करीब 2.65 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया हुआ है। इन्हें मिले कोयला ब्लॉक रद होते हैं तो न सिर्फ उत्पादन पर असर आएगा, बल्कि अपने उत्पादन को जारी रखने के लिए इन पर महंगे आयातित कोयले का अतिरिक्त बोझ भी पड़ेगा। यह कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन को प्रभावित करेगा, जिसके चलते बैंकों का कर्ज भी फंस सकता है।
शीर्ष अदालत ने 1993 से लेकर 2010 तक आवंटित हुए कोयला ब्लॉकों को अवैध ठहराया है। इससे कम से कम 218 कोयला ब्लॉकों पर रद होने का खतरा मंडराने लगा है। वैसे उद्योग व बैंकों से जुड़े जानकारों का मानना है कि जिन ब्लॉकों में खनन शुरू हो चुका है उन्हें कोर्ट अर्थदंड वगैरह लगाकर रद करने की कार्रवाई से बाहर रख सकता है।
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