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आखिर क्या थी वाजपेयी की 'कश्मीर नीति', जिसका बार - बार जिक्र करती हैं महबूबा

अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर समस्या के हल के लिए बातचीत को सबसे उपयुक्त माध्यम बताया था। उन्होंने कहा, 'लोकतंत्र, मानवता और कश्मीरियत को बचाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा।'

By Digpal SinghEdited By: Published: Mon, 24 Apr 2017 12:28 PM (IST)Updated: Mon, 24 Apr 2017 08:35 PM (IST)
आखिर क्या थी वाजपेयी की 'कश्मीर नीति', जिसका बार - बार जिक्र करती हैं महबूबा
आखिर क्या थी वाजपेयी की 'कश्मीर नीति', जिसका बार - बार जिक्र करती हैं महबूबा

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सोमवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। पीएम मोदी से मुलाकात के बाद जब वह पीएम आवास से बाहर आयीं तो उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी को याद किया। उन्होंने कहा कश्मीर समस्या का हल वाजपेयी के रास्ते पर चलकर ही निकल सकता है। कश्मीर के मामले में बार-बार वाजपेयी के फार्मूले की बात होती है।

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गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर में शांति स्थापित करने की दिशा में बेहतरीन योगदान दिया, जिसकी वजह से उनकी कश्मीर नीति को पक्ष और विपक्ष सहित सभी राजनीतिक दलों की ओर से सराहा गया। ऐसे में यह जानना अहम हो जाता है कि कश्मीर को लेकर आखिर वाजपेयी की नीति क्या थी?

अटल की कश्मीर नीति

अटल बिहारी वाजपेयी कश्मीर समस्या का हल इंसानियत, जम्‍हूरियत और कश्‍मीरियत के रास्ते पर चलते हुए करना चाहते थे। पीएम मोदी की ओर से उनकी इसी नीति का कई बार अपने भाषणों में जिक्र किया गया। अटल बिहारी वाजपेयी के मुताबिक इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत की भावना के साथ जम्मू-कश्मीर में शांति, प्रगति और समृद्धि का सिद्धांत लागू करना चाहिए। घाटी के उग्रवादी तत्वों और शायद नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बसे कश्मीरियों सहित जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक धरातल के सभी वर्गों द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी के इस सिद्धांत को सराहा गया।

अटल बिहारी बाजपेयी ऐसे शख्स थे, जिन्होंने करगिल संघर्ष, भारतीय विमान का अपहरण कर कंधार ले जाने और भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के बावजूद बातचीत की पहल को जारी रखा। सभी व्यवधानों और पाकिस्तानी सेना व आईएसआई द्वारा उकसाने की गंभीर कोशिशों के बावजूद वाजपेयी ने शांति प्रक्रिया को पटरी से नहीं उतरने दिया। 

'गुड फ्राइडे' स्पीच

बात 18 अप्रैल 2003 की है। श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में प्रधानमंत्री पहुंचे थे। यहां काफी संख्या में भीड़ पहले ही उन्हें सुनने के लिए पहुंच चुकी थी। मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने अच्छी व्यवस्था की थी। जैसे ही वाजपेयी स्टेडियम में पहुंचे, वहां पास में ही मौजूद एक चर्च की घंटी बज उठी। वाजपेयी ने वहां बोलना शुरू किया तो बात कश्मीर में बदलाव से लेकर भारत-पाकिस्तान रिश्तों तक कई आयामों से होते हुए लोगों के दिलों तक पहुंच गई। कश्मीर और दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में कई लोग आज भी पूर्व प्रधानमंत्री के उस भाषण को 'गुड फ्राइडे' स्पीच के नाम से पुकारते हैं। असल में उस दिन इसाईयों का त्योहार गुड फ्राइडे भी था।

बातचीत से निकलेगा हल

स्टेडियम में सभी लोग बड़ी शांति से वाजपेयी को सुन रहे थे। उन्होंने कहा, बातचीत से सभी समस्याओं का हल निकलता है। हम हर समस्या पर चाहे वह अंदरूनी हो या बाहरी बातचीत को तैयार हैं। उन्होंने कहा, 'मैं शांति का संदेश लेकर लाहौर गया। हमें अपने पड़ोसियों के साथ दोस्ती रखनी चाहिए, लेकिन उन्होंने कारगिल पर हमला कर दिया। इसके बाद मैंने जनरल मुशर्रफ को बातचीत के लिए आगरा बुलाया। सोचा था कि ताजमहल के शहर में बातचीत होने पर पाकिस्तानी जनरल को 'प्यार की भाषा' समझ आएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हम मानते हैं कि दोस्ती की कोशिशें दोनों तरफ से होनी चाहिए, ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती।'

उन्होंने कहा, 'इसके बाद भी हम दोस्ती के लिए तैयार हैं। हमारे पास क्या कुछ नहीं है, हमारी हजारों साल पुरानी साझा संस्कृति है। हमें साथ रहना है। नक्शे बदल रहे हैं। हमें भी बदलना चाहिए। यह नक्शे बदलने का सबसे उपयुक्त समय है।'

इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत

पूर्व प्रधानमंत्री ने कश्मीर की अंदरूनी और बाहरी समस्या के हल के लिए बातचीत को सबसे उपयुक्त माध्यम बताया था। उन्होंने कहा, 'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत को बचाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा।' उन्होंने कहा बातचीत इंसाफ और इंसानियत के आधार पर होगी।

गुड फ्राइडे स्पीच के अगले ही दिन वाजपेयी ने कहा, 'अगर पाकिस्तान आज खुले तौर पर यह कह दे कि वह घुसपैठ पर रोक लगा देगा और आंतकवादी की फैक्टरी बंद कर देगा तो मैं कल ही विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी इस्लामाबाद भेज दूंगा।' उन्होंने कहा, 'कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच ही रहना चाहिए। बहुत से लोग हैं जो हमें राय देने के लिए तैयार हैं। अगर हम किसी तीसरे को इसमें लाते हैं तो यह मामला और भी उलझेगा।'

'सपनों का सौदागर' नहीं

अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस ने अटल बिहारी वाजपेयी पर सपनों का सौदागर होने का आरोप लगाया था। इस पर उन्होंने कहा, अलगाववादियों को नागा-टाइप की बातचीत की मांग नहीं करनी चाहिए। क्योंकि हम उन्हें प्राथमिकता देते हैं।

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