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क्या सरकार समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या वह देश में समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है? इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को तलाक कानून में संशोधन का प्रस्ताव तीन सप्ताह में पेश करने का निर्देश भी दिया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 14 Oct 2015 03:05 AM (IST)Updated: Wed, 14 Oct 2015 12:27 PM (IST)
क्या सरकार समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या वह देश में समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है? इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को तलाक कानून में संशोधन का प्रस्ताव तीन सप्ताह में पेश करने का निर्देश भी दिया है। कानून मंत्री गौड़ा ने कहा है कि सरकार समान नागरिक संहिता पर सभी की राय लेगी, उसके बाद ही फैसला करेगी।

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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रमजीत सेन और शिव कीर्ति सिंह की पीठ ने सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि वह समान नागरिक संहिता पर सरकार का पक्ष पेश करें। कुमार ने तीन सप्ताह का वक्त मांगा जो कोर्ट ने दे दिया। पीठ ने कहा कि इस पर पूरा भ्रम है। हमें समान नागरिक संहिता पर काम करना चाहिए। इसका क्या हुआ? यदि सरकार इसे करना चाहती है तो करे, आप इसे बनाकर लागू क्यों नहीं करते?

उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने जुलाई में कानून व न्याय मंत्रालय से कहा था कि वह तलाक कानून की उपधारा [1] और धारा 10ए में संशोधन पर फैसला करे और उसे सूचित करे। सुप्रीम कोर्ट दिल्ली के अल्बर्ट एंथोनी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एंथोनी ने ईसाई दंपती के तलाक के लिए दो साल इंतजार करने और अन्य के लिए एक साल के इंतजार के कानूनी प्रावधान को चुनौती दी है। याचिका में तलाक कानून 1869 की धारा 10ए [1] हटाने का आग्रह किया गया है। इसी धारा में ईसाई दंपती के लिए दो वर्ष तक अलग रहने की अनिवार्यता है। एंथोनी ने इसे भेदभाव बताया है।

हाई कोर्ट कर चुकी अवैध घोषित

ईसाई दंपती के इस तलाक प्रावधान को केरल व कर्नाटक हाई कोर्ट असंवैधानिक करार दे चुकी हैं, लेकिन अन्य राज्यों में रहने वाले ईसाई समुदाय के लोगों को उक्त दो हाई कोर्ट के फैसलों का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने समान नागरिक संहिता को देश की जरूरत बताया है, लेकिन कहा कि व्यापक चर्चा के बाद ही इस पर कोई फैसला किया जा सकता है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा हलफनामा दाखिल करने से पहले वह प्रधानमंत्री, कैबिनेट के सहयोगियों, अटार्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल के साथ विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता पर सहमति बनाने के लिए विभिन्न पर्सनल लॉ बोर्डों और संबंधित पक्षों के साथ व्यापक चर्चा की जाएगी। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 44 में भी समान नागरिक संहिता की बात कही गई है। लेकिन यह संवेदनशील मुद्दा है।

भारत में अव्यावहारिक : मौलवी

मौलवी अब्दुल हमीद नोमानी ने कहा कि भारत में समान नागरिक संहिता अव्यावहारिक है। उन्होंने कहा कि पूरा मुस्लिम समुदाय इसके खिलाफ है। भारत में धर्म और जाति में विविधता है। ऐसे में सभी को कानून द्वारा बांधना व्यावहारिक नहीं है। जो लोग ऐसा चाहते हैं, वे देश की विविधता की अवहेलना कर रहे हैं।


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