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हमने रेलवे को सही दिशा में मोड़ दिया है : सुरेश प्रभु

रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने अपनी दो साल की उपलब्धियों को बताते हुए कहा कि पारदर्शिता, परिश्रम की बदौलत उन्होंने रेलवे को सही दिशा में मोड़ दिया है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sat, 28 May 2016 01:46 AM (IST)Updated: Sat, 28 May 2016 01:52 AM (IST)
हमने रेलवे को सही दिशा में मोड़ दिया है : सुरेश प्रभु

संजय सिंह, नई दिल्ली। पारदर्शिता, परिश्रम और पालन की बदौलत रेलवे में बदलाव दिखाई देने लगा है। भ्रष्टाचार और कामचोरी पर लगाम लगने से सेवाओं के स्तर में सुधार हुआ है। इसका लाभ आम रेल यात्री से लेकर बड़े व्यापारिक ग्राहकों तक सभी को मिल रहा है और सभी इसे महसूस कर रहे हैं। इससे प्रतीत होता है कि हमने रेलवे को सही दिशा में मोड़ दिया है। रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने अपने मंत्रालय की दो साल की उपलब्धियों को कुछ इस तरह से समेटने की कोशिश की। वह मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर इस संवाददाता से रूबरू थे।

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रूटीन जिम्मेदारियों के अलावा पिछले कई दिनों से लगातार चैनलों और प्रिंट मीडिया को इंटरव्यू देने से कुछ थके दिख रहे प्रभु के चेहरे पर इस बात से मुस्कान तिर गई कि उनसे परंपरागत प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे। साथ ही इस संदर्भ से भी प्रसन्न हुए कि कुल मिलाकर उनके काम को पसंद किया जा रहा है। यह बात दीगर है कि वह अपने आपसे संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें लगता है कि वे इससे बेहतर कर सकते थे। लेकिन रेलवे अत्यंत विशाल संगठन है और अपेक्षाएं ज्यादा हैं। इसलिए कठिनाइयां भी कम नहीं हैं। परंतु जिस तरह जनता और नेतृत्व का समर्थन मिला है उससे आगे की राह आसान अपेक्षाकृत आसान हो गई है।

आपके काम की तारीफ हो रही है। लेकिन खुद कितना संतुष्ट हैं?

(हल्की आत्मीय मुस्कराहट के साथ) 'सबको अच्छा लगने पर खुद को भी अच्छा ही लगता है। लेकिन अभी बहुत काम बाकी है। मुझे सबसे बड़ी उपलब्धि रेलवे में पारदर्शिता आने की लगती है। इसमें इलेक्ट्रानिक्स और डिजिटल इंडिया का बड़ा योगदान रहा है। कामचोरी कम होने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है। जो काम दो साल में होता था, छह महीने में होने लगा है। ऑनलाइन मानीटरिंग से परियोजनाओं की रफ्तार बढ़ी है। सेवाओं के स्तर में भी सुधार हुआ है।'

लेकिन सबको कन्फर्म आरक्षण देने की चुनौती बरकरार है?

इस मोर्चे पर भी बहुत काम हो रहा है। लेकिन थोड़ा वक्त लगेगा। दरअसल, आरक्षण न मिलने की मुख्य वजह है ट्रेनों की कमी है। हमारे पास सीमित लाइन क्षमता है। प्रमुख रूटों पर कन्जेशन के शिकार हैं। इनका सौ-डेढ़ सौ फीसद क्षमता उपयोग हो रहा है। इन पर अब और ट्रेनें नहीं चलाई जा सकतीं। इसीलिए हमने नई ट्रेनों का एलान बंद कर रखा है। जब तक नई लाइनें नहीं बन जातीं, तब तक नई ट्रेनें नहीं चलाई जा सकतीं। समस्या का समाधान 2019-20 तक होगा जब पूर्वी और पश्चिमी डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर बन कर तैयार हो जाएंगे। तब हम मालगाडिय़ों को इन पर शिफ्ट कर देंगे और मौजूदा लाइनें पूरी तरह यात्री ट्रेनों के लिए खाली हो जाएंगी। इससे यात्री ट्रेनों की संख्या बढ़ेगी और लोगों को मनमाफिक आरक्षण मिलने लगेगा। फिर भी हम पूरी तरह उस दिन के भरोसे नहीं बैठे हैं। जहां भी संभव है, वहां दूसरी, तीसरी और चौथी लाइनें बिछाने का प्रयास किया जा रहा है। सबसे ज्यादा दिक्कत दिल्ली-मुगलसराय रूट पर है। खासकर इलाहाबाद के नजदीक। वहां कन्जेशन दूर करने पर काम हो रहा है। इससे दिल्ली-हावड़ा के अलावा कई अन्य रूटों पर भी यातायात बेहतर होने की संभावना है।

कुछ लोग हाईस्पीड ट्रेनों की जरूरत पर सवाल उठा रहे हैं?

जिन्हें आलोचना की आदत है उन्हें रोकना मुश्किल है। लेकिन हकीकत यह है कि हाईस्पीड ट्रेनें वक्त की जरूरत हैं। यह रफ्तार का युग है। हर किसी को जल्दी है। ऐसे में 55 किलोमीटर की औसत रफ्तार वाली ट्रेनों से काम नहीं चलने वाला। वे भी चलेंगी। लेकिन जिन्हें वक्त की कीमत पता है, उन्हें हाईस्पीड ट्रेनों की अहमियत भी मालूम है। वाजपेयी जी के समय में जब मेट्रो रेल चलाई गई तब भी लोग इसी तरह की बातें करते थे कि इतने खर्चे की क्या जरूरत है। लेकिन अब देखिए हर कहीं मेट्रो की मांग हो रही है। इसी तरह जब हाईस्पीड ट्रेने चलने लगेंगी तब लोगों को उनका फायदा समझ में आएगा। रही खर्च की बात तो उसे लेकर भी भ्रामक प्रचार किया जा रहा है। जरा सोचिए, मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन के लिए जापान हमें 0.1 फीसद ब्याज पर अस्सी हजार करोड़ से ज्यादा का लोन दे रहा है। इतना सस्ता लोन कहीं मिलेगा? हमें इतनी बड़ी धनराशि लगभग मुफ्त में मिल रही है। बाकी जो थोड़ा-बहुत खर्च है वह गुजरात और महाराष्ट्र सरकार को करना है। रेलवे को फायदा ही फायदा है। बुलेट ट्रेन का फायदा जनता को मिलेगा, जबकि रेलवे को जापानी ट्रैक, कोच व सिग्नलिंग तकनीक तथा प्रशिक्षण के लाभ मिलेंगे जिनका उपयोग संपूर्ण भारतीय रेल की बेहतरी में किया जा सकेगा। और फिर हम केवल जापान से सहयोग नहीं ले रहे। चीन, फ्रांस, स्पेन जैसे कई अन्य देश भी हाईस्पीड और सेमी हाईस्पीड ट्रेनों के संचालन में हमारे साथ सहयोग कर रहे हैं। इनके साथ दिल्ली-चंडीगढ़-अमृतसर, दिल्ली-चेन्नई समेत अनेक रूटों पर अध्ययन हो रहा है। स्पेन की टैल्गो कंपनी तो अपने सेमी हाईस्पीड ट्रेन सेट्स को ट्रायल के लिए भारत लेकर आ गई है। ट्रायल कामयाब रहा तो जल्द ही दिल्ली-मुंबई के बीच 200 किलोमीटर की रफ्तार वाली ट्रेने चलती दिखाई देंगी।

कब तक चलेगी बुलेट ट्रेन, क्या सामान्य लोग चल पाएंगे?

मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन 2023 तक चलाने के पूरे प्रयास हैं। इसके किराये को लेकर हौव्वा खड़ा किया जा रहा है। किराये वही होंगे जो लोगों को स्वीकार्य होंगे, और जिन पर ट्रेन को लाभ में चलाना संभव होगा। अन्यथा इतना बड़ा जोखिम कोई क्यों लेगा।

रेलवे में नई कार्य संस्कृति लाने में कितना कामयाब हुए?

पहले काम को जानबूझकर लटकाया जाता था। रेलवे बोर्ड के अफसरों से मिलना टेढ़ी खीर था। अफसर खुद को राजा समझते थे। उन्हें लगता था कि व्यापारी उनकी दया पर निर्भर हैं। यहां बैठकर वे किसी की भी किस्मत बना-बिगाड़ सकते हैं। हमने ऐसे अफसरों को चलता किया और नई सोच वाले मेहनती व ईमानदार अफसरों को जिम्मेदारियां दीं। इसी का नतीजा है कि आज न केवल परियोजनाएं पटरी पर हैं, बल्कि सेवाओं में भी सुधार परिलक्षित हो रहा है। रेलवे बोर्ड के सदस्य से लेकर जीएम, डीआरएम तक सभी अब जनता की शिकायतों की खुद निगरानी करने और मुझे रिपोर्ट करने लगे हैं। यह व्यवस्था दैनिक आधार पर काम कर रही है। इसका बहुत बड़ा असर हुआ है। अब सबको पता है कि गड़बड़ी की तो पकड़े जाएंगे। इससे कामचोरी घटी है तथा कर्मचारी पहले से ज्यादा परिश्रम करने लगे हैं। इस फर्क को हर कोई महसूस कर सकता है।

भ्रष्टाचार में कमी आई?

पारदर्शिता होगी, काम होगा तो भ्रष्टाचार अपने आप कम हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि पहले काम नहीं होता था। पहले भी काम हुए, लेकिन जितने का एलान होता था उससे आधा या चौथाई धरातल पर दिखाई पड़ता था। उसकी भी कोई समय सीमा नहीं थी। अब काम जल्दी शुरू होकर जल्दी पूरे हो रहे हैं और लोगों को पूरे दिखाई भी दे रहे हैं। पहले रेल परियोजनाओं के बारे में माना जाता था कि इनकी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। परियोजनाएं दस-दस, बीस-बीस साल तक चलती रहती थीं। लेकिन प्रक्रियाओं में सुधार, ई-टेंडरिंग व रियल टाइम मानीटरिंग के जरिए हमने इन्हें समय सीमा में बांध दिया है। ड्रोन से निगरानी होने लगी है। नतीजतन अब किसी भी परियोजना में सामान्यत: पांच साल से अधिक समय नहीं लगेगा।

किस मोर्चे पर अभी भी कमी दिखाई देती है?

कुछ न कुछ कमी तो सभी मोर्चों पर है। अभी तो शुरुआत हुई है। जो कदम उठाए गए हैं उनका वास्तविक लाभ दस-बीस साल बाद दिखाई देगा। लेकिन हमने रेलवे को सही दिशा में मोड़ दिया है।


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