1965 युद्ध के वो वीर जिन्होंने दुश्मन के दांत किए थे खट्टे
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध को आज 50 वर्ष पूरे हो गए। इस युद्ध में भारतीय सेना के जांबाजों ने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए। हर मोर्चे पर पाक को मुंह की खानी पड़ी थी। भारतीय फौज एक समय पाकिस्तान के लाहौर शहर के करीब
नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध को आज 50 वर्ष पूरे हो गए। इस युद्ध में भारतीय सेना के जांबाजों ने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए। हर मोर्चे पर पाक को मुंह की खानी पड़ी थी। भारतीय फौज एक समय पाकिस्तान के लाहौर शहर के करीब पहुंच गई थी। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के दखल के बाद पांच महीने तक चले इस युद्ध की समाप्ति शिमला समझौते के साथ हुई। इस युद्ध में भारतीय फौजियों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। आइये जानते हैं उन रणबांकुरों में से कुछ खास के बारे में।
अब्दुल हमीद
1965 भारत-पाक युद्ध में पाक सेना ने खेमकरण सेक्टर के पांच किलोमीटर दायरे में भारतीय इलाके में कब्जा कर लिया। लेकिन भारतीए सेना ने हिम्मत न हारते हुए 10 सिंतबर को जवाबी हमला कर उत्तर आसल गांव के पास चक्रव्यूह रच कर पाक के 100 टैंकों को इस कदर नष्ट कर दिया जोकि आने वाले समय तक एक इतिहास बना रहेगा। इस युद्ध में अब्दुल हमीद ने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए अपनी राइफल से तीन पाक टैंकों को नष्ट कर दिया तथा यही से भारतीय सेना ने पाक टैंकों को इस प्रकार घेरे में ले लिया कि उन्हें किसी भी तरफ भागने का रास्ता ही नहीं मिला और 100 टैंकों की कब्रगाह उत्तर आसल में बना दी गई। हमीद को इस बहादुरी के लिए मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ बहादुरी पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाजा गया।
एबी तारापोर
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सात से 11 सितंबर तक सियालकोट (पाकिस्तान) के फिल्लौरी नामक स्थान पर निर्णायक युद्ध हुआ था। इसे भारतीय सेना इतिहास में सबसे घातक युद्धों में शामिल किया जाता है। इस क्षेत्र पर अधिकार करने की जिम्मेदारी प्रथम आर्म्ड डिवीजन के तहत पूना हार्स रेजीमेंट के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल एबी तारापोर को सौंपी गई। 7 सितंबर को फिल्लौरी में रेजीमेंट का सामना पाकिस्तान की पैटन टैंक से हुआ। अमेरिका की ओर से सबसे मजबूत और खतरनाक बताए जा रहे पैटन टैंक से सीधी लड़ाई में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। लेफ्टिनेंट कर्नल एबी ताराबोर के नेतृत्व में गोलंदार (निशाना लगाने वाला) ने इतने सटीक लक्ष्य भेदे कि पाकिस्तानी सेना के 65 पैटन टैंक बर्बाद हो गए। युद्ध में पूना हार्स के केवल नौ टैंक बर्बाद हुए थे। बहादुरी के दम पर युद्ध के नतीजों को बदलने के बाद 16 सितंबर को लेफ्टिनेंट कर्नल एबी तारापोर युद्ध के मैदान पर ही शहीद हो गए। फिल्लौरी के युद्ध में भारतीय सेना के पांच आफिसर व 64 सैनिक शहीद हुए थे। तारोपोर को बहादुरी के परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
हवलदार जस्सा सिंह
भारतीय सेना के हवलदार जस्सा सिंह अहलुवालिया ने बहादुरी दिखाते हुए 9 सितंबर 1965 को फाजिल्का के गांव चाननवाला के निकट मुकाबला करते हुए कई पाक दुश्मनों को मार गिराया। वह तो भारत पाक युद्ध के गैलेंट हीरो थे। इतना ही नहीं, वह लड़ते-लड़ते इतने जोश में आ गए कि वह पाकिस्तानी बंकर में जा पहुंचे। पाकिस्तानियों का मुकाबला करते हुए जब उनकी बंदूक में गोलियां खत्म हो गईं तो नजदीक आ रहे दुश्मनों को बंदूक की बट से मारना शुरू कर दिया। पाकिस्तानी हमले में लहूलुहान हुए जस्सा सिंह ने जहां उनके असले को नकारा कर दिया, वहीं उन्होंने 7 दुश्मनों को भी मार गिराया। इस बीच भारतीय सेना के अन्य जवान आ गए और उन्होंने जस्सा सिंह को घायल अवस्था में संभाला। युद्ध की समाप्ति के बाद उन्हें बहादुरी के लिए वीर चक्र से नवाजा गया।
सलीम क्लेब
1965 में हुए यद्ध के नायक रहे मेजर जनरल सलीम क्लेब ने पाकिस्तानी सेना के 15 टैंकों को नष्ट करने और 9 टैंकों को पकड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें युद्ध के समय दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इनका निधन इसी साल जनवरी में हो गया।
हनुत सिंह
भारत-पाक युद्ध 1965-71 में लेफ्टिनेंट जनरल हनूत सिंह ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। युद्ध में अदम्य साहस के लिए उन्हें महावीर चक्र से नवाजा गया था। युद्ध में सेना की कमान संभालते हुए सीमा पर उन्होंने दुश्मनों से लोहा लिया। वीरता का परिचय देते हुए पाक के 60 टैंक नष्ट करने में सफलता हासिल की। उनके कदम नहीं रुके और लगातार आगे बढ़ते रहे। इसके बाद भारत-पाक युद्ध 1971 में नेतृत्व की बागडोर संभालते हुए पाक सैनिकों को धूल चटा दी।
रंजीत सिंह दयाल
1965 के युद्ध में पंजाब रेजीमेंट के अफसर रंजीत सिंह के नेतृत्व में सेना ने रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उरी सेक्टर में पाकिस्तान के हाजी पीर दर्रे पर कब्जा किया था। यहां पर कब्जे के बाद पाकिस्तानी फौज का भारत की ओर आना नामुमकिन हो गया। उन्हें वीरता और अदम्य साहस के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। 2012 में उनका 84 साल की उम्र में निधन हो गया। ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना भी रंजीत सिंह ने ही बनाई थी।
इसके अतिरिक्त 1965 के युद्ध में कई वीरों को महावीर चक्र से नवाजा गया जिनमें प्रमुख हैं- श्माम देव गोस्वामी, वेदप्रकाश त्रेहन, सुशील कुमार माथुर, बलजीत सिंह रंधावा, जोरावर सिंह बख्शी, गुरवंश सिंह सांगा, भास्कर रॉय, खेमकरन सिंह, प्रेम लाल सिंह, मदन मोहन सिंह बख्शी, हरभजन सिंह, संत सिंह, गाैतम मुबाई, दर्शन सिंह, भूपिंदर सिंह आदि।