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अर्थव्यवस्था को अभावों से निकालकर आत्मनिर्भर बनाया

अटल बिहारी वाजपेयी ने न सिर्फ भारतीय राजनीति को नए आयाम दिए, बल्कि प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को शिखर पर ले जाने की नींव भी रखी। उन्होंने अर्थव्यवस्था को अभावों के दौर से निकालकर आत्मनिर्भर बनाया। उन्होंने आर्थिक विकास के मानवीय पहलू पर जोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप

By Murari sharanEdited By: Published: Wed, 24 Dec 2014 05:29 PM (IST)Updated: Wed, 24 Dec 2014 05:42 PM (IST)
अर्थव्यवस्था को अभावों से निकालकर आत्मनिर्भर बनाया

नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा] अटल बिहारी वाजपेयी ने न सिर्फ भारतीय राजनीति को नए आयाम दिए, बल्कि प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को शिखर पर ले जाने की नींव भी रखी। उन्होंने अर्थव्यवस्था को अभावों के दौर से निकालकर आत्मनिर्भर बनाया। उन्होंने आर्थिक विकास के मानवीय पहलू पर जोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप महंगाई नीचे रही और विकास दर ऊपर उठी।

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बीते दशक में अर्थव्यवस्था ने नई ऊंचाइयां छुई। वित्त वर्ष 2005-08 के दौरान लगातार तीन साल विकास दर नौ फीसद से ऊपर रही। दरअसल उच्च विकास दर की आधारशिला वाजपेयी के कार्यकाल में ही रखी गई थी। वाजपेयी ने जो कदम उठाए उसके फल 2001-10 के दशक में सामने आए। यही वजह है कि आजादी के बाद सर्वाधिक विकास दर (7.22 प्रतिशत) इस दशक में रही।

असल में वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनने से पूर्व अपने संसदीय सफर में भारतीय अर्थव्यवस्था को विभिन्न तरह के अभावों की पूर्ति के लिए संघर्ष करते हुए देखा था। मानसून पर निर्भर कृषि, गरीबी, निरक्षरता और बेरोजगारी ऐसी समस्याएं थीं जिन्होंने वाजपेयी के संवेदनशील मन को झकझोरा। उन्होंने इनके निदान के लिए अंत्योदय जैसे कार्यक्रम शुरू किए। समस्याओं से घिरी भारतीय अर्थव्यवस्था की दशकीय वृद्धि दर 1950 से 80 तक मात्र तीन से चार फीसद रही। इस धीमी वृद्धि को अर्थशास्ति्रयों ने 'हिंदू-ग्रोथ' रेट कहा।

भारत निर्माण की आधारशिला

वाजपेयी ने एक ऐसे भारत के निर्माण की आधारशिला रखी, जिसकी अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर हो। जहां लोगों को बुनियादी सुविधाएं भी मिलें और देश का बुनियादी ढांचा भी मजबूत हो। राजग सरकार जब इस नीति पर चली तो वाजपेयी के कार्यकाल में विकास दर का स्तर उठकर औसतन सालाना छह प्रतिशत हो गया। जब 2004-05 में उन्होंने सत्ता छोड़ी तो विकास दर फीसद को पार कर गई। यही वह मोड़ था, जिसके आगे भारतीय अर्थव्यस्था ने फर्राटा भरा।

तीन संपर्क क्रांति

-भारत को प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए तीन 'संपर्क क्रांतियों' की शुरुआत की।

-पहली संपर्क क्रांति थी- राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम।

-इसके तहत देश को उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम जोड़ा गया।

-दिल्ली-मुंबई-कोलकाता और चेन्नई को जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना शुरू की गई।

-दूसरी संपर्क क्रांति दूरसंचार क्षेत्र के विकास की थी।

-इसके तहत भारत में मोबाइल टेलीफोन ने रफ्तार पकड़ी।

-तीसरी संपर्क क्रांति- हवाई परिवहन के क्षेत्र में थी।

-इसके बाद भारत में निजी एयरलाइनों का विस्तार हुआ।

-::अहम आर्थिक फैसले::-

-पेट्रोल-डीजल की कीमतें नियंत्रणमुक्त

-विनिवेश पर जोर

-नई पेंशन योजना शुरू

-बिजली क्षेत्र सहित विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया

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