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गंगा यमुना को इंसानी दर्जे के खिलाफ उत्तराखंड सरकार पहुंची सुप्रीमकोर्ट

उत्तराखंड सरकार ने गंगा यमुना को इंसानी दर्जे के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट का रूख किया है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Fri, 23 Jun 2017 10:19 AM (IST)Updated: Fri, 23 Jun 2017 10:19 AM (IST)
गंगा यमुना को इंसानी दर्जे के खिलाफ उत्तराखंड सरकार पहुंची सुप्रीमकोर्ट
गंगा यमुना को इंसानी दर्जे के खिलाफ उत्तराखंड सरकार पहुंची सुप्रीमकोर्ट

माला दीक्षित, नई दिल्ली। एक तरफ तो मध्यप्रदेश की भाजपा शासित शिवराज सरकार नर्मदा नदी को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने का विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर रही है तथा नदी के कानूनी अधिकार तय कर रही है और उधर दूसरी ओर उत्तराखंड की भाजपा सरकार गंगा और यमुना को हाईकोर्ट द्वारा दिया गया जीवित व्यक्ति का दर्जा खत्म कराने के लिए सुप्रीमकोर्ट पहुंची है।

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उत्तराखंड सरकार ने गुरुवार को सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल कर गंगा यमुना को जीवित व्यक्ति का दर्जा और कानूनी हक देने के हाईकोर्ट के आदेश को रद करने की मांग की है। व्यवहारिक दिक्कतें गिनाते हुए प्रदेश सरकार ने सुप्रीमकोर्ट से हाईकोर्ट के आदेश पर एकतरफा अंतरिम रोक भी मांगी है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गत 20 मार्च को गंगा और यमुना तथा उसकी सहयोगी नदियों को संरक्षित करने के लिए जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया था। और इन नदियों को जीवित व्यक्ति के समान सभी कानूनी अधिकार दिये थे। हाईकोर्ट ने नमामि गंगे के निदेशक, उत्तराखंड के मुख्य सचिव व उत्तराखंड के एडवोकेट जनरल को इन नदियों का संरक्षक नियुक्त करते हुए उन पर नदियों के संरक्षण की जिम्मेदारी डाली थी। राज्य सरकार ने वकील फारुख रशीद के जरिये विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है।

प्रदेश सरकार की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट का आदेश बना रहने लायक नहीं है। हाईकोर्ट ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर ये आदेश पारित किया है। हाईकोर्ट से इस तरह की कोई मांग नहीं की गयी थी। उस याचिका में सिर्फ अवैध निर्माण हटवाने की मांग थी। सरकार ने कहा है कि इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि भारत में गंगा यमुना और उसकी सहयोगी नदियों का सामाजिक प्रभाव और महत्व है और ये नदियां लोगों और प्राकृति को जीवन और सेहत देती हैं लेकिन सिर्फ समाज के विश्वास और आस्था को बनाए रखने के लिए गंगा यमुना को जीवित कानूनी व्यक्ति नहीं घोषित किया जा सकता। हाईकोर्ट ने ऐसा आदेश पारित कर भूल की है।

हाईकोर्ट के आदेश के संभावित परिणामों और दिक्कतों का जिक्र करते हुए कहा सरकार ने कहा है कि गंगा और यमुना अंतरराज्यीय नदियां है। संविधान की सातवीं अनुसूची के आइटम 56 में अनुच्छेद 246 के मुताबिक अंतरराज्यीय नदियों के प्रबंधन पर नियम बनाने का अधिकार सिर्फ केंद्र को है। ऐसे में उत्तराखंड राज्य गंगा और यमुना को जीवित व्यक्ति का दर्जा कैसे दे सकता है। किसी अन्य राज्य में इन नदियों के बारे में अगर कोई कानूनी मुद्दा उठता है तो क्या उत्तराखंड का मुख्य सचिव किसी और राज्य या केंद्र को निर्देश जारी कर सकता है।

नदियों को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने से अगर उन नदियों से बाढ़ आदि आती है और नुकसान होता है तो वह व्यक्ति मुख्य सचिव के खिलाफ नुकसान की भरपाई का मुकदमा दाखिल कर सकता है क्या राज्य सरकार को ऐसा आर्थिक बोझ वहन करना चाहिए। हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करते हुए कहा है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो सरकार को न भरपाई होने वाला नुकसान होगा।

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