मौत को दी मात, सत्तर किमी पैदल चलकर जान बचाई
हौसला हो तो हिम्मत खुद ब खुद साथ आ खड़ी होती है। यह साबित किया चमोली जिले के सात खच्चर चालकों ने। केदारनाथ त्रासदी के बीच से मौत को मात देकर गोपेश्वर पहुंचे इन सात खच्चर चालकों की चार दिन की संघर्षगाथा रोंगटे खड़े करने वाली है। तेज बारिश, सर्पीली पगडंडियां और उफनते नालों के बीच लगभग 70 किमी पैदल सफर क
गोपेश्वर/चमोली [देवेंद्र रावत]। हौसला हो तो हिम्मत खुद ब खुद साथ आ खड़ी होती है। यह साबित किया चमोली जिले के सात खच्चर चालकों ने। केदारनाथ त्रासदी के बीच से मौत को मात देकर गोपेश्वर पहुंचे इन सात खच्चर चालकों की चार दिन की संघर्षगाथा रोंगटे खड़े करने वाली है। तेज बारिश, सर्पीली पगडंडियां और उफनते नालों के बीच लगभग 70 किमी पैदल सफर कर ये जीवट वाले खच्चर चालक ऊखीमठ पहुंचे। वहां से उन्होंने लोक निर्माण विभाग के ट्रक से गोपेश्वर तक का सफर तय किया और फिर जागरण कार्यालय आकर आपबीती बयान की।
रविवार 16 जून:
चमोली जिले के सीक घाट गांव के मोहन सिंह और महिपाल सिंह खच्चरों के साथ केदारनाथ पहुंचे। तीन बजे महाराष्ट्र के यात्रियों को छोड़ने के बाद उन्हें वापस लौटना था, लेकिन अगले दिन के लिए यात्री तलाशने वहीं रुक गए। रात में घोड़ा पड़ाव के पास उन्होंने भोजन किया और वहीं टिन शेड में सोने चले गए। इसी बीच तेज बारिश शुरू हो गई और लगभग आठ बजे जोर से धमाका हुआ। इसके बाद मंदाकिनी नदी में उफान आ गया। किसी तरह जागते हुए रात कटी।
सोमवार, 17 जून:
सुबह करीब 7.30 बजे धमाके के साथ भूस्खलन हुआ और मंदिर के आसपास तेजी से इतना मलबा आ गया कि जो जहां था वहीं रह गया। चारों ओर से लोगों के चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। मौत साक्षात सामने थी। जिंदगी पाने का एकमात्र रास्ता त्रिजुगीनारायण जाने वाला पैदल मार्ग ही था। बारिश के साथ लगातार मलबा केदारनाथ के भवनों की ओर बढ़ रहा था। हिम्मत जुटाकर मोहन और महिपाल बासुकीताल पयाली के रास्ते आगे बढ़े और करीब 14 किमी पैदल चलकर पयाली डांडा बुग्याल पहुंचे। रास्ते में कई स्थानों पर लोग घायल मिले। वे चाहकर भी उनकी ज्यादा मदद कर पाने की हालत में नहीं थे। खुद उनका शरीर जवाब दे रहा था। उन्होंने रास्ते में चंदरा व सिलकोड़ी की टहनियां खाई और एक पत्थर के नीचे सो गए।
मंगलवार, 18 जून:
मोहन-महिपाल को कुछ लोगों ने उन्हें जगाया। जगाने वाले पांच अन्य खच्चर चालक थे। वे किसी अन्य रास्ते उन तक पहुंचे थे। उनके 31 खच्चर बह चुके थे। मोहन-महिपाल के हाथ-पैर काम नहीं कर रहे थे, फिर भी वे आगे बढ़े। रास्ते में कुछ और लोग मिल गए। वे सब किसी तरह सोनप्रयाग गधेरे तक पहुंचे। सामने उफनाती नदी थी, जिसे पार करना असंभव था। दूसरी छोर पर त्रिजुगीनारायण गांव के लोगों ने उन्हें देखा। गांव वालों ने बिस्कुट व फल फेंके और फिर नदी पर एक पेड़ गिराया। इसके बाद रस्सी बांधकर चार घंटे की मशक्कत के बाद सब लोग पार हुए और त्रिजुगीनारायण गांव पहुंचे।
बुधवार, 19 जून:
सुबह करीब नौ बजे सभी ने आगे का पैदल सफर शुरू किया। 40 किमी का सफर कर रात करीब आठ बजे ऊखीमठ पहुंचे। ऊखीमठ बाजार में एक छत के नीचे रात गुजारी। बारिश जारी थी। ऊखीमठ के लोगों ने खाना खिलाया।
गुरुवार, 20 जून:
सुबह सात बजते ही पैदल सफर शुरू किया। इसी दौरान एक ट्रक दिखा जो गोपेश्वर जा रहा था। ट्रक ने उन्हें गोपेश्वर पहुंचाया। दैनिक जागरण के साथ अपनी दास्तां साझा करते हुए मोहन और महिपाल ने कहा कि अब जल्द से जल्द घर जाकर इन खौफनाक पलों को भूलना चाहते हैं।
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