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अमेरिका-भारत 'टू प्लस टू' वार्ता में देरी संभव, टिलरसन की बर्खास्तगी का होगा असर

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में भारत व अमेरिका ने विदेश, रक्षा व वित्त मंत्रियों की अगुवाई में आपसी रिश्तों को नया आयाम देने का फैसला किया था।

By Tilak RajEdited By: Published: Tue, 13 Mar 2018 09:12 PM (IST)Updated: Tue, 13 Mar 2018 09:12 PM (IST)
अमेरिका-भारत 'टू प्लस टू' वार्ता में देरी संभव, टिलरसन की बर्खास्तगी का होगा असर
अमेरिका-भारत 'टू प्लस टू' वार्ता में देरी संभव, टिलरसन की बर्खास्तगी का होगा असर

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से अपने विदेश सचिव रेक्स टिलरसन को बर्खास्त किया है, उसका भारत व अमेरिका के बीच होने वाली 'टू प्लस टू' वार्ता पर असर पड़ना तय है। इस वार्ता की योजना पीएम नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच जून, 2017 में हुई पहली मुलाकात में बनी थी, जिसका मकसद दोनों देशों के रणनीतिक व कूटनीतिक रिश्तों की दशा व दिशा तय करना था। यह वार्ता दोनो देशों के विदेश व रक्षा मंत्रियों की अगुवाई में होने वाली है। इसकी पहली बैठक अप्रैल, 2018 में होने को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत हो रही थी।

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ट्रंप ने मंगलवार को अचानक ही अपने विदेश सचिव रेक्स टिलरसन की बर्खास्तगी का एलान किया है। उनकी जगह अमेरिका की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीआईए के प्रमुख माइक पोमपियो को नया विदेश सचिव बनाया गया है। भारत की तरफ से आधिकारिक तौर पर इस बदलाव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। लेकिन कूटनीतिक जानकार मान रहे हैं कि पोमपियो अभी हर देश के साथ चल रही बातचीत व द्विपक्षीय मुद्दों को समझने की कोशिश करेंगे। ऐसे में वह भारत जैसे अहम देश के साथ होने वाली बेहद महत्वपूर्ण बैठक में अपने देश की अगुवाई बगैर पूरी तैयारी के नहीं करना चाहेंगे। टिलरसन की तरफ से भारत-अमेरिकी रिश्तों की गहराई समझने की लगातार कोशिश की जा रही थी। पिछले वर्ष अक्टूबर, 2017 में टिलरसन ने भारत की यात्रा की थी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ द्विपक्षीय रिश्तों पर लंबी बातचीत की थी। उसे 'टू प्लस टू' की तैयारियों के तौर पर भी देखा गया था।

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में भारत व अमेरिका ने विदेश, रक्षा व वित्त मंत्रियों की अगुवाई में आपसी रिश्तों को नया आयाम देने का फैसला किया था। यह वार्ता वार्षिक आधार पर होनी थी। लेकिन ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में इसका स्वरूप बदल दिया गया और सिर्फ विदेश और रक्षा मंत्रियों की अगुवाई में वार्ता का फैसला किया गया।


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