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पॉलिसीधारक समझें जिम्मेदारियां

बीमा किसी व्यक्ति की बीमारी अथवा मौत की संभावना को कवर करने का व्यवसाय है। बीमा कारोबार की भाषा में इस संभावना को जोखिम कहा जाता है। जोखिम जितना अधिक होगा, प्रीमियम उतना ही ज्यादा होगा। जरूरी सूचनाएं छुपा कर कम प्रीमियम भुगतान करने वाले की स्थिति ऐसी होती है

By Edited By: Published: Sun, 21 Sep 2014 11:19 PM (IST)Updated: Mon, 22 Sep 2014 05:20 AM (IST)
पॉलिसीधारक समझें जिम्मेदारियां

बीमा किसी व्यक्ति की बीमारी अथवा मौत की संभावना को कवर करने का व्यवसाय है। बीमा कारोबार की भाषा में इस संभावना को जोखिम कहा जाता है। जोखिम जितना अधिक होगा, प्रीमियम उतना ही ज्यादा होगा। जरूरी सूचनाएं छुपा कर कम प्रीमियम भुगतान करने वाले की स्थिति ऐसी होती है जैसे कोई छोटी यात्रा का टिकट लेकर लंबी यात्रा करे और फिर पकड़े जाने पर जुर्माना भरे।

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जीवन बीमा एक अनोखा उत्पाद है। यह तत्काल कोई भला नहीं करता, लेकिन भविष्य के लिए बेहद फायदेमंद है। इसे आगे होने वाली संभावित घटनाओं के मद्देनजर बीमा कंपनी द्वारा किए गए वादों के आधार पर बेचा जाता है। पॉलिसी प्रपत्र बीमा कंपनी व बीमित के बीच हुए अनुबंध का दस्तावेज है, जिसके जरिये कुछ शर्तो का पालन होने पर भुगतान का वादा किया जाता है।

बीमा एजेंट की जिम्मेदारी है कि जरूरत पर वह दावों से संबंधित औपचारिकताएं पूरी करने में पॉलिसीधारक के परिवार की मदद करे। ऐसी स्थिति कभी भी आ सकती है जब दावाकर्ता या उसकी ओर से नामित व्यक्ति (नॉमिनी) को एजेंट या बीमा कंपनी की मदद की आवश्यकता हो। लिहाजा पॉलिसीधारक को चाहिए कि वह सभी आवश्यक सूचनाएं (स्वास्थ्य व वित्तीय स्थिति संबंधी) प्रदान कर सही निर्णय लेने में बीमा कंपनी का सहयोग करे। एक ग्राहक के रूप में आपकी भी कुछ जिम्मेदारियां होती हैं, जिनका पालन हर पॉलिसीधारक को करना ही चाहिए ।

दें सही जानकारी:

अपना प्रपोजल फॉर्म भरते वक्त और फिर बीमा अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर करते समय आपको बीमा कंपनी द्वारा मांगी गई सभी सूचनाएं साफ मन से और सही-सही भरनी चाहिए। क्योंकि आगे चलकर गलत जानकारी देने के लिए आपको जवाबदेह ठहराया जाएगा। जानबूझकर जोखिम को कम दिखाने वाला कोई तथ्य न भरें। उदाहरण के लिए यदि आप हाइपरटेंशन से ग्रस्त हैं तो बीमा पॉलिसी खरीदते वक्त इसका उल्लेख करें। यदि आप यह तथ्य छुपाएंगे तो असमय मौत की स्थिति में इसके आधार पर बीमा कंपनी आपके द्वारा नामित व्यक्ति (नॉमिनी) को दावे की रकम देने से इन्कार कर सकती है।

नॉमनी तय करना:

1938 के बीमा कानून के मुताबिक आपके द्वारा नामित व्यक्ति/व्यक्तियों को बीमित राशि का भुगतान करते ही बीमा कंपनी की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है। चूंकि बिना नॉमिनी के दावे का निपटान नहीं किया जा सकता लिहाजा सभी बीमा कंपनियां इस बात का प्रमाण मांगती हैं कि दावाकर्ता सही व्यक्ति है और उसे बीमित राशि पाने का हक है।

यदि बीमित व्यक्ति ने मृत्यु की स्थिति में बीमा लाभ प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति को नामित किया है तो बीमा राशि का भुगतान उस व्यक्ति को कर दिया जाता है। केवल तभी ऐसा नहीं होता, जब बीमित व्यक्ति इसके खिलाफ वसीयत लिखकर गया हो अथवा किसी तरह का कानूनी विवाद हो। यदि पॉलिसी में कोई नॉमिनी नहीं दर्ज है तो बीमा राशि का भुगतान प्रथम श्रेणी के कानूनी वारिस अथवा बीमित व्यक्ति द्वारा वसीयत में दर्ज कराए गए व्यक्ति/व्यक्तियों या उत्तराधिकारी/उत्तराधिकारियों को किया जाता है। परिपक्वता (मैच्योरिटी) संबंधी दावों में रकम पॉलिसीधारक को अदा की जाती है।

जमा करें सभी जरूरी कागजात :

बीमा राशि का दावा करने के लिए सभी आवश्यक कागजात जमा करें। ये तीन तरह के होते हैं :

पालिसी संबंधी कागजात:

ऐसे कागजात जिनसे साबित होता हो कि घटना पॉलिसी अनुबंध में उल्लिखित एक्स्क्लूजंस में नहीं आती=पहचान और यह साबित करने वाले कागजात कि दावाकर्ता सही नामित है।

बीमा कंपनी तब तक दावे का निपटारा नहीं कर सकती जब तक सारे कागजात न मिल जाएं। यदि किसी कारण मूल दस्तावेज न हों तो दावाकर्ता को उनकी फोटो प्रतियां प्रमाणित करा लेनी चाहिए। परिपक्वता भुगतान प्राप्त करने को सबसे ज्यादा जरूरी है कि पॉलिसीधारक समय पर किश्तों का भुगतान करता रहे। पॉलिसी अवधि में किसी वजह से यदि संपर्क ब्योरे या पते में परिवर्तन होता है तो कंपनी को उसकी सूचना देकर बदलाव करा लेना चाहिए। वैसे तो बीमा कंपनी पॉलिसी परिपक्व होने की सूचना देती है, लेकिन पॉलिसीधारक को खुद भी अपनी पॉलिसी की मैच्योरिटी तारीख के प्रति जागरूक रहना चाहिए। पहले ही कंपनी से संपर्क साधकर जरूरी औपचारिकताएं पूरी करनी चाहिए ताकि समय पर भुगतान में दिक्कत न आए। दावा निपटान प्रक्रिया की अवधि में कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है। मसलन, सभी कागजात एक साथ जमा करें। पॉलिसी पैक के साथ दावा निपटान के वक्त जरूरी कागजात का ब्योरा दिया रहता है। इसमें संबंधित फॉर्म भी होते हैं। अन्यथा इन्हें एजेंट, कंपनी के दफ्तर या वेबसाइट से भी प्राप्त किया जा सकता है।

भुगतान में देरी की वजहें

आवेदन के वक्त सही तथ्यों की जानकारी न देना, नामित का नाम न दर्ज कराना, दावाकर्ता व बीमित व्यक्ति के अन्य कानूनी वारिसों (पत्‍‌नी, मां) के बीच विवाद तथा संदिग्ध परिस्थितियों में मौत। ऐसी मौत में आत्महत्या के मामले, जिनमें पुलिस को मृत्यु का कारण प्रमाणित करने में कुछ वक्त लगता है, या हत्या के मामले, जिनमें पुलिस को नामित के भी शामिल होने का शक होता है, आते हैं। परिपक्वता संबंधी दावों के भुगतान में विलंब मुख्य रूप से अपूर्ण कागजात, पॉलिसीधारक का पता बदलने अथवा बीमित के बीमा कंपनी से संपर्क न साधने के कारण होता है।

इसलिए बीमा राशि प्राप्त करने के लिए दावा संबधी कागजात को जल्द से जल्द कंपनी में जमा कराएं, क्योंकि जितनी देरी होगी उतना ही बीमा रकम मिलने में विलंब होगा। सबसे अहम है कि पॅालिसी लेते या रिन्यू कराते वक्त स्वास्थ्य या वित्तीय स्थिति के बारे में सही सूचनाएं भरें और प्रीमियम समय पर व नियमित चुकाएं। पॉलिसी लैप्स होने पर कोई भुगतान नहीं मिलता। याद रखें, जीवन बीमा वस्तुत: दावों के निपटान का व्यवसाय है। इसलिए बेहतर सेवा पाने के लिए बीमा कंपनी का सहयोग करें।

वी विस्वानंद

सीनियर डायरेक्टर व सीओओ

मैक्स लाइफ इंश्योरेंस

पढ़ें: जरूरी है दावा प्रक्रिया को समझना


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