उज्जवला योजना से बदला ग्रामीण व गरीब महिलाओं का जीवन
आज की तारीख में देश का एक भी ताप बिजली प्लांट ऐसा नहीं है जहां कोयले की किल्लत हो। पावर एक्सचेंज में दो रुपये की दर से बिजली उपलब्ध है।
नई दिल्ली,[जयप्रकाश रंजन ]। तीन साल पहले जब सरकार ने देश में एक लाख मेगावाट बिजली सौर ऊर्जा से बनाने की घोषणा की जो एक विदेशी अखबार ने लिखा कि यह दूर की कौड़ी साबित होगी। भारत में जहां सौर ऊर्जा की दर 10 रुपये प्रति यूनिट से ज्यादा है वहां इसका कोई भविष्य नहीं है। अब जरा दो हफ्ते पहले राजस्थान में की गई सौर ऊर्जा परियोजना की नीलामी का हाल देखिए। एक विदेशी कंपनी ने सिर्फ 2.44 रुपये प्रति यूनिट की दर से सौर ऊर्जा प्लांट लगाने का प्रस्ताव किया है और उसे स्वीकार किया गया है।
अब एक नजर कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं पर भी डालिए-
तीन साल पहले देश की आधी से ज्यादा ऐसी परियोजनाओं में कोयले की किल्लत थी। पावर एक्सचेंज में बिजली की दरें औसतन 5 रुपये प्रति यूनिट से चल रही थी। 40 हजार मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं पूरी हो गई थी लेकिन उन्हें चालू करने की स्थिति नहीं बन रही थी। आज की तारीख में देश का एक भी ताप बिजली प्लांट ऐसा नहीं है जहां कोयले की किल्लत हो। पावर एक्सचेंज में दो रुपये की दर से बिजली उपलब्ध है। बिजली की कमी से देश के किसी हिस्से में बिजली की कटौती होने की स्थिति नहीं बनती।
अब ऊर्जा से ही जुड़े जरा देश के अहम पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय का सूरते हाल देखते हैं।
इस सरकार के आने से पहले तक इस मंत्रालय को कारपोरेट मत्रालय की तरह माना जाता था जहां आइओसी, एचपीसीएल, बीपीसीएल, गेल जैसी महारत्ना कंपनियां की तूती बोलती थी। काम तो ये कंपनियां आम जनता के लिए ही करती थी लेकिन सीधे तौर पर आम जन से जुड़ी योजनाएं वरीयता में नीचे थी। लेकिन अब इन कंपनियों के प्रमुख आये दिनों गांव-देहात और छोटे शहरो का दौरा करते रहते हैं ताकि गरीबों को एलपीजी कनेक्शन देने की योजना को लागू कर सके। उज्जवला योजना पूरे मंत्रालय का मूल मंत्र बना हुआ है। तीन साल में पांच करोड़ एलपीजी कनेक्शन देने का लक्ष्य सिर्फ दो वर्ष में पूरा होने जा रहा है।
ये कुछ बानगी है जो बताता है कि उर्जा से जुड़े सरकारी विभागों का रवैया किस तरह से बदला है। मोदी सरकार ने पूरे ऊर्जा सुरक्षा को जिस तरह से एक समग्र विषय के तौर पर देखा है वह एक नई सोच है। नई सोच सिर्फ भारत के लिए है। दूसरे देशों में इस तरह से पहले से ही काम हो रहा है। बिजली मंत्रालय और पेट्रोलियम मंत्रालय के बीच दिए गए लक्ष्यों को निर्धारित समय से पहले पूरा करने की होड़ लगी है। अगर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उज्जवला के लक्ष्य एक साल पहले हासिल करने की रूप रेखा बना ली है तो बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने हर घर को बिजली देने से जुड़े लक्ष्यों को निर्धारित साल 2022 से तीन वर्ष पूरा करने को लेकर मुतमईन है।
राज्यों की बिजली कंपनियों की स्थिति सुधारने के लिए उदय योजना को 27 राज्य स्वीकार कर चुके हैं। यह योजना अगले दो से तीन वषरें में बिजली चोरी पर पूरी तरह ले लगाम लगा सकती है। बिजली प्लांटो को उनके प्लांट के नजदीकी कोयला प्लांट से कोयला देने की योजना लागू हो चुकी है। तैयार होने के बावजूद ताप बिजली प्लांट को नये सिरे से शुरु किया जा रहा है। नतीजा यह है कि पिछले तीन वषरें में राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों के तरफ से बिजली की दरों में वृद्धि की रफ्तार घट कर आधी रह चुकी है।
इन योजनाओं के अनुभव के आधार पर ही ऊर्जा मंत्री गोयल यह दावा करते हैं कि आने वाले दिनों में कोई भी सरकार बिजली की राजनीति नहीं करेगी क्योंकि बिजली क्षेत्र की हर समस्या का समाधान हो चुका होगा। हर घर को बिजली से जोड़ा जा चुका होगा। बिजली की दरें काफी हद तक नियंत्रण में रहेंगी। किसानों के लिए अलग फीडर लाइन बन चुका होगा। सौर ऊर्जा के मामले में भारत विश्र्व का लीडर बन चुका होगा। बहुत ही कम दर पर एक लाख मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन बहुत ही बड़ा बदलाव लाएगा। यह पर्यावरण के लिहाज से भी काफी अच्छा रहेगा। हाल ही में सरकार ने स्वदेशी तकनीकी पर आधारित 7000 मेगावाट क्षमता की परमाणु ऊर्जा प्लांट लगाने का ऐलान किया है जो ऊर्जा क्षेत्र में भारत की बदली हुई सोच को दिखाता है। तेल उत्पादक देशों के साथ भारत अब अपनी शतरें पर बात कर रहा है। अमेरिका से शेल गैस लाने की तैयारी पूरी हो चुकी है औऱ संभवत: अगले वर्ष से यह आपूर्ति शुरु हो जाएगी।
ये तो हुई उपलब्धियां लेकिन सरकार को अभी भी कुछ अन्य बातों का ध्यान रखना है। मसलन, सौर ऊर्जा में जितनी तेजी से बिजली की दरें घट रही हैं कहीं उनका हाल भी एक दशक पहले उकी ताप बिजली परियोजनाओं की तरह न हो जाए। इसी तरह से उज्ज्वला योजना के तहत जो गैस कनेक्शन पहली बार गरीबों को दिए जा रहे हैं उन्हें दोबारा गैस कनेक्शन लेने में कठिनाई आ रही है। एक बेहद गरीब परिवार को एक बार में 600 रुपये का जुगाड़ करना आसान नहीं है। बिजली ट्रांसमिशन क्षेत्र की दिक्कतें अभी भी गंभीर बनी हुई हैं। पनबिजली क्षेत्र के लिए सरकार को बगैर देरी के नई समग्र नीति ले कर आना होगा।
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