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छोटी सी पेंसिल से मिला महात्मा के जीवन का बड़ा संदेश

भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी विचारधारा वर्तमान परिस्थितियों में भी उतनी ही प्रासंगिक है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Sat, 01 Oct 2016 09:05 PM (IST)Updated: Sat, 01 Oct 2016 09:50 PM (IST)
छोटी सी पेंसिल से मिला महात्मा के जीवन का बड़ा संदेश

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवन की मौलिकता और उनसे जुड़ी घटनाएं उनके जीवन दर्शन को समझाती हैं। भारत की आजादी में उनकी भूमिका सर्वविदित है। भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी विचारधारा वर्तमान परिस्थितियों में भी उतनी ही प्रासंगिक है।

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छुआछूत के प्रबल विरोधी

गांधी जी के पिता का ट्रांसफर जब पोरबंदर से राजकोट हुआ था तब राजकोट में उनके पड़ोस में उका नाम का एक सफाई कर्मी काम करता था। गांधीजी उका को बहुत पसंद करते थे। घर में हुए एक समारोह के चलते गांधीजी को मिठाई बांटने का काम दिया गया। वह उस मिठाई को लेकर सबसे पहले उका के पास गए। उका गांधीजी से दूर होते हुए बोला, ‘मैं अछूत हूं, मुझे मत छुईये।’ गांधी जी ने उका का हाथ पकड़ा और यह कहकर मिठाई थमा दी, 'अछूत कोई नहीं होता, हम सब इंसान हैं'।

मां पुतली बाई को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने गांधीजी को डांट लगायी और कहा, 'जाओ नहा कर आओ'। तुम्हे नहीं पता उका अछूत है.' गांधीजी ने कहा, ‘ मां साफ सफाई करना कोई बुरा कार्य तो नहीं है। मैंने तो सुना है कि भगवान् श्री राम ने भी गुह नामक अछूत को गले लगाया था और रामायण को तो हमारे धर्म में भी माना जाता है। मैं तो बस समाज से छूत-अछूत जैसी बुरी धारणाओं को हटाना चाहता हूं।

छोटी से पेंसिल से दिया जीवन का अनमोल सबक

गांधी जी जब अफ्रीका में थे तब उनके पास उनका परपोता आया हुआ था। गांधीजी ने एक नयी पेंसिल अपने परपोते को दी। लिखते-लिखते जब पेंसिल छोटी हो गयी तो बच्चे ने सोचा कि अगर मैं इस पेंसिल को फेंक दूं तो मुझे नयी पेंसिल मिल जायेगी। ऐसा सोचकर उसने पास ही की झाड़ियों में वह पेंसिल फेंक दी।

उसने गांधीजी से नयी पेंसिल मांगी। गांधीजी ने उसे पुरानी पेंसिल लाने को कहा। बच्चे ने कई बहाने बनाये पर आखिरकार उसे झाड़ियों से ढूंढ कर वह पेंसिल लानी पड़ी। पेंसिल देखकर गांधीजी ने कहा, 'अभी भी यह पेंसिल किसी ना किसी के काम आ सकती है।' बच्चा समझ गया और उसने उसी पेंसिल से लिखना शुरू कर दिया।
गांधीजी जानते थे कि देश में ऐसे कई परिवार हैं जिन्हें दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता। पढ़ना-लिखना तो बहुत दूर की बात थी। इसलिए गांधीजी पैसे का महत्त्व बहुत अच्छे से जानते और समझते थे।


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