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रामपाल : आश्रम की ऐशगाह से हवालात का असहनीय सफर

‘ईब तो जो भी है, आपके सामणे सै। इसके अलावा मैं कुछ नहीं जाणता। बुद्धि भ्रष्ट होगी थी।’ ये शब्द उस रामपाल के हैं जो हजारों लोगों को सशरीर मोक्ष देने का दावा करता था

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Sat, 22 Nov 2014 10:37 AM (IST)Updated: Sat, 22 Nov 2014 11:43 AM (IST)
रामपाल : आश्रम की ऐशगाह से हवालात का असहनीय सफर

हिसार, सुरेंद्र सोढी। ‘ईब तो जो भी है, आपके सामणे सै। इसके अलावा मैं कुछ नहीं जाणता। बुद्धि भ्रष्ट होगी थी।’ ये शब्द उस रामपाल के हैं जो हजारों लोगों को सशरीर मोक्ष देने का दावा करता था। ये हिसार के सिविल लाइंस थाना की हवालात नंबर एक में बंद रामपाल के उन 20 घंटों का हाल है, जो उसने पुलिस की पूछताछ और फर्श पर बिछे काले कंबल की सेज पर बिताए हैं। फिलहाल आश्रम की ऐशगाह से हवालात का असहनीय सफर अभी जारी है।

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सीन एक : रामपाल को बृहस्पतिवार की रात नौ बजे हिसार की अदालत में पेश किया। सवा घंटे चली अदालती कार्रवाई के बाद रामपाल को सिविल लाइंस थाना लाया गया। बृहस्पतिवार की रात 10:35 बजे हवालात का दरवाजा खुला और रामपाल को नंबर एक कक्ष में डाल दिया गया। तह किए हुए दो काले कंबल (चुभने वाले) सामने रखे थे। अरै बाबा, एक बिछया ले, अर एक औढ़ लिये।कभी हजारों को इशारों पर नचाने वाले रामपाल ने तुरंत मुलाजिम के आदेश का पालन किया और कंबल बिछा कर बैठ गया।

सीन दोः रामपाल हवालात के बाहर हो रही हर आहट पर चौंक रहा था। न ध्यान, न परमात्मा की साधना और न ही आत्मज्ञान का अहसास। बस, एक अंदेशे की आशंका। हुआ भी वही। पुलिस अधिकारियों की टीम ने रामपाल को खाना-पानी देने के लिए कहा। रामपाल : नहीं मेरा पेट भरया है, भूख नहीं है। पुलिस : चाय पीनी है? अभी नहीं।

सीन तीन (बातचीत)

पुलिस : अगर कोर्ट में पेश हो जाता तो ठीक नहीं था?

रामपाल : बस, बुद्धि भ्रष्ट होगी। समिति आलों ने कोर्ट का पता ही नहीं लगने दिया। बाद में बंधक बणा लिया।

पुलिस : क्यों, टीवी पर सब चल रहा था, तुम्हें कुछ नहीं पता चला, फिर बीमारी का ढोंग भी किया?

रामपाल : चुप..

पुलिस : अच्छा, बंधक था तो इतने बड़े आश्रम से बाहर कैसे आया?

रामपाल : चुप..

पुलिस : करौंथा के जूत भूलग्या?

रामपाल : चुप..

पुलिस : कितने लोग मार दिए? कितने घायल हुए पता है?

रामपाल : विनाश काले विपरीत बुद्घि। बस दिमाग ए खराब होग्या था।

पुलिस अधिकारी : चाय पीएगा?

रामपाल : ठीक है...

सुबह छह बजे उठ गया रामपाल

सुबह छह बजे। हवालात के ठीक सामने पुलिस अधिकारियों का कार्यालय, गैलरी में मुलाजिमों की चहल-पहल और रामपाल। रामपाल ऊपर का कंबल उठाकर बैठ गया। पुलिसकर्मी ने सलाखों के पास जाकर कहा-चाय ला द्यू के। हां, सिर्फ मुंह से सहमति जताकर रामपाल पैरों को समेट कर बैठ गया। थाना के मुख्य द्वार के पास बनी कैंटीन से चाय का गिलास लाकर दिया गया। पीने के बाद रामपाल बैठा रहा। अत्याधुनिक शौचालय का इस्तेमाल करने वाले रामपाल को अब हवालात के भीतर बना हुआ टॉयलेट रास नहीं आ रहा था। करीब सात बजे : रामपाल ने एक पुलिसकर्मी को आवाज दी- रै भाई, एक कप चा (चाय) तो पिला दे। चाय दी गई। सुबह सवा दस बजे : रामपाल को खाने के लिए पूछा गया। रामपाल ने कहा-भूख नहीं है, थोड़ी देर बाद खा ल्यूंगा। तब रोटी बनाने का आदेश दिया गया। पौने ग्यारह बजे : रामपाल को थाने में बनी दाल और चार रोटी दी गई। रामपाल ने थोड़ी सी दाल और एक रोटी बमुश्किल हलक से नीचे उतारने के लिए पानी गटक लिया।

महाराज बैठो हो, दाड़ी तो बड़ग्यी

एक पुलिसकर्मी से बड़ी विनम्रता से मुस्कराते हुए सलाखों के पीछे बैठे रामपाल से कहा- महाराज बेठो हो, दाढ़ी तो बडग्यी। रामपाल ने घुटने में दबाया चेहरा ऊपर उठाया और एक पल पुलिसकर्मी की ओर देखकर दूसरी ओर मुंह कर लिया। रामपाल ने एक बार भी बाहर से आने वाली किसी आवाज पर प्रतिक्रिया नहीं जताई।

दो दिन से नहीं धोया मुंह

दूध, केसर, चंदन, घी, गुलाब और महंगे इतर से नहाने वाले रामपाल ने गिरफ्तारी के बाद से मुंह तक नहीं धोया। बीती रात को पुलिस की कड़ी पूछताछ और दिन भर हवालात में कभी उठते-बैठते और कभी सवालों के जवाब में रामपाल उलझा रहा।

अपना गुणगान भूला

हवालात में रात बिताने के बाद शुक्रवार दिन भर रामपाल ने एक बार भी अपना गुणगान नहीं किया। पुलिस के सवालों का जवाब सिर्फ यही दिया गया कि जो कुछ है, आपके सामने है।

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