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कश्मीर : विश्वस्त खुफिया नेटवर्क बना आतंकियों के लिए काल

पाकिस्तान समर्थित दोनों आतंकी संगठन हिज्बुल और लश्कर के सबसे ज्यादा आतंकियों का सफाया किया गया है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sun, 13 Aug 2017 10:22 PM (IST)Updated: Sun, 13 Aug 2017 10:27 PM (IST)
कश्मीर : विश्वस्त खुफिया नेटवर्क बना आतंकियों  के लिए काल
कश्मीर : विश्वस्त खुफिया नेटवर्क बना आतंकियों के लिए काल

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सैन्य एजेंसियों की कार्रवाई में 1 अगस्त, 2017 को सुबह पुलवामा में मारे गये पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा के आतंकी अबु दुजान के बारे में एक बात प्रसिद्ध थी कि उसकी पक्की खबर किसी के पास नहीं होती थी। इसी तरह से अल-कायदा का मुखिया जाकिर मुसा के बारे में भी कोई सूचना हासिल करना बहुत मुश्किल था। लेकिन यह हालात बदल गये हैं।

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दुजान मारा जा चुका है और मुसा पिछले शुक्रवार को एजेंसियों की कार्रवाई में किसी तरह से जान बचा कर भागने में सफल रहा है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने कश्मीर में अगर इस साल 133 दुर्दात आतंकियों को मार गिराया है तो इसके लिए बहुत सारा श्रेय उस खुफिया नेटवर्क को भी दिया जाना चाहिए जिसे तैयार करने में तकरीबन तीन साल लग गये। जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ मिल कर भारतीय खुफिया एजेसियों ने कश्मीर में अभी तक का सबसे विश्वस्त नेटवर्क तैयार कर लिया है।

खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक सटीक खुफिया सूचनाओं का नहीं मिलना कश्मीर में हमारे आतंकरोधी कार्रवाईयों का सबसे कमजोर पक्ष था। लेकिन अब यह इतिहास की बात है, अब हर प्रमुख आतंकी की सारी गतिविधियां प्रशासन के पास होती हैं। स्थानीय पुलिस के नेटवर्क के साथ बेहतरीन सामंजस्य और अतिआधुनिक तकनीकी के इस्तेमाल ने सटीक सूचनाओं के प्रवाह को बढ़ा दिया है। यह एक अहम वजह है कि भारतीय सैन्य बलों ने राज्य को छह महीने में पूरी तरह से आतंकियों से मुक्त बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। सिर्फ अगस्त में ही 17 आतंकी मारे जा चुके हैं।

पाकिस्तान समर्थित दोनों आतंकी संगठन हिज्बुल और लश्कर के सबसे ज्यादा आतंकियों का सफाया किया गया है। उक्त सूत्रों के मुताबिक कश्मीर में विश्वसनीय खुफिया तंत्र स्थापित करने की राह में सबसे बड़ी अड़चन यहां पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ का नेटवर्क था। लेकिन वर्ष 2015 में उनके नेटवर्क के खिलाफ धीरे धीरे कार्रवाई करने से हालात में बदलाव आने लगे। अब ध्यान इस पर भी लगाया जा रहा है कि आइएसआइ दोबारा नेटवर्क तैयार न कर सके।

दरअसल, भारतीय एजेंसियों ने कश्मीर में मजबूत खुफिया तंत्र को नए सिरे से स्थापित करने की कोशिश मौजूदा हिंसा का दौर शुरु होने से पहले ही कर दी थी। स्थानीय पुलिस, सीपीआईएफ और भारतीय सेना के तंत्र के बीच बेहतर सामंजस्य से ही अब सटीक परिणाम आ रहे हैं। स्थानीय पुलिस के नेटवर्क पर भरोसा करने के साथ ही उन्हें फैसला करने की आजादी भी दी गई है। आतंकियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में भी स्थानीय पुलिस को विश्वस्त साझेदार बनाने से हालात बदलने में सहयोग मिला है।

कई बार यह भी देखने में आया है कि स्थानीय लोगों की भीड़ सुरक्षा बलों की कार्रवाई में बाधा पहुंचाने की कोशिश करते हैं। ऐसे हालात में स्थानीय पुलिस का अनुभव काफी मददगार साबित हो रहा है। हुर्रियत के नेताओं की फंडिंग रोकने से लेकर पाक अधिकृत कश्मीर से मार्ग से नशीली दवाओं के कारोबार में जुटे लोगों की सूचनाओं को रोकने में खुफिया एजेसियों के नेटवर्क ने काफी मदद की है।

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