सरकार ने मुंह फेरा तो ग्रामीणों ने श्रमदान कर 33 दिन में किया ये बड़ा काम
करीब 3 हजार की आबादी वाले खेड़ा गांव के सभी छह फलियों के लोगों ने श्रमदान किया। हर फलिए से प्रतिदिन 50 से 60 लोग आते थे। सुबह और शाम को काम होता था। भोजन सभी अपने साथ लाते थे।
झाबुआ, नईदुनिया। ग्राम खेड़ा में खेतों की सिंचाई के लिए आदिवासियों को अब किसी का मुंह नहीं देखना पड़ेगा और मवेशियों की प्यास भी आसानी से बुझ सकेगी। सरकार का रास्ता देखने की बजाय उन्होंने 33 दिन पसीना बहाया और तालाब तैयार कर लिया।
शिवगंगा संस्था के हलमा कार्यक्रम के तहत श्रमदान कर बनाए इस तालाब पर 10 लाख रुपए खर्च आया है, जो संस्था ने अपने कोष से खर्च किया है। लगभग 100 मीटर लंबे, 30 फीट ऊंचे और 24 करोड़ लीटर क्षमता वाले इस तालाब को बनाने का निर्णय ग्रामीणों ने काफी पहले ही ले लिया था। 33 दिन पहले काम शुरू होते ही, महिलाओं और बच्चों ने बड़े-बड़े पत्थर एक-दूसरे के हाथ में थमाए व तालाब की पाल पर जमाना शुरू कर दिया।
करीब 3 हजार की आबादी वाले खेड़ा गांव के सभी छह फलियों के लोगों ने श्रमदान किया। हर फलिए से प्रतिदिन 50 से 60 लोग आते थे। सुबह और शाम को काम होता था। भोजन सभी अपने साथ लाते थे। जो लोग पहले तालाब निर्माण का काम कर चुके थे, उनका तकनीकी अनुभव यहां मार्गदर्शन के काम आया। जब ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ी तो हलमे के आह्वान पर 300 से 350 महिलाएं, युवतियां और बच्चे आ जुटे। सभी की मेहनत रंग लाई और 28 मई को तालाब बनकर तैयार हो गया।
अड़चनें भी दूर हो गई
शिवगंगा संस्था के भंवरसिंह भयिड़या ने बताया कि वन विभाग की जमीन होने से अनुमति मिलने में दस दिन लग गए। वन विभाग ने वन समिति से जल्दी अनुमति देने का आग्रह किया। समिति में संस्था के कार्यकर्ता भी थे, इसलिए उन्होंने तालाब की जरूरत को समझा और अपनी तरफ से हरी झंडी दे दी। संस्था को जनमहत्व के कामों के लिए इंफोसिस फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से मदद मिलती है। संस्था के कार्यों का अध्ययन करने आईआईटी के विद्यार्थी भी यहां आ चुके हैं। शिवगंगा के महेश शर्मा का कहना है कि कार्यकर्ताओं ने इस साल 11 जल संरचनाओं को पूरा करने का लक्ष्य रखा है।