दृष्टिहीन छात्राओं को प्रदान कर रहे हैं संबल
शारीरिक विकलांगता को आम तौर पर अभिशाप मानकर लोग हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए अनिल वर्मा प्रेरणा के स्रोत हैं। बचपन में ही अनिल वर्मा की दृष्टि चली गई थी। काफी जद्दोजहद के बाद राजधानी में उन्होंने शिक्षक की नौकरी पाई। अपने संघर्ष
पश्चिमी दिल्ली [संतोष शर्मा]। शारीरिक विकलांगता को आम तौर पर अभिशाप मानकर लोग हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए अनिल वर्मा प्रेरणा के स्रोत हैं। बचपन में ही अनिल वर्मा की दृष्टि चली गई थी। काफी जद्दोजहद के बाद राजधानी में उन्होंने शिक्षक की नौकरी पाई। अपने संघर्ष के वक्त पाया कि आम युवती के लिए राजधानी सुरक्षित नहीं है तो दृष्टिहीन छात्राएं कैसे टिक पाएंगी। इसी दिन उन्होंने शारीरिक विकलांग छात्राओं के बारे में सोचना शुरू किया।
ब्लाइंड पर्सन एसोसिएशन नाम से दृष्टिहीन लोगों की संस्था से जुड़कर वे ऐसी छात्राओं के बेहतरी के जुट गए। संस्था के अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने छात्राओं के लिए न केवल द्वारका में छात्रावास बनाया, बल्कि वहां उनके लिए कंप्यूटर व टाइपिंग का प्रशिक्षण भी शुरू किया था। खुद अनिल वर्मा सरकारी नौकरी के लिए छात्राओं को परामर्श तक देते हैं। उस पर आने वाला खर्च भी संस्था के माध्यम से लगाया जाता था। इसी का नतीजा है कि छात्रावास में रहने वाली करीब 50 दृष्टिहीन छात्राएं सरकारी नौकरी पा चुकी हैं।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के हरदोई के रहने वाले अनिल वर्मा इस समय उत्तम नगर स्थित सर्वोदय बाल विद्यालय के उप प्रधानाचार्य भी हैं। जब वे 12 वर्ष के थे तभी बीमारी से उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। लखनऊ स्थित अंध विद्यालय से 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे दिल्ली आ गए थे। दिल्ली में रहकर उन्होंने एमए व बीएड की पढ़ाई पूरी की। बाद में उनका चयन निगम स्कूल में शिक्षक के लिए हो गया। उनकी पत्नी भी दृष्टिहीन हैं और शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं।
अनिल वर्मा ने बताया कि दिल्ली में अब तक दृष्टिहीन छात्राओं के लिए कोई छात्रावास नहीं है। लिहाजा, अन्य राज्यों से पढ़ाई व रोजगार की तलाश में दिल्ली आने वाली नेत्रहीन युवतियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने अपने खर्च पर द्वारका सेक्टर-13 स्थित रोजउड अपार्टमेंट में तीन कमरों के फ्लैट में छात्रावास की शुरुआत की। वहां युवतियों के लिए मुफ्त में रहने व खाने-पीने की व्यवस्था की गई। इस छात्रावास में एक दर्जन छात्राएं रह रह रही हैं। इनका खर्च लोगों के दिए गए योगदान से चलता है। सन् 2004 से शुरू किए गए इस छात्रावास में अब तक उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, मणिपुर व नेपाल और दार्जिलिंग की करीब 150 से ज्यादा दृष्टिहीन युवतियां रह चुकी हैं।
अनिल वर्मा ने बताया कि पढ़ाई के साथ ही उन्हें नौकरी दिलवाना उनका मुख्य लक्ष्य है। लिहाजा, उन्होंने छात्रावास में ही एक टाइप राइटर व कंप्यूटर की व्यवस्था की गई। वहां उनके साथ ही संस्था से जुड़े लोग छात्राओं को टाइपिंग और कंप्यूटर की शिक्षा प्रदान करते हैं, वहीं उन्हें सरकारी नौकरियों के लिए निकली रिक्तियों व फॉर्म की जानकारी भी दी जाती है। वे बताते हैं कि अब तक छात्रावास में रहने वाली करीब 50 छात्राओं को नौकरी मिल चुकी है। वहीं संस्था के माध्यम से 21 दृष्टिहीन युवतियों की शादी भी कराई गई।
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