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जांच से बचने के लिए चिदंबरम के बेटे कार्ति ने खेला था वसीयत का खेल

कार्ति चिदंबरम के बारे में हो रहे खुलासों से जांच एजेंसियां भी चकित हैं।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sun, 21 May 2017 01:21 AM (IST)Updated: Sun, 21 May 2017 05:54 AM (IST)
जांच से बचने के लिए चिदंबरम के बेटे कार्ति ने खेला था वसीयत का खेल
जांच से बचने के लिए चिदंबरम के बेटे कार्ति ने खेला था वसीयत का खेल

नीलू रंजन, नई दिल्ली। कंपनी किसी और के नाम, पर उसकी संपत्ति कार्ति चिदंबरम के बेटी के नाम। जांच एजेंसियों की नजर से बचने के लिए कार्ति चिदंबरम ने कुछ ऐसा ही ताना-बाना बुना था। लेकिन आखिरकार यह भेद खुल ही गया। सीबीआइ और ईडी अब इसे कार्ति चिदंबरम के खिलाफ पुख्ता सबूत के तौर पर पेश करने की तैयारी कर रही है। पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम पर एफआइपीबी क्लीयरेंस कराने के लिए कंपनियों से करोड़ों रुपये की फीस लेने का आरोप है।

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दरअसल जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर पी चिदंबरम और कार्ति चिदंबरम का यही कहना था कि जिन कंपनियों में पैसे लेने की बात कही जा रही है, उनसे उनका कोई संबंध नहीं है और राजनीतिक बदले की भावना से कार्ति के दोस्तों की कंपनियों को निशाना बनाया जा रहा है। लेकिन जांच एजेंसियां चिदंबरम के दावे की पोल खोलने के लिए पुख्ता सबूत मिलने का दावा कर रही है। उनके अनुसार छापे के दौरान एक कंपनी के निदेशक के कंप्यूटर से एक वसीयत मिली है, जो चौंकाने वाली है। वसीयत में कंपनी के उक्त निदेशक ने अपनी सारी जायदाद कार्ति चिदंबरम के बेटी के नाम पर कर रखी है। बताया जाता है कि वसीयत में लिखा है कि पी चिदंबरम के प्रति सम्मान और प्यार के कारण वह अपनी संपत्ति उनकी पोती के नाम कर रहा है।

जांच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कंप्यूटर में वसीयत की प्रति मिलने के बाद उसके मूल प्रति की तलाश की जा रही है। इसके सहारे यह साबित किया जा सकता है कि एफआइपीबी क्लीयरेंस दिलाने का असली लाभार्थी पी चिदंबरम का परिवार है।

गौरतलब है कि पिछले हफ्ते सीबीआइ ने पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी की कंपनी आइएनएक्स को पैसे लेकर एफआइपीबी की जांच से बचाने के आरोप में कार्ति चिदंबरम के खिलाफ केस दर्ज किया था। इसके बाद उसके ठिकानों पर छापा भी मारा था। सीबीआइ की एफआइआर के अनुसार कार्ति चिदंबरम के हस्तक्षेप के बाद एफआइपीबी ने न सिर्फ आइएनएक्स के खिलाफ जांच बंद कर दी थी। बल्कि साढ़े चार करोड़ के विदेश निवेश की मंजूरी मिलने के बाद 305 करोड़ का विदेश निवेश ले आने को भी सही ठहरा दिया था।

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